महाकुंभ का रंग: 1.25 लाख रुद्राक्षों से सजा नागा साधु का अद्भुत जीवन
क्या आप जानते हैं कि प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ में एक ऐसे नागा साधु हैं, जिन्होंने अपने शरीर को 1.25 लाख रुद्राक्षों से सजा रखा है? जी हाँ, आपने बिलकुल सही सुना! दिगंबर विजय पुरी नाम के इस नागा साधु ने अपने शरीर और मुकुट पर इतने रुद्राक्ष धारण किए हैं कि वो देखने में एकदम अद्भुत लगते हैं। मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से आये इस साधु ने बताया कि रुद्राक्षों से उन्हें मन की शांति मिलती है।
रुद्राक्ष और शांति का अनोखा रिश्ता
दिगंबर विजय पुरी बताते हैं कि रुद्राक्ष मालाएँ धारण करने से उन्हें अंदरूनी शांति मिलती है। वो पूरे महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में स्नान, ध्यान, भजन और तपस्या में समय बितायेंगे। रुद्राक्ष का उपयोग सदियों से आध्यात्मिक और स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जाता रहा है, और विजय पुरी जी का यह अनोखा तरीका वाकई प्रेरणादायक है। उनके जीवन में रुद्राक्ष की अहमियत और शांति के लिए उनकी तपस्या, आध्यात्मिकता और एकाग्रता को दर्शाता है। 35 किलो के रुद्राक्ष का भार भी उनकी तपस्या की गहराई को दिखाता है। यह देखकर मन में एक विनम्रता और सम्मान का भाव उत्पन्न होता है। कौन जानता है, शायद यही एकांत और तपस्या उनको आंतरिक शांति देती है।
आध्यात्मिक जीवन की ओर
दिगंबर विजय पुरी ने बताया कि नागा साधु बनना आसान नहीं है। 12-13 साल की कठिन तपस्या के बाद ही व्यक्ति नागा साधु बन पाता है। इस कठिन यात्रा को पार करने वाले साधुओं के जीवन में असाधारण शक्ति और समर्पण झलकता है। वे सभी समर्पण, आत्म-नियंत्रण, और आध्यात्मिकता को दर्शाते हैं। उनकी कठिन यात्रा साधारण लोगों के जीवन में प्रेरणा का संचार करती है और आत्म-विकास की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।
नागा साधु का जीवन: आनंद और मोक्ष की तलाश
विजय पुरी के मुताबिक, नागा साधुओं का जीवन आनंद से भरा है। भजन-कीर्तन, ध्यान, और तपस्या से उनका जीवन भर जाता है। कपड़े नहीं धारण करने की उनकी परंपरा अनोखी है, भस्म उनका आवरण है। ये लोग समस्त योनियों से मुक्ति पाने के लिए नागा साधु बने हैं, बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिए उन्होंने ये जीवन अपनाया है।
एकांत और तपस्या का मार्ग
उनका जीवन त्याग, अनुशासन और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। हर नागा साधु के जीवन में एक गहरी आध्यात्मिक खोज और आत्म-साक्षात्कार की तलाश नज़र आती है। उनका यह त्याग केवल शारीरिक कष्ट ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पूर्णता की इच्छा को भी दर्शाता है। वे आंतरिक शक्ति के प्रतीक हैं और अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
नागा बनने की गुप्त और कठिन प्रक्रिया
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद गुप्त और कठिन है। यह एक अद्वितीय अनुष्ठान है जिसमे रहस्यमयी आयाम विदित होते हैं। यह प्रक्रिया 48 घंटे तक चलती है। रात में दो से ढाई बजे के बीच एकान्त में दीक्षा दी जाती है, इस दीक्षा में आयुर्वेदिक दवाओं का भी उपयोग किया जाता है जो वासना की मुक्ति में मदद करता है। यह दिखाता है की कितना कठोर अनुशासन, ध्यान, और तपस्या इस जीवन में शामिल हैं।
वासना पर विजय पाने की तपस्या
नागा बनने के लिए वासना पर विजय पाना सबसे महत्वपूर्ण है। मन को नियंत्रित करना और सात्विक जीवन जीना आवश्यक है। पहले तो शारीरिक रूप से झटका दिया जाता था लेकिन अब आयुर्वेदिक औषधि का प्रयोग किया जाता है ताकि जीवन की रक्षा हो सके। इस प्राचीन परम्परा को बनाये रखते हुये, नागा साधु वासना पर विजय पाने का उदाहरण देते हैं।
Take Away Points
- महाकुंभ में 1.25 लाख रुद्राक्षों से सजे नागा साधु दिगंबर विजय पुरी का जीवन आध्यात्मिकता और त्याग का एक अनोखा उदाहरण है।
- रुद्राक्ष से उन्हें मन की शांति मिलती है।
- नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और गुप्त है।
- वासना पर विजय प्राप्त करना इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- उनका जीवन आनंद, तपस्या और मोक्ष की तलाश का प्रतीक है।