Love story: पद्मजा नायडू से शादी करने वाले थे नेहरू!
ये वो दौर था जब प्रधानमंत्री हाउस की कहानियां राजनयिक सर्कल में काफी रस लेकर सुनाई जाती थीं. जवाहर लाल नेहरू की तमाम प्रेम कथाएं चर्चा का विषय थीं. उनके जीवन में एक नहीं कई महिलाएं थीं. नेहरू को लेकर महिलाओं में गजब का क्रेज भी था. वो उनकी ओर खींची चली आती थीं.
ऐसी ही एक कहानी मुझे 50 के दशक तक देश के शीर्ष उद्योगपति रहे रामकृष्ण डालमिया की बेटी नीलिमा डालमिया अधर ने सुनाई. उन्होंने बताया कि उनकी मां दिनेश नंदिनी राजस्थान की उभरती हुई कवियित्री थीं. तब तक उनकी डालमिया से शादी नहीं हुई थी. वह नेहरू के प्यार में पागल थीं. हालांकि ये एकतरफा प्यार था.
उन्हें पता चला कि नेहरू वर्धा में गांधी आश्रम आए हुए हैं. वह उनसे मिलने अकेली ही नागपुर से वर्धा पहुंच गईं. उन्होंने सीधे-सीधे नेहरू से प्यार का इजहार कर डाला. वह अपना घर तक छोड़ने को तैयार थीं. उन्होंने नेहरू से अनुरोध किया कि वह उनके साथ रहकर काम करना चाहती हैं. नेहरू तैयार नहीं हुए. ये लिखने का तात्पर्य केवल इतना है कि बताया जा सके कि उस समय शिक्षित और अभिजात्य महिलाओं में नेहरू का किस कदर क्रेज था. यही कारण भी है कि उनके जीवन में कई प्रेम कथाएं हैं, कई नायिकाएं, जो उन पर अधिकार जताती रहीं. उनके करीब रहीं.मृदुला साराभाई से निकटता
मृदुला गुजरात के प्रसिद्ध उद्योगपति और धनाढ्य साराभाई परिवार की बेटी थीं. वह कांग्रेस की समर्पित कार्यकर्ता थीं. नेहरू के बहुत करीब थीं. हालांकि 1946 तक नेहरू उनमें दिलचस्पी खो चुके थे. एम ओ मथाई ने अपनी किताब रिमिनिसेंस ऑफ द नेहरू एज में उन्हें अजीबोगरीब महिला बताया. बाद में वह कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के साथ काम करने लगीं. उन्हें कथित देशविरोधी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार करके जेल में भी डाला गया.
सरोजिनी नायडू की बड़ी बेटी थीं पद्मजा नायडू.
पद्मजा नायडू से रिश्ते
पद्मजा देश की स्वर कोकिला कही जाने वाली सरोजिनी नायडू की बड़ी बेटी थीं. वह पहले हैदराबाद के नवाब सालार जंग के प्यार में दीवानी हुईं. फिर नेहरू के करीब आ गईं. मथाई लिखते हैं, 1946 जब मैं उनसे इलाहाबाद में मिला, तब वह नेहरू के घर को संभालने में लगी हुईं थीं. फिर दिल्ली में उन्होंने यही किया. वह हमेशा नेहरू के बगल के कमरे में रहने पर जोर देती थीं. नवंबर के पहले हफ्ते में वह हमेशा हैदराबाद से नेहरू के आवास पर आ जाती थीं. ताकि नेहरू (14नवंबर), इंदिरा (19 नवंबर) और अपना (17 नवंबर) बर्थ-डे साथ मना सकें. इंदिरा को उनका आना अच्छा नहीं लगता था. न ही उनका वहां लंबा ठहरना. ये वो समय भी था, जब नेहरू की करीबी लेडी माउंटबेटन से भी बनी हुई थी.
खबरें थीं कि नेहरू शादी के लिए प्रोपोज करेंगे
1947 के जाड़ों में नेहरू को लखनऊ जाना था. सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की राज्यपाल थीं. खबरें फैलने लगीं कि नेहरूजी पद्मजा को शादी के लिए प्रोपोज करेंगे. नेहरू लखनऊ आए लेकिन लेडी माउंटबेटन के साथ. ये बात वहां पहले से मौजूद पद्मजा को खराब लगी. एक साल बाद जब उन्होंने नेहरू के बेडरूम में एडविना के दो फोटोग्राफ देखे तो खासी नाराज और आहत हुईं कि वहां उनकी कोई फोटो क्यों नहीं है. उन्होंने तुरंत वहां अपनी एक छोटी सी फोटो लगा दी.
वह नेहरू से शादी करना चाहती थीं
1948 में पद्मजा जब हैदराबाद से सांसद चुनी गईं तो दिल्ली में प्रधानमंत्री हाउस में ठहरीं, वो भी नेहरू के बगल के कमरे में. बाद में उन्हें किसी तरह से वहां से भेजा गया. मथाई का मानना था कि वह नेहरू से शादी करना चाहती थीं लेकिन जब उन्हें लगा कि नेहरू के जीवन में केवल वही नहीं बल्कि कई स्त्रियां हैं. तो वह काफी उदास भी हुईं. हालांकि बाद में पद्मजा को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया. उन्होंने इस पद पर खुद को बेहतर भी साबित किया. हालांकि कहा जाता है कि अगर इंदिरा बीच में नहीं होतीं तो नेहरू उनसे शादी कर सकते थे. यह बात खुद नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने इंदिरा की करीबी दोस्त पुपुल जयकर को बताई थी.
नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने पुपुल जयकर को बताया था कि नेहरू अपनी बेटी इंदिरा को दुखी नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने पद्मजा से शादी नहीं की.
क्यों नहीं की शादी
पुपुल ने अपनी किताब में लिखा, आधी सदी बाद मैंने विजयलक्ष्मी पंडित से नेहरू और पद्मजा के संबंधों के बारे में पूछा. उनका जवाब था, ‘तुम्हें क्या पता नहीं पुपुल कि वे वर्षों तक साथ रहे?’ यह पूछने पर कि उन्होंने पद्मजा से शादी क्यों नहीं की, उन्होंने जवाब दिया, ‘उन्हें लगा कि इंदु पहले ही बहुत सदमा झेल चुकी है, वे उसे और चोट नहीं पहुंचाना चाहते थे.’
जब पद्मजा को गुस्सा आया
नेहरू के महिलाओं के प्रति अनुराग को लेकर भी काफी कुछ लिखा और कहा गया. प्रधानमंत्री हाउस के चीफ सेक्यूरिटी अफसर रूस्तम जी ने अपनी किताब में लिखा कि नेहरू को महिलाओं का साथ यकीनन भाता था. लेकिन आमतौर पर वो महिलाएं प्रखर औऱ मेघा वाली थीं. ‘इंडियन समरः द सीक्रेट हिस्ट्री ऑन एंड ऑफ एन एम्पायर’ के लेखक अलेक्स वॉन टेजमन ने कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में कहा, एक बार पद्मजा ने गुस्से में एडविना की तस्वीर फेंक दी.
ये श्रृद्धा माता कौन थीं
ये 1948 की बात है. एक युवा संन्यासिन बनारस से नई दिल्ली आई. उसका नाम श्रृद्धा माता था. वह संस्कृत में विद्वान थीं. कई सांसद उनके शिष्य़ थे. वह आकर्षक काया वाली सुंदर महिला थीं. पहले तो नेहरू ने उनसे मिलने से इन्कार कर दिया. फिर जब उनकी नेहरू से पहली मुलाकात हुई तो ये लंबी चली. फिर तो मुलाकातें लगातार ही होने लगीं. कहा जाता है कि उनका नेहरू पर प्रभाव भी दिखने लगा. वह सीधे प्रधानमंत्री हाउस में आती थीं. अक्सर रात में तब आती थीं जब नेहरू अपना काम खत्म कर चुके होते थे. बाद में वह गायब हो गईं. इसके कुछ दिनों बाद फिर बेंगलुरु से प्रधानमंत्री हाउस में उनके पत्रों का एक बंडल भेजा गया, जो नेहरू ने उन्हें लिखे थे. साथ में एक डॉक्टर का पत्र आया कि ये पत्र उन्हें उस महिला से मिले हैं, जो यहां चर्च अस्पताल में एक बच्चे को जन्म देने आई थी.
नेहरू से थे रोमांटिक रिश्ते
बाद में कुछ समय गायब रहने के बाद उत्तर भारत लौटीं. उन्होंने जयपुर में अपना स्थायी ठिकाना बना लिया. वहां सवाई मानसिंह ने उन्हें रहने के लिए आलीशान किला दिया. बाद में जब इंडिया टुडे की एक रिपोर्टर ने उनसे मुलाकात करने में सफलता हासिल की. तब उन्होंने संकेतों में जाहिर किया कि उनके और नेहरू के बीच प्रगाढ़ रोमांटिक रिश्ते थे. बाद में कुछ लोगों ने साजिश रचकर उनके और नेहरू के बीच दूरियां बनाने की कोशिश की. हालांकि उनके जयपुर में रहने के दौरान नेहरू एक बार उनसे मिलने गए. श्रृद्धा माता का जिक्र बाद में खुशवंत सिंह ने भी अपनी किताब में किया. वह उनसे जब मिले तो श्रृद्धा माता ने उनसे नेहरू के करीबी का दावा किया.
पंडित जवाहर लाल नेहरु और ए़़डविना माउंटबेटन (getty)
कैसे थे एडविना माउंटबेटन से रिश्ते
इसमें कोई शक नहीं कि नेहरू और लेडी एडविना माउंटबेटन एक दूसरे से प्यार करते थे। हां, इन रिश्तों को कहां तक आगे ले जाकर देखा जाए, उसे लेकर जरूर भ्रम हैं. नेहरू और एडविना के बीच जो एक आत्मीयता पनपी, वो तब तक कायम रही, जब तक एडविना जिंदा रहीं. केएफ रूस्तमजी की डायरी के संपादित अंश किताब के रूप में प्रकाशित हुए. उसमें उन्होंने भी एडविना और नेहरू के प्यार पर चर्चा करते हुए लिखा, दोनों अभिजात्य थे. दोनों की रुचियां परिष्कृत थीं. दोनों एक दूसरे को काफी पसंद करते थे.
उस अध्याय को क्यों रोका गया
जब मथाई ने रिमिनिसेंस ऑफ नेहरू लिखी तो उसमें उन्होंने एक अध्याय खासतौर पर नेहरू के जीवन में आई महिलाओं पर था. बाद ये अध्याय उन्होंने खुद ही प्रकाशित होने से रोक दिया. इस अध्याय की जगह प्रकाशक ने एक टिप्पणी लिखी कि चूंकि ये अध्याय लेखक का नितांत व्यक्तिगत अनुभव था और इसे उन्होंने बिना किसी निरोध के डीएच लारेंस शैली में लिखा था, जिसे लेखक ने खुद ही आखिरी समय में प्रकाशन से रोक लिया.
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