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पीरियड्स से पहले होता है प्री मेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम

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डेस्क रिपोर्ट:

जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स होते हैं तो उसे मिनार्की कहते हैं। ये आमतौर पर 10-13 साल की उम्र में होते हैं। जब कोई लड़की किशोरावस्था में पहुंचती है तब उसके ओवरी एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नाम के हॉर्मोन उत्पन्न करने लगते हैं। इसके बाद ओवरी एग रिलीज करती है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की वजह से यूट्रस की परत मोटी होने लगती है। जब एग फर्टिलाइडज नहीं होता है तो ये परत टूट जाती है जिससे पीरियड्स आते हैंमेनोपॉज तब होता है जब किसी महिला को लगातार 12 महीने तक पीरियड्स नहीं आते हैं। इसके बाद महिला नेचुरली प्रेग्नेंट नहीं हो सकती है। दरअसल, 45-55 की उम्र के बीच महिलाओं के शरीर में ओवरी एस्ट्रोजन रिलीज करना कम कर देती है जिसे पीरियड्स कम आते हैं। मेनोपॉज के लक्षण आखिरी पीरियड से करीब 4 साल पहले दिखने लगते हैं। इस दौरान महिलाओं को सिरदर्द, बदन दर्द, नींद न आना, एंग्जायटी, ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डीयां कमजोर होना, जैसी कई परेशानियां होती हैं।
पीरियड्स आने के 3-7 दिन पहले बॉडी में कुछ बदलाव होते हैं। प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन की कमी होने से पीरियड्स आते हैं, लेकिन अचानक आए इस चेंज के कारण कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसमें पेट-पीठ और कमर में दर्द, मूड स्विंग्स, थकान, चिड़चिड़ापन, गैस होना, टिशू में पानी जमा होना, चक्कर आना और बेहोशी तक शामिल है।पीरियड्स के दौरान अधिकतर महिलाओं को पेट में दर्द होता है जो कई बार कमर और पैरों में भी महसूस होता है। कुछ महिलाओं को ये दर्द इतना ज्यादा होता है कि इसका असर उनके काम पर भी पड़ता है। दरअसल, महिलाओं की कोख में पीरियड्स के दौरान प्रोस्टाग्लैन्डिन नाम का हॉर्मोन निकलता है जिससे यूट्रस पर दबाव पड़ता है। यही पेट में दर्द का कारण होता है।2014 में NGO डासरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 23 मिलियन लड़कियां पीरियड्स आने पर स्कूल जाना बंद कर देती हैं। 2016 में YouGov ने BBC के लिए एक सर्वे किया जिसमें सामने आया कि 52% महिलाएं पीरियड पेन या क्रैम्प्स से गुजरती हैं, जिसका सीधा असर उनके काम पर होता है। वहीं हर 10 में से 9 महिलाओं ने माना कि उन्हें कभी न कभी पीरियड पेन से गुजरना पड़ा है।

एक इंसान का शरीर 45 डेल यूनिट दर्द सहन कर सकता है। वहीं बच्चे को जन्म देने के लिए एक औरत 57 डेल यूनिट तक का दर्द सहन करती है। दरअसल, जन्म के दौरान बच्चेदानी का मुंह 6-10 सेमी तक खुल जाता है। जिससे होने वाला दर्द 20 हड्डियों के एक साथ टूटने जैसा होता है। वहीं पीरियड्स के दौरान बच्चेदानी का मुंह (सर्विक्स) 2-3 सेमी तक खुलता है जिससे तेज दर्द महसूस होता है। डॉ. जेन गनटर के मुताबिक, इस दौरान उतना दर्द होता है जितना बिना एनेस्थीसिया के उंगली काटने पर होगा।

PMDD: आपने PMS के बार में जान लिया। इसी के एडवांस्ड स्टेज को प्री-मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर यानी PMDD कहते हैं। 3-8% महिलाएं PMDD का शिकार हैं। इसमें गंभीर डिप्रेशन, थकान, ध्यान लगाने में दिक्कत और पैनिक अटैक तक आ सकते हैं।

सेरोटोनिन की कमी: पीरियड के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन की कमी होती है। इसकी वजह से दिमाग से रिलीज होने वाले कुछ केमिकल्स पर भी असर पड़ता है। रिसर्च के मुताबिक एस्ट्रोजन कम होने की वजह से दिमाग से सेरोटोनिन हॉर्मोन भी कम निकलता है। सेरोटोनिन को ‘हैप्पी केमिकल’ भी कहा जाता है। इस केमिकल की कमी की वजह से महिलाएं उदास और डिप्रेस्ड रहने लगती हैं। ये कई बार पैनिक अटैक का कारण बनता है।

बॉडी और लुक में बदलाव: पीरियड्स के कारण होने वाले हॉर्मोनल बदलाव की वजह से उदास होना, बिना बात के गुस्सा आना आम बात है। हॉर्मोनल चेंज के कारण महिलाओं के वजन बढ़ता-घटता है। साथ ही बॉडी हेयर ग्रोथ और स्किन एक्ने के कारण आत्मविश्वास कम होने लगता है, जिसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है।

पीरियड से जुड़ी बिमारियों के बारे में…

स्टैटिस्टा वेबसाइट के 2020 के सर्वे के मुताबिक, 20 से 29 साल की महिलाओं में 16% पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या PCOS से पीड़ित थी। इस बिमारी के पीछे मुख्य वजह खराब लाइफस्टाइल को बताया गया।

तो ये PCOS/PCOD क्या होता है: महिलाओं की ओवरीज से निकलने वाले हॉर्मोन्स ही पीरियड्स मैनेज करते हैं। जब इन्ही हॉर्मोन्स का इम्बैलेंस होता है तो उस कंडीशन को PCOS/PCOD कहा जाता है। इसमें कई बार पीरियड्स कुछ महीनों के गैप पर आते हैं। इस वजह से प्रेगनेंसी में काफी दिक्कतें आती हैं। इसके अलावा चेहरे पर दाने निकलना और शरीर पर बालों की ज्यादा ग्रोथ होना भी इसी कंडीशन की वजह से होता है। समस्या बढ़ने पर बांझपन और डायबिटीज भी हो सकती है।

अब तक इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं मिला है। मगर समय रहते डॉक्टर की सलाह लेने पर इसे कंट्रोल जरूर किया जा सकता है। साथ ही महिलाएं अपनी दिनचर्या में मामूली बदलाव करके PCOS को काबू में कर सकती हैं।

यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI): यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन वैजाइना में होने वाला इंफेक्शन है जो एसिड लेवल कम होने की वजह से होता है। पीरियड्स के दौरान निकलने वाले ब्लड की वजह से कई बार वैजाइना का एसिड लेवल घट जाता है, जिससे UTI होने की खतरा रहता है। इस दौरान वैजाइना में तेज जलन और दर्द की समस्या होती है।

जेनिटल ट्रैक्ट इंफेक्शन: ये एक तरह का बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो पीरियड के दौरान होने वाले हॉर्मोनल बदलाव की वजह से होता है। दरअसल, वैजाइना में एसिड लेवल को बनाए रखने का काम लैक्टोबैसिलाई नाम का बैक्टीरिया करता है। पीरियड के दौरान हॉर्मोनल बदलाव की वजह से ये बैक्टीरिया मरने लगते हैं जिसकी वजह से जेनिटल ट्रैक्ट इंफेक्शन हो सकता है।

रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन (RTI): मेंस्ट्रुएशन के दौरान अगर साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए तो भी महिलाओं को कई बीमारियां हो सकती हैं। इनमें से एक है रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन यानी RTI। इसकी वजह से कई बार महिलाएं मां नहीं बन पाती हैं।

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