क्रोएशिया के फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचते ही फुटबॉल की दुनिया में हलचल मच गई. सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ क्रोएशिया की ‘चमत्कारिक’ जीत ने भारत में भी सुर्खियां बटोरीं.
भारतीय फुटबॉलप्रेमी क्रोएशिया की अभूतपूर्व सफलता की तरफ ललचाई नजरों से देख रहे हैं. सवाल फिर उठ रहा है- आखिर भारत फुटबॉल विश्व कप में क्यों नहीं है..?
दुनिया की आबादी 7.6 अरब से ज्यादा है. 2018 के विश्वकप में खिलाड़ियों की कुल संख्या 736 है. इनमें भारतीय खिलाड़ियों की संख्या शून्य है. यह ‘खालीपन’ हर चार साल बाद होने वाले वर्ल्ड कप के दौरान विशाल भारत को सालता है.
क्रोएशिया मध्य और दक्षिण-पूर्व यूरोप का एक छोटा-सा देश है, जिसकी जनसंख्या महज 42 लाख है. इतनी जनसंख्या तो हमारे देश के किसी बड़े शहर की होती है.
मौजूदा वर्ल्ड कप में क्रोएशिया के ही ग्रुप में आइसलैंड की टीम थी. महज 3.34 लाख की जनसंख्या वाले इस छोटे देश ने भी हमें बौना साबित किया हैं. आइसलैंड भले ही ग्रुप स्टेज से आगे न निकल पाया हो, लेकिन वर्ल्ड कप में उसकी मौजूदगी मात्र से हम चौंक जाते हैं.
सुनील छेत्री
हम भारत में फुटबॉल के सकारात्मक पक्ष की ओर भी नजर डाल लें. रैंकिंग की बात करें, तो 2014 में भारतीय टीम दुनिया में 170वें नंबर पर थी, जो अब टॉप-100 (97वें नंबर) में है. इंडियन सुपर लीग (आईएसएल), आई-लीग और यूथ लीग भारत में फुटबॉल के आधार को मजबूत कर रही है.
हाल ही में भारत ने इंटरकॉन्टिनेंटल कप फुटबॉल टूर्नामेंट का खिताब जीता. कप्तान सुनील छेत्री के जोशीले प्रदर्शन ने भारतीय फुटबॉल की उम्मीदों को जरूर जगाया है. फीफा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लेटर ने एक बार कहा था- ‘भारत फुटबॉल जगत का सोता हुआ शेर है’. देखना यह होगा कि इस शेर की नींद कब खुलती है और भारतीय फुटबॉल प्रेमियों की उम्मीद कब पूरी होती है.
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