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जम्मू-कश्मीर: नियुक्तियों पर राजनीतिक घमासान

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जम्मू-कश्मीर: नियुक्तियों पर राजनीतिक घमासान
जम्मू-कश्मीर: नियुक्तियों पर राजनीतिक घमासान

जम्मू और कश्मीर में हाल ही में जारी दो अधिसूचनाओं ने राष्ट्रीय सम्मेलन (NC) के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और CPI(M) नेता एम.वाई. तारिगामी सहित कई नेताओं में तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। यह स्पष्ट संकेत है कि आगामी मुख्यमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच सत्ता के सीमित दायरे को लेकर टकराव की स्थिति बन सकती है। इन अधिसूचनाओं से जम्मू और कश्मीर में नियुक्तियों और सेवा मामलों से जुड़े अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई है। आइये विस्तार से जानते हैं इस मामले के बारे में:

जम्मू और कश्मीर पुलिस में नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव

पहली अधिसूचना में जम्मू और कश्मीर पुलिस (गजेटेड) सेवा के लिए संशोधित भर्ती दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इन संशोधनों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर लोक सेवा आयोग (JKPSC) को अब सीधी भर्ती का काम सौंपा गया है, जबकि पदोन्नतियाँ विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) द्वारा की जाएंगी। पहले, जम्मू और कश्मीर पुलिस में रिक्तियों को भरने के लिए उसका अपना भर्ती बोर्ड था। नए नियमों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर पुलिस अब लेफ्टिनेंट गवर्नर के नियंत्रण में आती है, और मुख्यमंत्री की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी।

इस परिवर्तन के प्रभाव

इस बदलाव से मुख्यमंत्री के अधिकारों में कमी आई है और पुलिस बल पर लेफ्टिनेंट गवर्नर का अधिकार बढ़ गया है। इससे राज्य सरकार की कार्यपालिका शक्ति कमजोर हो सकती है।

जम्मू और कश्मीर सिविल सेवाओं में नियुक्तियों में बदलाव

दूसरी अधिसूचना में जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम, 2010 के तहत भर्ती नियमों में संशोधन किया गया है। इस संशोधन के द्वारा सेवा चयन बोर्ड को सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs), सरकारी कंपनियों, निगमों, बोर्डों और जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से स्वामित्व या नियंत्रित संगठनों के लिए भर्ती करने का अधिकार दिया गया है। इसमें चतुर्थ श्रेणी के पद भी शामिल हैं। यह आदेश आगामी सरकार के लिए खाली पदों को, यहां तक ​​कि चतुर्थ श्रेणी के स्तर पर भी भरना मुश्किल बना देता है।

चतुर्थ श्रेणी के पदों का महत्व

चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी प्रशासनिक तंत्र का आधार स्तम्भ होते हैं और उनकी कमी से कई कार्य प्रभावित हो सकते हैं। इस संशोधन से सरकार को आवश्यक कर्मचारी नियुक्त करने में बाधा आ सकती है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और चिंताएँ

इन आदेशों पर राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की कमी है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों और स्कूलों में कर्मचारियों की कमी है और मानव संसाधन तैयार है, पर नियुक्ति में बाधाएं हैं। CPI(M) नेता तारिगामी ने भी इन आदेशों की आलोचना करते हुए कहा कि नई विधानसभा और मंत्रिमंडल के गठन से कुछ ही दिन पहले ये आदेश जारी करना अनुचित है और चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन है। उन्होंने इन आदेशों को तुरंत वापस लेने की मांग की है।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान

ये दोनों नेता लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करने पर जोर देते हुए चुनी हुई सरकार को नियुक्तियों के मसले पर निर्णय लेने का अधिकार देने की वकालत कर रहे हैं।

भविष्य की संभावनाएँ और निष्कर्ष

इन अधिसूचनाओं से स्पष्ट है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर प्रशासन और आगामी सरकार के बीच अधिकारों को लेकर एक टकराव हो सकता है। यह जम्मू और कश्मीर के प्रशासन और शासन के तरीके पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। रोजगार की कमी से जूझ रहे जम्मू और कश्मीर में नियुक्तियों में अन्य बाधाओं के बढ़ने की संभावना भी बेहद चिंताजनक है।

टेकअवे पॉइंट्स:

  • जम्मू और कश्मीर में पुलिस और सिविल सेवाओं में भर्ती प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।
  • लेफ्टिनेंट गवर्नर प्रशासन द्वारा किए गए ये बदलाव आगामी सरकार के अधिकारों को कमजोर कर सकते हैं।
  • इन बदलावों के विरोध में कई राजनीतिक दलों ने आवाज उठाई है और इन आदेशों को वापस लेने की मांग की है।
  • रोजगार के अवसरों में कमी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सम्मान की बात सबसे अहम मुद्दा बना हुआ है।
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