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उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षक: संकट और चुनौतियाँ

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उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षक: संकट और चुनौतियाँ
उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षक: संकट और चुनौतियाँ

उत्तर प्रदेश के मदरसों में शिक्षकों का संकट: एक चिंताजनक स्थिति

यह लेख उत्तर प्रदेश के मदरसों में कार्यरत शिक्षकों की दुर्दशा और उनके सामने आ रही चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। वर्षों से बकाया मानदेय, मदरसों का सर्वेक्षण, और सम्बद्धता रद्द करने के प्रस्ताव ने इन शिक्षकों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो शिक्षा, अर्थव्यवस्था और सामाजिक न्याय से गहराई से जुड़ा हुआ है। शिक्षकों के सामने आ रही आर्थिक और व्यावसायिक अनिश्चितता, न केवल उनके परिवारों के लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इस लेख में हम इस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

मदरसा शिक्षकों की आर्थिक तंगी और मानदेय का मुद्दा

बकाया मानदेय और बढ़ती आर्थिक चिंताएँ

उत्तर प्रदेश में हजारों मदरसा शिक्षक वर्षों से केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाले मानदेय का इंतज़ार कर रहे हैं। अशरफ अली उर्फ सिकंदर बाबा, बहराइच जिले के एक मदरसा शिक्षक, इस समस्या का एक ज्वलंत उदाहरण हैं। 18 सालों से शिक्षण कार्य करने के बाद भी उन्हें वित्तीय लाभ नहीं मिला है, जिसके कारण उन्हें अतिरिक्त काम करना पड़ रहा है। उनकी तरह ही कई शिक्षकों को पांच से छह सालों से केंद्र सरकार का और एक-दो साल से राज्य सरकार का मानदेय नहीं मिला है। यह स्थिति उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहद प्रभावित कर रही है। 15,000 रुपये का मानदेय महंगाई के इस दौर में उन्हें आर्थिक स्थिरता प्रदान करता था, लेकिन अब यह भी नहीं मिल पा रहा है।

आर्थिक संकट का शिक्षकों पर प्रभाव

यह बकाया मानदेय केवल आर्थिक कठिनाई ही नहीं बल्कि मानसिक तनाव और निराशा भी पैदा कर रहा है। शिक्षकों को अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, चाहे वह ऑटोरिक्शा चलाना हो या फल बेचना। मुमताज़ बानो, बिजनौर की एक सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका, जिनके पति को फेफड़ों का कैंसर है, अपनी परिवार की देखभाल के लिए सिलाई का काम कर रही हैं। यह दर्शाता है कि यह केवल मानदेय का मामला नहीं, बल्कि गरीबी और बेरोज़गारी का गंभीर मुद्दा भी है। कई शिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य उनकी मुख्य आजीविका का साधन नहीं रह गया है, और यह शिक्षा व्यवस्था के लिए भी बेहद खतरनाक है।

मदरसा सर्वेक्षण और सम्बद्धता रद्द करने का प्रभाव

2022 का मदरसा सर्वेक्षण और उसके परिणाम

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2022 में किया गया मदरसों का सर्वेक्षण कई मदरसों के लिए चिंता का कारण बना। इस सर्वेक्षण में मदरसों के संचालन, शिक्षकों, छात्रों, पाठ्यक्रम, और भौतिक अवस्थाधारा से संबंधित जानकारियाँ इकट्ठी की गईं। हालांकि, सरकार का कहना है कि इस सर्वेक्षण का उद्देश्य मौजूदा सरकारी योजनाओं से मदरसों को लाभान्वित करना था, विपक्षी दलों ने इसे मदरसों को बदनाम करने की एक सुनियोजित साज़िश बताया है।

513 मदरसों की सम्बद्धता रद्द करने का प्रस्ताव

इस सर्वेक्षण के बाद, 513 मदरसों की सम्बद्धता रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया है, क्योंकि ये मदरसे बोर्ड के पोर्टल पर अपना विवरण पंजीकृत नहीं करा पाए। हालांकि, पूर्व अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद का कहना है कि कई मदरसों ने स्वयं ही यह कदम उठाया था। इस निर्णय से हजारों छात्रों और शिक्षकों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। यह निर्णय न केवल आर्थिक बल्कि शैक्षिक रूप से भी बहुत हानिकारक हो सकता है।

मदरसों का इतिहास और उनकी वर्तमान स्थिति

मदरसों का ऐतिहासिक महत्व

मदरसे सदियों से इस देश के शैक्षिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान की, बल्कि फ़ारसी और अन्य विषयों के अध्ययन का अवसर भी दिया। मदरसों ने स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मदरसों का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में नकारा नहीं जा सकता। यह इतिहास है जो बताता है कि मदरसे सदैव समाज के विकास में सहयोगी रहे हैं।

आधुनिक चुनौतियाँ और सरकार की नीतियाँ

आज, मदरसे आधुनिक शिक्षा के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, कई मदरसे एनसीईआरटी के मानदंडों का पालन करते हुए आधुनिक विषयों को भी पढ़ाते हैं। सरकार की नीतियाँ और योजनाएँ इन्हे आधुनिकीकरण में मदद करने के लिए डिजाइन की गई हैं, पर उनके कार्यान्वयन में कमी दिखाई देती हैं। यह अनिश्चितता मदरसों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है और शिक्षकों पर आर्थिक दबाव बढ़ा सकती हैं।

समाधान और आगे का रास्ता

इस समस्या का समाधान सरकार, मदरसों के प्रशासन और समुदाय के सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। सरकार को शिक्षकों के बकाया मानदेय का भुगतान करने के साथ-साथ मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए सहायता प्रदान करनी चाहिए। 透明 और निष्पक्ष नीतियों से मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने पर ध्यान देना आवश्यक है। साथ ही, शिक्षकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उनके कौशल विकास में मदद करनी चाहिए।

मुख्य बिंदु:

  • उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षकों को वर्षों से मानदेय नहीं मिल रहा है, जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
  • 2022 का मदरसा सर्वेक्षण और 513 मदरसों की सम्बद्धता रद्द करने के प्रस्ताव ने शिक्षकों और छात्रों में भय और अनिश्चितता पैदा की है।
  • मदरसों का ऐतिहासिक महत्व और उनका वर्तमान संघर्ष भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए चिंता का विषय है।
  • इस समस्या का समाधान सरकार, मदरसों और समुदाय के संयुक्त प्रयासों से संभव है।
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