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गौरव जायसवाल-ब्यूरो प्रमुख
लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने जहां दीपावली पर आदेश दिया है कि रात में 8 से 10 तक ही पटाखे जलायें जायेंगे। वहीं अब तक देशभर में हर साल दीपावली पर पटाखों से कई दर्दनाक घटनायें हो जाती हैं।
दीपावली पर्व पर हर शहर में पटाखों के शोर और धुआं से लोगों को कई दिनों तक परेशानी का सामना करना पड़ता है। त्योहार तो सबका होता है पर जरा सी लापरवाही पूरे परिवार पर भारी पड़ जाती है। पटाखों से बच्चों और बड़ों को सावधान रहना चाहिए।
Jansandeshonline ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए जोरदार आवाज वाले पटाखों से सावधान रहने की हिदायत देता है।
रायबरेली रोड हरकंश गढ़ी के रमा हास्पिटल के डा0 चन्द्रकांत वर्मा ने बताया कि बच्चों को खासतौर पर हमें देखने की जरूरत होती है क्योंकि दीपावली के आसपास जो भी पटाखों से दुर्घटनाएं होती हैं वो बच्चों के साथ ज्यादा होती हैं। ऐसे कपड़े ना पहने जिन कपड़ों में आग जल्दी पकड़ती हो और जोरदार आवाज वाले पटाखे न जलाएं।
प्रशासन न चेता तो हो सकते हैं विस्फोट
अब भी प्रशासन नहीं चेता तो शहरी और ग्रामीण इलाकों में पारा और इससे पहले चिनहट, सिसेंडी, काकोरी तथा बंथरा जैसी वारदातें हो सकती हैं। दरअसल, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक तीव्रता वाले पटाखों का अवैध कारोबार आज से नहीं, बल्कि स्थानीय पुलिस और सबंधित विभाग की अनदेखी के चलते पटाखा बनाने का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। लिहाजा इन कारोबारियों पर नकेल और पाबंदी लगाने के नाम पर पुलिस-प्रशासन कागजी कोरम तक ही सीमित है, नतीजन हर साल तमाम लोग काल के गाल में समां रहे हैं।
जंगलों में कोठरी बनाकर हो रहा बारूद का धंधा
सूत्रों के मुताबिक, राजधानी के मोहनलालगंज, काकोरी गोसाईगंज, नगराम, मलिहाबाद, सरोजनीनगर समेत कई इलाकों में बारूद का कारोबार हो रहा है। लाइसेंसी और गैर लाइसेंसी पटखा कारोबारी अपने काम में जुटे हुए हैं। कोई जंगल में कोठरी बनाकर बारूद से खेलता है तो कोई गली-कूचे में पटाखा बनाता है। नतीजन विस्फोट और मौत का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इन इलाकों में धड़ल्ले से बन रहे प्रतिबंधित पटाखे
सूत्रों के मुताबिक, चिनहट,गोसाईगंज, अमेठी, सिसेंडी, काकोरी, रहमतनगर, नगराम, बीकेटी, इटौजा,मलिहाबाद, माल के अलावा चिनहट की सीमा पर बड़े पैमाने पर अवैध पटाखा बनाने का कारोबार हो रहा है। यहां लहसुन बम से लेकर जोरदार धमाके वाले पटाखा धड़ल्ले से बनाये जा रहे हैं।
रोकथाम के लिए नहीं कोई योजनाकभी पटाखा बनाते समय तो कभी चेक करते वक्त धमाके में जान चली जाती है। फिर भी न पुलिस चेतती और न ही प्रशासन। ऐसे हादसे की रोकथाम के लिए फिलहाल आलाधिकारी के पास न तो कोई योजना है और न ही उसे अंजाम देने का जज्बा। कार्रवाई के नाम पर देखा जाये तो हर साल और हर हादसे के बाद सिर्फ पुलिस के दावे ही रह जाते हैं।
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