मजदूरों के फंड से खरीदे गए लैपटॉप, वॉशिंग मशीन, SC हैरान
सर्वोच्च न्यायालय ने हैरानी जताई है.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकार के कार्य व्यवहार को हैरान और बहुत चिंता पैदा करने वाला बताया.
कोर्ट ने कहा कि निर्माण श्रमिक कानून के तहत उपकर लगाकर सरकार की ओर से एकत्रित किए गए धन को लाभार्थियों के कल्याण पर खर्च किए जाने के बजाए बेकार किया गया और दूसरे कामों में लगाया गया.
न्यायाधीश मदन बी लोकर और न्यायाधीश दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने केंद्रीय श्रम सचिव को 10 नवंबर से पहले न्यायालय में पेश होने का निर्देश दिया है. साथ ही ये बताने को कहा है कि ये अधिनियम कैसे लागू किया और क्यों इसका दुरुपयोग हुआ.
इससे पहले न्यायालय के कहने पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने न्यायालय में शपथ पत्र दाखिल किया था, जिसमें हैरान करने वाली जानकारी दी गई थी. कैग ने बताया कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए एकत्र किए धन से उनके लिए लैपटॉप और वॉशिंग मशीन खरीदे गए.नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिस्लेशन ऑन कंस्ट्रक्शन लेबर नाम के गैर सरकारी संगठन ने जनहित याचिका दायर करके आरोप लगाया था कि रीयल एस्टेट कंपनियों से निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों के लिए कल्याण के लिए उपकर लगाकर पूंजी एकत्र की गई थी. उन्होंने कहा था कि इस पूंजी का सही से इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि लाभ देने के लिए लाभार्थियों की पहचान के लिए कोई तंत्र नहीं है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है, क्योंकि लाभार्थियों (निर्माण श्रमिकों) को वो लाभ नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे और उनके लिए एकत्रित धन को श्रम कल्याण बोर्डों ने यदि हड़पा न हो तो भी उसको बर्बाद ज़रूर किया है.
न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए टिप्पणी कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए भारी मात्रा में इस क्षेत्र से 29,000 करोड़ रुपए एकत्र किया गया और उसका दस फीसदी भी निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर नहीं खर्च किया गया.
न्यायालय ने 2015 नाराज़गी जताई थी कि 26,000 करोड़ रुपए की विशाल राशि बिना खर्च किए पड़ी है. इससे बुरी बात और क्या हो सकती है.
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