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सत्तर साल : संतराबाई दुष्कर्म पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहीं कानूनी लड़ाई

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बिलासपुर जांजगीर-चांपा निवासी 70 वर्षीय संतराबाई काछी बीते एक दशक से दुष्कर्म पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहीं हैं। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में उनकी जनहित याचिका पर न केवल सुनवाई हो रही है बल्कि तीन महत्वपूर्ण मांगों पर सहमति जताते हुए कोर्ट ने राज्य शासन को उन पर अमल करने के लिए निर्देश भी जारी किए हैं। वर्ष 2010 में उन्होंने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वकील मीना शास्त्री के माध्यम से जनहित याचिका दायर की। सबसे पहले उन्होंने क्षतिपूर्ति का मुद्दा उठाया।

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दुष्कर्म पीड़िताओं को शासन द्वारा 25 हजार से 50 हजार रुपये मुआवजा दिया जाता था। संतराबाई ने इसे बढ़ाने की मांग की। उन्होंने पीड़िताओं के पुनर्वास की मांग रखी। उनका कहना था कि ऐसी युवतियों या फिर महिलाओं को समाज में वह स्थान नहीं मिल पाता जिसकी वे हकदार हैं।

दुष्कर्म पीड़िताओं को शासन द्वारा 25 हजार से 50 हजार रुपये मुआवजा दिया जाता था। संतराबाई ने इसे बढ़ाने की मांग की। साथ ही उन्होंने पीड़िताओं के पुनर्वास की मांग रखी। उनका कहना था कि ऐसी युवतियों या फिर महिलाओं को समाज में वह स्थान नहीं मिल पाता, जिसकी वे हकदार हैं।

छह साल बाद पहली सफलता तब मिली जब छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने क्षतिपूर्ति योजना में बदलाव के राज्य शासन को निर्देश दिए। हाई कोर्ट के निर्देश पर राज्य शासन ने 14 सितंबर 2016 को पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना में मुआवजा राशि में बढ़ोत्तरी कर दी गई।

राज्य शासन ने कोर्ट को बताया कि अब महिलाओं को 25 हजार के बजाय एक लाख रुपये व नाबालिगों को 50 हजार रुपये के बजाय तीन लाख रुपये मुआवजा तय किया गया है। गांव की दुष्कर्म पीड़िता की पीड़ा देख जुटीं अभियान में करीब 35 साल पहले गांव में एक महिला से दुष्कर्म की घटना हुई थी। पीड़ित महिला की पीड़ा देखकर संतराबाई ने दुष्कर्म पीडि़ताओं को न्याय दिलाने की ठानी। संतराबाई 36 वर्ष की उम्र से शराबबंदी के लिए अभियान चला रहीं हैं। उनका यह अभियान आज भी जारी है।

विशेष कोर्ट के गठन की दूसरी मांग भी पूरी

संतराबाई की लड़ाई अभी जारी है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने उनकी दूसरी और महत्वपूर्ण मांग भी पूरी कर दी है। संतराबाई ने अपनी याचिका में मानवीय पहलुओं की ओर हाई कोर्ट का ध्यान खींचा था। उन्होंने कहा कि दुष्कर्म पीड़िताओं की खुले कोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष द्वारा ऐसे सवाल किए जाते हैं, जिनका जवाब देना मुश्किल हो जाता है। परिवार के लोग भी कोर्ट में मौजूद रहते हैं। बचाव पक्ष के वकीलों की कोशिश रहती है कि पीड़िताओं को मानसिक रूप से और हताश किया जाए। संतराबाई ने ऐसे प्रकरणों की सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट के गठन की मांग की थी। विशेष कोर्ट में महिला जजों द्वारा सुनवाई का अनुरोध किया था। डिवीजन बेंच ने उनकी यह महत्वपूर्ण मांग भी स्वीकार कर ली है।

 

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