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कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या

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मेरठ । उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात गैंगस्टरों में से एक मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा हुआ है। सोमवार को पेशी से पहले ही फिल्मी अंदाज में बागपत जेल में गोली मारकर मुन्ना बजरंगी की हत्या हो गई। पिछले चार दशक से उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में मुन्ना बजरंगी का नाम चर्चा में था। यही नहीं पूर्वांचल के इस चर्चित डॉन ने सियासत में भी हाथ आजमाया लेकिन नाकामी हाथ लगी।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के निवासी मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह है। 1967 में जिले के पूरेदयाल गांव में जन्मे मुन्ना बजरंगी ने पांचवीं के बाद पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी। इस दौरान वह धीरे-धीरे जुर्म की दुनिया की ओर मुड़ता चला गया।

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कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी

17 साल में पहला केस दर्ज
मुन्ना के अपराध की दलदल में फंसने की शुरुआत काफी छोटी उम्र में ही हो गई। 17 साल की उम्र में ही उसके खिलाफ जौनपुर के सुरेही थाने में पुलिस ने मारपीट और अवैध हथियार रखने के आरोप में पहला केस दर्ज किया।

1984 में पहली हत्या
80 के दशक में मुन्ना को जौनपुर के एक स्थानीय माफिया गजराज सिंह का संरक्षण मिल गया। 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक कारोबारी को मौत के घाट उतार दिया। गजराज के इशारे पर जौनपुर में बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह के मर्डर में भी मुन्ना की ही नाम सामने आया। इसके बाद तो हत्याओं का मानो सिलसिला चल पड़ा।

90 के दशक में मुख्तार गैंग में शामिल
90 के दशक में मुन्ना बजरंगी ने पूर्वांचल के बाहुबली माफिया और राजनेता मुख्तार अंसारी का दामन थामा। मुख्तार का गैंग मऊ से ऑपरेट हो रहा था लेकिन पूरे पूर्वांचल में जुर्म की दुनिया में मुख्तार की तूती बोल रही थी। मुख्तार ने इसी दौरान अपराध से सियासत का रुख किया। 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मुख्तार ने मऊ से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद मुन्ना का सरकारी ठेकों में दखल बढ़ता गया। इस दौरान वह लगातार मुख्तार अंसारी की सरपरस्ती में काम करता रहा।

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कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी

2005 में कृष्णानंद राय की हत्या में आरोपी
पूर्वांचल में इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की सनसनीखेज हत्या हुई। दरअसल 2004 में बृजेश सिंह गैंग से नजदीकी रखने वाले कृष्णानंद राय ने गाजीपुर में बीजेपी के टिकट से विधानसभा का चुनाव जीता। इससे मुख्तार के वर्चस्व को चुनौती मिलने लगी। कहा जाता है कि इसी के बाद 29 नवंबर 2005 को मुख्तार के इशारे पर मुन्ना बजरंगी और उसके साथियों ने कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया। उत्तर प्रदेश पुलिस, एसटीएफ और सीबीआई इस मामले में मुन्ना बजरंगी का सुराग ढूंढ रही थी। उस पर सात लाख रुपये के इनाम का भी ऐलान हुआ। पुलिस से बचने के लिए वह लगातार ठिकाने बदल रहा था।

यूपी पुलिस और एसटीएफ के बढ़ते दबाव के बीच मुन्ना के लिए यूपी और बिहार में टिकने में मुश्किल हो रही थी। सुरक्षित ठिकाने की तलाश में मुन्ना मुंबई पहुंच गया। इस दौरान वह लंबे अरसे तक वहीं रहा। मुंबई मेें रहते हुए अंडरवर्ल्ड से भी उसने अपने संबंध मजबूत कर लिए। धीरे-धीरे वह मुंबई से ही अपने गैंग को ऑपरेट करने लगा।

सियासत में मिली नाकामी
मुन्ना बजरंगी इस बीच एक महिला को गाजीपुर से बीजेपी का टिकट दिलवाना चाहता था। इस वजह से मुख्तार अंसारी के साथ उसके संबंध बुरे दौर में पहुंच गए। अब मुख्तार के लोग भी उसकी सहायता नहीं कर रहे थे। बीजेपी में बात नहीं बनने पर मुन्ना कथित रूप से कांग्रेस के एक कद्दावर नेता की शरण में चला गया। बताया जाता है कि कांग्रेस के यह नेता भी जौनपुर जिले से ही ताल्लुक रखते थे और मुंबई में रहते हुए सियासत में सक्रिय थे। बजरंगी और उसकी पत्नी ने क्रमशः 2012 और 2017 में जौनपुर की मड़ियाहूं सीट से निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर यूपी विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था।

मुंबई के मलाड से हुई गिरफ्तारी
मुन्ना बजरंगी के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा केस दर्ज हैं। 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मलाड से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद ऐसी भी चर्चाएं चलीं कि मुन्ना ने एनकाउंटर का डर होने के चलते खुद ही प्लानिंग के तहत अपनी गिरफ्तारी कराई थी। ।

दिल्ली पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या के मामले में पुलिस को मुन्ना बजरंगी का हाथ होने का शक था। इसके बाद से उसे अलग-अलग जेल में रखा जाता रहा। मुन्ना बजरंगी ने एक बार दावा किया था कि अपने 20 साल के आपराधिक जीवन में उसने हत्या की 40 वारदातों को अंजाम दिया है। रविवार रात को ही मुन्ना को एक पेशी के सिलसिले में यूपी की झांसी जेल से बागपत जेल शिफ्ट किया गया था। यहां उसकी सनसनीखेज तरीके से हत्या कर दी गई।

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