चैत्र माह से ही भारतीय नववर्ष का प्रारंभ भी होता है। यह माह कैलेंडर का पहला माह है। चैत्र नवरात्रि पर पहले दिन मां दुर्गा की चौकी की स्थापना , कलश स्थापना और कलश के ऊपर नारियल स्थापित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलश के ऊपर स्थापित नारियल को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है और कलश में तैंतीस कोटी देवी देवताओं का वास माना जाता है।
माना जाता है कि कलश के ऊपर नारियल स्थापित करने से मां लक्ष्मी का वास सदैव घर में होता है। इसलिए जब भी कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है तो उस पर नारियल अवश्य स्थापित किया जाता है। जिससे सभी देवताओ का वास घर में हो सके और किसी भी शुभ कार्य में किसी भी प्रकार का कोई विघ्न उत्पन्न न हो। इसी कारण से नारियल को अत्यंत शुभ माना जाता है।
यदि आप कलश स्थापना करते हैं और उस पर नारियल स्थापित नहीं करते हैं तो आपका कलश स्थापन अधूरा माना जाता है। शास्त्रों में तो यह भी कहा जाता है कि यदि कलश पर स्थापना में नारियल को कलश पर यदि न रखा जाए तो वह शुभ काम कभी भी पूरा नहीं होता और कई प्रकार के विघ्न उस शुभ और मांगलिक कार्यों में आते हैं। इसके साथ ही नवरात्रि पूजा में नारियल का विशेष महत्व बताया गया है। क्योंकि नवरात्रि के आखिरी दिन मां दुर्गा की पूजा के बाद कन्या पूजन में नारियल का प्रसाद दिया जाता है और तब ही नवरात्रि के व्रत सफल होते हैं।
यदि इस दिन नारियल का प्रसाद कन्या पूजन में न रखा जाए तो न तो नवरात्रि के व्रत सफल होते हैं और न हीं मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन कुछ लोग नवरात्रि पर कलश के ऊपर स्थापित नारियल को तोड़ देते हैं। जो शास्त्रों में बिल्कुल ही गलत बताया गया है।शास्त्रों में ऐसा करना वर्जित माना गया है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके घर में कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो सकती है। माना जाता है कि कलश पर स्थापित नारियल को मां लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है और जब आप उस नारियल को तोड़ देते हैं तो मां लक्ष्मी आपसे नाराज हो जाती है और आपसे रूठ कर आपसे दूर चली जाती है। जिसके बाद आपको दरिद्रता का भी सामना करना पड़ सकता है।
विद्वानों के अनुसार कलश पर स्थापित नारियल को कभी भी तोड़ना नहीं चाहिए। बल्कि इसके कई उपयोग बताएं गए हैं जो आपको आपकी सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है। यदि आप पैसों की समस्या से परेशान हैं तो आपको नवरात्रि के अंतिम दिन पूजा करने के बाद उस नारियल को अपने पैसे रखने वाले स्थान पर रख देना चाहिए। ऐसा करने से आप पर सदैव मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। वहीं यदि किसी स्त्री को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो उसे अपने ऊपर से इस नारियल को सात बार उतारकर अपने घर के मंदिर में स्थापित करना चाहिए । इसके साथ ही यदि आप शत्रु बाधा से परेशान हैं तो आपको इस नारियल को सात बार अपने ऊपर से घूमाकर किसी बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। इससे आपकी शत्रु बाधा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी और आपके शत्रु आपको कभी भी परेशान नहीं करें ।
उपवास : नवरात्रियों में कठिन उपवास और व्रत रखने का महत्व है। उपवास रखने से अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई हो जाती है। उपवास रखकर ही साधना की जा सकती है। यथासम्भव नमक और मीठा (चीनी मिष्ठानादि) छोड़ दें। उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएं और मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
नियम संयम से रहें- इन नौ दिनों में भोजन, मद्यमान, मांस-भक्षण और स्त्रिसंग शयन वर्जित माना गया है। लेकिन जो व्यक्ति इन नौ दिनों में पवित्र नहीं रहता है उसका बुरा वक्त कभी खत्म नहीं होता है। यदि आपने 9 दिनों तक साधना का संकल्प ले लिया है तो उसे बीच में तोड़ा नहीं जा सकता। मन और विचार से पवित्रता बनाकर रखें। छल, कपट प्रपंच और अपशब्दों का प्रयोग ना करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें, गलत लोगों की संगति ना करें।
इसके अतिरिक्त, पूरा या नियमित समय तक मौन, भूमि-शयन, चमड़े की बनी वस्तु का त्याग, पशुओं की सवारी का त्याग, अपनी शारीरिक सेवाएं स्वयं करना तय करें। अपनी सुख-सुविधाओं को यथासम्भव त्याग कर उपासना में लीन होना ही तप है। पूजा या साधना का स्थान और समय भी नियुक्त होना चाहिए।
साधारण साधना : नवदुर्गा में गृहस्थ मनुष्य को साधारण साधना ही करना चाहिए। इस दौरान उसे घट स्थापना करके, माता की ज्योत जलाकर चंडीपाठ, देवी महात्म्य परायण या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। यदि यह नहीं कर सकते हैं तो इन नौ दिनों के दौरान प्रतिदिन एक माला माता के मंत्र का जाप करना चाहिए। साधना में किसी भी प्रकार की गलती माता को क्रोधित कर सकती है। यदि आप इस दौरान बीमार पड़ जाते हैं, आपको अचानक ही कहीं यात्रा में जाना है या घर पर किसी भी प्रकार का संकट आ जाता है तो इस दौरान उपवास तोड़ना या साधना छोड़ना क्षम्य है।
सामान्यजन माता के बीज मंत्र या शाबर मंत्रों का जाप कर सकते हैं या अष्टमी की रात्रि में दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक मंत्र को विधिवत सिद्ध किया जाता है। सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का 108 बार अष्टमी की रात्रि में पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में कम से कम दोनों काल (प्रातः एवं सायं) में तीन घंटा समय निकाल कर 26 माला प्रति दिन नियमित समय पर जपना चाहिए। शौच स्नान से निवृत्त होकर शुद्धतापूर्वक प्रातःकालीन उपासना पूर्व मुख और संध्याकाल की उपासना पश्चिम मुख होकर करनी चाहिए। जप के समय घी का दीपक जलाकर रखें और जल का एक पात्र निकट में रखें।
कन्या भोज व दान : सप्तमी, अष्टमी और नौवमी के दिन कन्या पूजन करके उन्हें अच्छे से भोजन ग्रहण कराना चाहिए। यदि आप कन्या भोज नहीं कर रहे हैं तो आप गरीब कन्याओं को दान दक्षिणा भी दे सकते हैं। खासकर उन्हें हरे वस्त्र या चुनरी भेंट करें। आप यह कार्य किसी मंदिर में जाकर भी कर सकते हैं। वहां आप माता को खीर का भोग लगाकर कन्याओं को दान दें।
हवन : अंतिम दिन विधिवत रूप से साधना और पूजा का समापन करके हवन करना चाहिए। हवन करते वक्त हवन के नियमों का पालन करना चाहिए। उसके बाद में निर्माल्य का विसर्जन करना चाहिए। उपरोक्त पांच कार्य यदि आप नियम से और श्रद्धापूर्वक करेंगे तो आपकी जो भी मनोकामना होगी वह पूर्ण होगी।
VIDEO : मनोज तिवारी की सुरीली आवाज चैत्र नवरात्रि में देवी मां की वंदना
Disclaimer : इस न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करें और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य में कोई कमी हो अथवा कोई कॉपीराइट आपत्ति हो तो वह jansandeshonline@gmail.com पर सूचित करें। साथ ही साथ पूरी जानकारी तथ्य के साथ दें। जिससे आलेख को सही किया जा सके या हटाया जा सके ।