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मिल्कीपुर उपचुनाव: क्या अखिलेश यादव की सपा जीतेगी यह सीट?

उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव इस समय राज्य की राजनीति में सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच यह सीधा मुकाबला है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले दोनों पार्टियों के लिए बेहद अहम है। क्या सपा इस चुनाव में जीत हासिल करेगी या भाजपा अपने वर्चस्व को कायम रख पाएगी? आइए जानते हैं इस उपचुनाव की पूरी कहानी।

मिल्कीपुर उपचुनाव: एक दिलचस्प लड़ाई

मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। सपा के पूर्व विधायक अवधेश प्रसाद के लोकसभा सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। इस चुनाव में सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने बाबा गोरखनाथ को मैदान में उतारा है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद से हार गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। लेकिन सभी की नज़रें सपा और भाजपा के बीच होने वाली इस कड़ी टक्कर पर लगी हुई हैं।

क्या दलित वोटर होंगे निर्णायक?

मिल्कीपुर में कुल 3.5 लाख से अधिक वोटर हैं जिनमे सबसे ज़्यादा आबादी दलितों की है, जो कुल वोटरों का लगभग 25-30% है। इस उपचुनाव में दलित वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। यही वजह है कि सपा ने अपने प्रचार में दलित समुदाय को काफी ध्यान दिया है और भाजपा भी इस समुदाय का समर्थन हासिल करने में लगी हुई है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का फैसला लिया है, जिससे दलित वोटों का बंटवारा सपा और भाजपा के बीच ही रहने की संभावना है।

अन्य समुदायों का वोट भी है महत्वपूर्ण

हालांकि, दलितों के अलावा अन्य समुदाय के वोट भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। मिल्कीपुर में यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण, क्षत्रिय और अन्य जातियों की भी महत्वपूर्ण संख्या में वोटर हैं। इन सभी समुदायों का समर्थन हासिल करना दोनों पार्टियों के लिए बेहद ज़रूरी है।

अवधेश प्रसाद का कैंपेन और अयोध्या राम मंदिर का असर

अवधेश प्रसाद ने अपने चुनाव प्रचार अभियान को अयोध्या के राम मंदिर और हिंदू आस्था से जोड़ने की कोशिश की है, जोकि बहुत ही रणनीतिक फैसला लग रहा है। अपने भाषणों में उन्होंने अपने परिवार के साथ राम के नाम की पवित्रता और समाजवादी पार्टी के हिन्दुत्व की तरफ इशारा करने का काम किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रणनीति चुनाव में कितना प्रभावी साबित होती है और क्या मंदिर के साथ उनके नाम के साथ का असर ज़्यादा वोट पाने में सपा को मदद कर पाएगा।

अखिलेश यादव का दांव

यह उपचुनाव सपा के लिए काफी अहम है। पिछले कुछ उपचुनावों में सपा को हार का सामना करना पड़ा है और यह चुनाव उससे अपनी ज़मीन बनाने के मौके के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद पर बहुत ज़्यादा दांव लगा रखा है और अपनी ताकत लगाकर यह चुनाव जीतना चाहती है। इस चुनाव के नतीजे यूपी की राजनीति को भी एक नई दिशा देंगे।

क्या भाजपा अपने किले को बचा पाएगी?

भाजपा इस सीट पर 2022 के चुनावों में जीतने से कुछ वोट कम से चूक गयी थी। और वो इस चुनाव में जीत हासिल करके अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहती है। पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के ज़रिए इस सीट पर पूरी ताकत से प्रचार कर रही है। भाजपा को भी ज़्यादा ज़्यादा दलित वोट हासिल करने पर ध्यान देने की ज़रूरत होगी ताकि यह जीत हासिल कर सके।

मुख्य मुद्दे और जनता का रुझान

इस चुनाव में विकास, बेरोज़गारी, महंगाई और किसानों से जुड़े मुद्दे प्रमुखता से उभर कर सामने आये है। और जनता इन मुद्दों को लेकर किस पार्टी के पक्ष में है, यही देखने लायक होगा। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों ही पार्टियों ने जनता के सामने अपने विकास कार्यो को रखा है और लोगों की ज़िन्दगी में आसानी लाने के दावे भी किए हैं।

टेक अवे पॉइंट्स

  • मिल्कीपुर उपचुनाव समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधी टक्कर है।
  • दलित वोटर्स इस चुनाव का परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
  • अन्य समुदाय के वोटरों का समर्थन भी दोनों पार्टियों के लिए ज़रूरी है।
  • अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ दोनों ने इस चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण बताया है।
  • चुनाव नतीजे 8 फ़रवरी को आने की उम्मीद हैं।