नई दिल्ली । आदिवासी महिला लक्ष्मीकुट्टी का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में जिक्र किया। 26 जनवरी को भारत सरकार की ओर से 75 वर्षीय जंगल की दादी लक्ष्मीकुट्टी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लक्ष्मीकुट्टी को यह पुरस्कार औषधि के लिए दिया गया, जो करीब 500 हर्बल दवाएं बना चुकी हैं। इन दवाओं ने खासतौर पर सर्पदंश एवं कीटों के डंक से पीड़ित हजारों लोगों का इलाज किया है। जंगल की ये दादी हजारों लोगों की जिंदगियों को बचाया है।
लक्ष्मीकुट्टी केरल के कल्लार में फोल्कलोर एकेडमी में पढ़ाती हैं और एक जंगल में आदिवासी बस्ती में पत्तों से बनी छत वाली एक छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं। वह अपने इलाके से एक मात्र ऐसी आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने 1950 के दशक में स्कूली शिक्षा हासिल की थी। हालांकि उन्होंने केवल 8वीं तक ही शिक्षा हिस की हैं, लेकिन इसके बावजूद औषधि का ज्ञान हासिल करने के लिए उनकी कम पढ़ाई ने कोई बाधा उत्पन्न नहीं की।
75 वर्षीय लक्ष्मी को जंगल की दादी मां भी कहते हैं। वो बताती हैं कि हर्बल औषधि से ट्रीटमेंट का ज्ञान उन्हें उनकी मां से मिला था। उनका दावा है कि वे 500 से ज्यादा हर्बल दवाइयां बनाने की तकनीक जानती हैं। केरल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट उनकी दवाइयों पर किताब तैयार करने वाली है। लक्ष्मी का सपना है कि वो आदिवासियों के लिए अपनी ही झोपड़ी में छोटा सा क्लीनिक खोलें।
पद्मश्री सम्मानित लक्ष्मीकुट्टी ने कहा, ‘प्रकृति सभी उपचार प्रदान करती है। पारम्परिक चिकित्सा का ज्ञान मुझे मेरी मां से मिला। सांप के जहर के इलाज के लिए लोग मेरे पास आते हैं।मैं सभी प्रकार के सांपों के जहर और कई अन्य बीमारियों का इलाज करती हूं।’
थी। जिस कारण लोग समय पर इलाज के लिए मरीजों को लाने में सक्षम नहीं हैं, जहर (सांप के काटे लोगों का) का उपचार करने के लिए जल्द से चल्द चिकित्सा प्रदान करना महत्वपूर्ण है। मेरे बेटे की मृत्यु इसलिए हुई क्योंकि हम उसे समय पर अस्पताल ले नहीं सका क्योंकि वहां सड़क नहीं थी।’
बता दें कि सबसे पहले 1995 में लक्ष्मी तब सुर्खियों में आईं थी, जब उन्हें नैचरोपैथी के लिए ‘नट्टू वैद्य रत्न’ पुरस्कार केरल सरकार की ओर से मिला था। लक्ष्मीकुट्टी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि भले ही वह घने जंगल में रहती हों लेकिन वे किसी विज्ञानी की तरह ही प्रयोग करती हैं। जंगल के पेड़, फूल, फल और पेड़ की छालों का इस्तेमाल कर वे मकड़ी, सांप और रेबीज (कुत्ते के काटे) का इलाज करती हैं। वे न केवल पिछले 60 दशकों से लोगों का इलाज कर उनकी मदद कर रही हैं, बल्कि शोधकर्ताओं, छात्रों और वनस्पति विज्ञान में रुचि रखने वालों के साथ अपना ज्ञान भी बांटती हैं। साल 2016 में उन्हें इंडियन बायोडाइवर्सिटी कांग्रेस ने हर्बल मेडिसिन के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किया। लोगों का इलाज करने के अलावा लक्ष्मी कविताएं लिखने का भी शौक रखती हैं।
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