Home धार्मिक कालरात्रि का पूजन करेगा सभी ग्रह बाधाओं का अंत

कालरात्रि का पूजन करेगा सभी ग्रह बाधाओं का अंत

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नवरात्रि के सातवें दिन मां भगवती के जिस स्वरूप की पूजा अर्चना का विधान है, वे देवी कालरत्रि के नाम से विख्यात हैं।
‘कालस्यपि रात्रि सा कालरात्रि’

अर्थात् सबको मारने वाले काल की भी रात्रि। अर्थात विनाशिका होने के कारण उनका नाम कालरात्रि है। जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, संकट में भय से आतुर हो, वह भगवती कालरात्रि का शरण में जाये तो उसका कभी अमंगल नहीं होता।
‘अकाल मृत्युंहरण देवेश्वरी सर्वबाधा विनाशिनी।’

अर्थात् देवेस्वरी, अकाल मृत्यु से बचाने वाली सभी बाधाओं का नाश करती हैं। निःसंदेह रक्षा करती हैं। रात्रि का तात्पय है-शून्य या अंधकार । अंधकार काल का संचार करता है। ‘कालरात्रि’ देह में समय संचालिता संचार क्रिया अविधा का कालरात्रि रूप है। इस प्रकार यह प्रकृति क्रियात्मक अंग है। जो बुद्धि तत्वात्मक है।

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह काला है। बिखरे हुए बाल, गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला मां कालरात्रि धारण करती है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल हैं। जिनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिकी से श्वास प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। मां कालरात्रि गदहा की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं।

दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा, व नीचे वाले हाथ में कटार शोभायमान है। अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली भगवती कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है। इनका ‘शुंभकरी’ नाम से विख्यात होने का यह भी एकाकरण है। इनके भक्तों को किसी भी प्रकार की बाधाओं , विपत्तियों से भयभीत होने की किंचित आवश्यकता नहीं होती।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहसार चक्र में स्थित रहता है। अतः विश्व की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए द्वार खुला रहता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। भगवती कालरात्रि के भक्तों के संपर्क में आने वाला भी विशेष पुण्य ाक भागीदार बन जाता है। उसके समस्त पाप दोष विनष्ट हो जाते हैं। उसे परम पद प्राप्त होता है।

मां कालरात्रि आततायियों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत हो कर भाग जाते हैं। भगवती कालरात्रि की आराधना से भक्त ग्रह बाधाओं से मुक्त हो जाता है। इनके उपासक को, अग्नि-भय, जल-भय, जन्तु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। मां कालरात्रि की असीम अनुकम्पा से इनके भक्त सर्वथा भयमुक्त रहते हैं।

मां कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह का स्मरण कर भक्त को एकाग्रचित्त होकर उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का पूर्णरूपेण अनुपालन होना चाहिए। मन, वचन, कर्म से पर्णतः शुद्ध होना चाहिए। शुभंकारी देवी की अर्चना से अनगिनत शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अतः मानवमात्र को सदैव उनका स्मरण , ध्यान और पूजन करना चाहिए।
सृष्टि स्थिति विनाशनां शक्ति भूते सनातनी।
गुणाश्रये गुणामये नारायणि नमोस्तुते।

एकवेणी जजाकर्णपूरा नग्ना सवरास्थिता।
लम्बोष्ठी कणिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लेहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

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