img

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में एक मांस प्रसंस्करण कंपनी द्वारा नदी में कचरे के कथित रूप से फेंके जाने के मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य से जवाब मांगा है। यह मामला गंगा नदी की एक सहायक नदी, सौत नदी में औद्योगिक कचरा फेंके जाने का है। यह चिंताजनक स्थिति पर्यावरण संरक्षण और नदी प्रदूषण के गंभीर मुद्दे को उजागर करती है। इस घटना से न केवल स्थानीय पर्यावरण को नुकसान पहुँचा है, बल्कि इससे मानव स्वास्थ्य और जीव-जंतु जीवन पर भी गंभीर खतरा मँडरा रहा है। इस तरह के कृत्यों पर कड़ी कार्रवाई करने की ज़रूरत है ताकि भविष्य में इस प्रकार के प्रदूषण को रोका जा सके और हमारे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा सके। इस लेख में हम इस मामले की विस्तृत जानकारी, NGT की भूमिका और आगे की कार्यवाही पर चर्चा करेंगे।

NGT की कार्रवाई और प्रदूषण का मुद्दा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने इंडिया फ्रोजन फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार सहित अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कंपनी पशुओं के रक्त और अन्य कचरे को सौत नदी में फेंक रही है जिससे नदी प्रदूषित हो रही है और आस-पास के क्षेत्र में दुर्गंध फैल रही है।

कंपनी पर लगे आरोप

याचिकाकर्ता के अनुसार, कंपनी ने अपने बायो-फिल्टर यूनिट को ठीक से काम नहीं करने दिया है जिससे कचरा सीधे नदी में जा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप है कि कंपनी अपनी स्वीकृत क्षमता से अधिक पशुओं की कटाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि कंपनी को प्रतिदिन 350 पशुओं की कटाई करने की अनुमति है, लेकिन वह 700 से अधिक पशुओं की कटाई कर रही है। यह अतिरिक्त कटाई पर्यावरण नियमों के उल्लंघन का स्पष्ट उदाहरण है।

NGT का फैसला और आगे की कार्रवाई

NGT ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और उत्तर प्रदेश सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, इंडिया फ्रोजन फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और संबंधित जिलाधिकारी को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। NGT ने इस मामले में एक “महत्वपूर्ण मुद्दा” माना है जो पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन से संबंधित है। अगली सुनवाई 14 जनवरी को निर्धारित की गई है।

पर्यावरण संरक्षण का महत्व और कानूनी पहलू

यह मामला न केवल पर्यावरण प्रदूषण का एक गंभीर उदाहरण प्रस्तुत करता है बल्कि यह भी उजागर करता है कि पर्यावरणीय कानूनों के उल्लंघन के प्रति उदासीनता कितना हानिकारक हो सकता है। भारत में, कई कानून पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं, लेकिन उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g) पर्यावरण के संरक्षण का आह्वान करते हैं। प्रदूषण अधिनियम, 1986 और जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 इस उद्देश्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अधिनियम औद्योगिक इकाइयों को पर्यावरणीय मानदंडों के पालन को सुनिश्चित करता है, नदी तटों पर औद्योगिक संयंत्रों के निर्वहन और कचरे को नियंत्रित करता है। उद्योगों से होने वाले प्रदूषण की मात्रा सीमित करने और दंडात्मक कार्यवाही को लागू करने के नियम भी स्पष्ट हैं।

कानूनी प्रक्रिया का महत्व

इस मामले में NGT की तत्परता और सख्ती पर्यावरण नियमों के उल्लंघन को रोकने में महत्वपूर्ण है। NGT के त्वरित कार्रवाई के लिए जाने जाने की वजह से इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले किसी भी उद्योग को उचित दंड दिया जाए और वे पुनर्वास की गतिविधियों में भाग लेने के लिए बाध्य हो।

मांस प्रसंस्करण उद्योग और सतत विकास

मांस प्रसंस्करण उद्योग खाद्य श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसे पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ संचालित करने की आवश्यकता है। सतत विकास के सिद्धांतों को अपनाने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उद्योग पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुँचाते हुए वृद्धि कर सके।

सतत प्रथाएँ

मांस प्रसंस्करण उद्योग में पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए विभिन्न सतत प्रथाओं को लागू किया जा सकता है, जैसे अपशिष्ट प्रबंधन के उन्नत तरीके, जल संरक्षण, ऊर्जा दक्षता तकनीकें और प्रदूषण नियंत्रण। कार्बन फुटप्रिंट कम करने हेतु स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग करना भी आवश्यक है।

नियामक ढांचे की आवश्यकता

इस प्रकार के मुद्दों को रोकने के लिए सरकार द्वारा अधिक प्रभावी नियामक ढांचे और बेहतर निगरानी की आवश्यकता है। साथ ही उद्योगों को अपने अपशिष्ट को प्रबंधित करने, जल निकायों को प्रदूषित करने से बचने के लिए सतत तकनीकों को लागू करना होगा। सख्त नियमों और दंड के साथ-साथ, पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार कार्यप्रणालियों को बढ़ावा देने वाले जागरूकता कार्यक्रमों को भी लागू किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष और भविष्य की दिशा

संभल के मामले में NGT की सक्रियता पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के महत्व को दर्शाता है। भारत में पर्यावरण संरक्षण को मज़बूत करने के लिए, प्रभावी कानून लागू करने, नियमों के पालन सुनिश्चित करने और औद्योगिक इकाइयों को पर्यावरण की रक्षा के लिए उत्तरदायी बनने की आवश्यकता है। सतत विकास के सिद्धांतों को अपनाना और जिम्मेदार मांस प्रसंस्करण प्रथाओं को प्रोत्साहित करना ही इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं।

टेक अवे पॉइंट्स:

  • NGT ने उत्तर प्रदेश के संभल में मांस प्रसंस्करण कंपनी द्वारा नदी में कचरा फेंके जाने के मामले में कार्रवाई की है।
  • इस मामले में पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन और उनके प्रभाव को उजागर किया गया है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम जैसे कानून महत्वपूर्ण हैं।
  • मांस प्रसंस्करण उद्योग को पर्यावरणीय रूप से सतत प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है।
  • प्रभावी नियामक ढांचा, निगरानी और जागरूकता कार्यक्रमों से इस मुद्दे को हल करने में मदद मिल सकती है।