रामजन्मभूमि मसले का क्या हल निकलेगा श्री श्री रविशंकर के संवाद से
अयोध्या। अच्छन मियां के फूल चढ़े हैं मंदिर मंदिर द्वार पर भोलानाथ की अगरबत्तियां जलती हर मजार पर…राम करे इस देश में दोनों की यारी बनी रहे जले बत्तियां भोला की अच्छन की बगिया हरी रहे। ये बात रामनगरी अयोध्या की है…जहां पर 16 नवम्बर को श्री श्री रविशंकर जी रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद से जुड़े पक्षकारों से मुलाकात और बातचीत कर इस मुद्दे का हल ढूंढने का प्रयास करेंगे।
मुस्लिम पक्षकारों की राय
बीते 21 मार्च के बाद ये प्रयास लगातार किए जा रहे हैं, दोनों पक्षकार कई बार साथ इस मुद्दे पर बैठ चुके हैं। लेकिन इसका कोई सार्थक हल भी तक नहीं निकल कर आया है। इस मामले से जुड़े पक्षकारों में मुस्लिम पक्षकार मरहूम हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल का कहना है कि श्री श्री का स्वागत है, लेकिन इस मामले में सरकार की ओर से कोई मध्यस्थ होना चाहिए।
वहीं इसी मामले से जुड़े दूसरे मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब का कहना है कि इस मामले में श्री श्री रविशंकर जी ने पहल की है ये स्वागत योग्य है। हम भी चाहते हैं कि इस मसले का कोई हल निकल जाये। लेकिन हालात 1992 जैसे ना दोहराए जायें और दूसरा इस मामले से पहले राजनीतिक दल और इस मुद्दे पर राजनीतिक की बिसात बिछाने वाले किनारे हटें।
हिन्दू पक्षकारों की राय
इस मामले में जहां मुस्लिम पक्षकारों ने अहने मनसूबे साफ कर दिए हैं, वहीं हिन्दू पक्षकारों में इस बार की ओढ़ मची है कि कौन इस मुद्दे को कैश कराता है। हांलाकि इस मामले में निर्मोही अखाड़ा के साथ विराजमान रामलला है। जहां निर्मोही अखाड़े की ओर से महंत रामदास का मानना है कि यहां पर भगवान रामलला के भव्य मंदिर के निर्माण के अलावा किसी पर समझौता नहीं हो सकता वहीं इसी बात पर दूसरे पक्षकार महंत धर्मदास भी अड़े हैं। लेकिन धर्मदास और महंत रामदास के विचार से परे है विश्व हिन्दू परिषद उसका कहना है कि अधिग्रहित भूमि पर समूचा राम मंदिर बने और मस्जिद बनाने का सवाल ही नहीं है। ये बात भाजपा के फायर ब्रॉड नेता और राज्यसभा सांसद विनय कटियार के अलावा सुब्रमण्यम स्वामी भी कह चुके हैं।
क्या होगा बातचीत से हल ये मुद्दा
इस मामले को लेकर पहले भी कई बार बातचीत और बहस की जा चुकी है। लेकिन अयोध्या की आम जनता की राय माने तो इस मामले को सरकार बेवजह तू देकर बढ़ा रही है। इस मामले की सरगर्मी के चलते आये दिन रामनगरी में रोजगार धन्धे चौपट हो जाते हैं। कुछ लोगों की माने तो भाजपा में आपसी मतभेद के चलते यहां पर हो रहे नगर निगम चुनाव में अन्तिम दौर में प्रत्याशियों का चयन नहीं बेहतर हो पाया और भाजपा ने एक डमी प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है। इसीलिए सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से नगर निकाय चुनाव का प्रचार अभियान शुरू करना पड़ा है। अब इसी के चलते भाजपा इस मामले को बढ़ा रही है। भाजपा हर चुनाव के पहले राम मंदिर का कार्ड खेलती है।
क्या होगा श्री श्री रविशंकर के संवाद से हल
बीते 8 अगस्त को इस मामले में एक नया पेंच शिया वक्फ बोर्ड ने एक हलफनामा देकर फंसा दिया है। इसके साथ ही शिया वक्फ बोर्ड का दावा है कि वह विवादित हिस्सा जिस पर शुरूआत से सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना दावा बता रहा है वास्तव में उसका है ही नहीं है। इस पर मालिकाना हक शिया वक्फ बोर्ड का है। लेकिन मस्जिद के निर्माण के पहले वहां मंदिर था ये बता भी सच है। इसलिए इस जमीन को हिन्दुओं को देकर वहां राम का भव्य मंदिर बनाना चाहिए ।
इस हलफनामे के बाद से अब कोर्ट को इस पहलू पर भी विचार करना होगा कि क्या इस मामले में कोई नया रूख आ सकता है। देश की सर्वोच्च अदालत में अभी इस देश का सबसे गम्भीर मुद्दा सुनवाई में पड़ा हुआ। इस मामले को लेकर 21 मार्च को कोर्ट ने एक बड़ा आदेश देते हुए कहा था कि कि दोनों पक्ष आपसी सुलह समझौते के जरिए इस मामले मे पहल करें कोर्ट मध्यस्तता करने को तैयार है। लेकिन इस मामले में कोई सार्थक हल नहीं हो पाया था। लेकिन जब शिया बोर्ड का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा तो रामनगरी में इसको लेकर पक्षकारों में कदमताल तेज हो गई।
मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब और इकबाल अंसारी ने इस पूरे प्रकरण पर सरकार से अनुरोध करते हुए कहा कि ये मामला ऑउट ऑफ कोर्ट सुलझ सकता है। अगर प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में मध्यस्थता करें तो। हम लोग बातचीत कर इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। हम किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाने का कोई मकसद रखते हैं। अगर पीएम मोदी पहल करेंगे तो ये मुद्दा निश्चित तौर पर सुलझ जायेगा।
हांलाकि आज तक कई बार कई कोशिशें हुई हैं। माना जा रहा है कि इस मामले के दो अहम पक्षकारों हाजीमहबूब और धर्मदास के बीच किसी मसौदे पर इस मुद्दे का हल तय हो चुका है। लेकिन ये किसी बड़े चेहरे की मध्यस्थता में इस समझौते के मसौदे को सार्वजनिक करना चाह रहे हैं। अब देखना होगा कि इस मुद्दे को लेकर शिया वक्फ बोर्ड और श्री श्री रविशंकर की पहल कितना असर डाल पायेगी। लेकिन ये साफ है कि राम जन्मभूमि मामला इतना पेचीदा बन गया है कि कोर्ट को भी एक बार इस मामले में फैसला लेने में एक लम्बा वक्त लग सकता है।
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