Home धार्मिक इस मंत्र के जाप से दूर होंगे दुख और परेशानियां!

इस मंत्र के जाप से दूर होंगे दुख और परेशानियां!

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वर की उपासना अलग-अलग रूपों में की जाती है। हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवताओं को उपास्य देव माना गया है व विभिन्न शक्तियों के रूप में उनकी पूजा की जाती है। परेशानियों, कठिनाइयों के चलते हम ग्रह शांति के उपायों के रूप में कई देवी-देवताओं की आराधना, मंत्र जाप एक साथ करते हैं। जो सकारात्मक प्रभाव देने की बजाय नकरात्मकता का संचार करते हैं।
शुक्र के अशुभ गोचर के दौरान या फिर शुक्र की दशा में निम्न मंत्रों का पाठ प्रतिदिन या फिर शुक्रवार के दिन करने पर समय के अशुभ फलों में कमी होने की संभावना बनती है। मुंह के अशुद्ध होने पर मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर विपरीत फल प्राप्त हो सकते हैं।
शुक्र प्रेम का ग्रह माना जाता है। शुक्र देव की पूजा करने से प्रेम विवाह की संभावनाएं प्रबल होती हैं। प्रेम का पूरा मामला शुक्र ग्रह पर र्निभर करता है। शुक्र मजबूत है तो रिश्ते बनेंते हैं। वैसे बहुत कुछ बाकी ग्रहों के शुक्र से मिलन पर भी निर्भर करता है। जातक के जीवन में मुख्य रूप से शुक्र ग्रह प्रेम की भावनाओं को प्रदर्शित करता है।
‘मून’ यानी चन्द्र मन का जातक होने के कारण जब शुक्र के साथ मिलन करता है तो प्रेम की भावनाएं जागृत होती है। कुंडली में पांचवां भाव हमारे दिल के भावों को प्रस्तुत करता है। विशेषकर प्रेम संबंधों को। राशियों के अनुरूप प्रेम संबंधों से सरोबार जातक की पहचान सरल नहीं है क्योंकि शुक्र के अलावा अन्य ग्रह भी रिश्तों के बनने-बिगड़ने में बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं।

इन मंत्रों के जाप से  दूर होगी दुख और परेशानियां!

शुक्र देव सामान्य मंत्र: ” ॐ शुं शुक्राय नमः ”

शुक्र देव बीज मंत्र: ” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः ”

शुक्र देव गायत्री मंत्र: ” ॐ शुक्राय विद्महे , शुक्लाम्बर – धरः , धीमहि तन्न: शुक्र प्रचोदयात ”

ये मंत्र करेंगे दरिद्रता का खात्मा” ॐ अन्नात्परिश्रुतो रसं ब्रह्म्न्नाव्य पिबत् – क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापति ! ऋतेन सत्यमिन्द्रिय्वीपानं-गुं -शुक्र्मन्धस्य – इन्द्रस्य – इन्द्रियम – इदं पयो – अमृतं मधु !!”

शुक्र देव पौराणिक मंत्र: ” ॐ हिमकुंद – मृनालाभं दैत्यानां परमं गुरुं ! सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रन्माम्य्हम !!”

शुक्र देव ध्यान मंत्र: ” दैत्यानां गुरु : तद्वत श्वेत – वर्णः चतुर्भुजः ! दंडी च वरदः कार्यः साक्ष – सूत्र – कमंड – लु: !!”

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