उत्तर प्रदेश के मदरसों में शिक्षकों का संकट: भुगतान में देरी और भविष्य की अनिश्चितता
यह लेख उत्तर प्रदेश के मदरसों में कार्यरत शिक्षकों के सामने आ रही चुनौतियों और उनके भविष्य की अनिश्चितता पर केंद्रित है। सरकारी अनुदानों में देरी, जाँच और मदरसों के विरूद्ध अभियान के चलते शिक्षकों का जीवन कठिनाईयों से भरा हुआ है, जिससे उनके परिवारों का भरण-पोषण मुश्किल हो रहा है। शिक्षक न केवल आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, बल्कि अपने काम के प्रति भी असुरक्षा महसूस कर रहे हैं।
सरकारी अनुदानों में देरी और शिक्षकों की आर्थिक स्थिति
आर्थिक संकट का सामना कर रहे शिक्षक
उत्तर प्रदेश के कई मदरसा शिक्षक पिछले कई वर्षों से केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले मानदेय का इंतज़ार कर रहे हैं। इस मानदेय में देरी के कारण इन शिक्षकों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। अशरफ अली, सुल्तानुल उलूम मदरसा में शिक्षक, अपनी बढ़ती हुई ज़िम्मेदारियों और कम होती आय के कारण चिंतित हैं। वह इलेक्ट्रीशियन का काम करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं, लेकिन यह काम उनके लिए स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने 18 साल तक अध्यापन किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ है। अनंत सिंह जैसे कई अन्य शिक्षक भी इसी तरह के आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं, जिनके अनुसार ₹15,000 का मानदेय मुद्रास्फीति के दौर में भी उन्हें स्थिरता प्रदान करता था।
मानदेय में कमी का प्रभाव
केंद्र सरकार ने 1993-94 में मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू की थी, जिसके अंतर्गत विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे विषयों को स्वैच्छिक आधार पर पढ़ाया जाने लगा। 2014-15 में, केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद, मदरसों को लाभान्वित करने वाली मौजूदा योजनाओं का पुनर्गठन किया गया। इस योजना के तहत प्रति संस्थान तीन शिक्षकों की नियुक्ति और बुनियादी ढाँचे के लिए अनुदान दिया जाता था। लेकिन अब मानदेय में कमी और देरी के कारण मदरसों का संचालन और शिक्षकों का जीवन प्रभावित हो रहा है। इससे न सिर्फ़ शिक्षकों का आर्थिक संकट बढ़ रहा है, बल्कि मदरसों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। कई शिक्षकों को अपनी दूसरी नौकरी करनी पड़ रही है जैसे ऑटो चलाना, फल बेचना, या ट्यूशन पढ़ाना ताकि अपना और अपने परिवार का पालन पोषण हो सके।
मदरसों पर सरकार की नीतियाँ और उनका प्रभाव
मदरसों का सर्वेक्षण और जाँच
2022 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों का सर्वेक्षण किया गया, जिससे मदरसा समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा हुई। इसके बाद एक विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया गया, जिसने कथित विदेशी फंडिंग की जाँच की। इसी वर्ष मार्च में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया, हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी। लेकिन यह घटना मदरसा समुदाय के लिए चिंता का विषय है।
513 मदरसों का अनाफ़िलिएशन
लगभग 513 मदरसों को अनाफ़िलिएट करने का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा स्वीकृत किया गया है, क्योंकि उन्होंने बोर्ड के पोर्टल पर अपना विवरण दर्ज नहीं कराया था। यह निर्णय शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए चिंता का कारण बन गया है। हालाँकि राज्य सरकार का कहना है कि यह प्रक्रिया सामान्य है, लेकिन विपक्षी दल इसे मदरसों को बदनाम करने की कोशिश के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि अगर जाँच में कुछ गलत पाया गया तो सरकार को उसे सार्वजनिक करना चाहिए।
मदरसों का महत्व और भविष्य की चुनौतियाँ
मदरसों का ऐतिहासिक योगदान
मदरसे सदियों से भारत में इस्लामिक शिक्षा के केंद्र रहे हैं। इन्होंने न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान की है, बल्कि अन्य विषयों जैसे फ़ारसी और अन्य विषयों में भी शिक्षा दी है। मदरसे ने कई विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है। मुंशी प्रेमचंद जैसे गैर-मुस्लिम लोग भी मदरसों में पढ़े हैं। यह मदरसों के ऐतिहासिक योगदान का प्रमाण है।
आधुनिक युग में चुनौतियाँ
आज के समय में भी कई मदरसे आधुनिक विषयों के साथ इस्लामी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। कुछ मदरसे राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) से भी जुड़े हुए हैं। लेकिन सरकारी नीतियों और आर्थिक संकट के कारण इन संस्थानों का भविष्य अनिश्चित है। सरकारी सहायता के बिना इन मदरसों का संचालन करना मुश्किल होगा और इससे छात्रों और शिक्षकों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। अनेक मदरसे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और उनके बंद होने का खतरा मँडरा रहा है।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षकों की समस्या जटिल है और इसमें आर्थिक संकट, सरकारी नीतियों का प्रभाव, और मदरसा समुदाय में असुरक्षा की भावना शामिल हैं। सरकार को इन समस्याओं को गंभीरता से लेना होगा और शिक्षकों को उचित मानदेय प्रदान करने के साथ-साथ मदरसों के भविष्य को सुरक्षित करना होगा। इसके लिए सभी पक्षों के बीच एक खुला संवाद और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
टेकअवे पॉइंट्स:
- उत्तर प्रदेश के कई मदरसा शिक्षक सरकारी अनुदानों में देरी के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
- मदरसों पर सरकार की नीतियाँ और जाँच ने शिक्षकों और छात्रों में असुरक्षा की भावना पैदा की है।
- 513 मदरसों का अनाफ़िलिएशन शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती है।
- मदरसों का ऐतिहासिक योगदान और उनका भविष्य सुरक्षित करने के लिए सभी पक्षों को एक साथ मिलकर काम करने की ज़रुरत है।