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आरएसएस: शताब्दी का सफ़र, राष्ट्र का समर्पण

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आरएसएस: शताब्दी का सफ़र, राष्ट्र का समर्पण
आरएसएस: शताब्दी का सफ़र, राष्ट्र का समर्पण

आरएसएस का शताब्दी वर्ष: राष्ट्र सेवा का एक सदी लंबा सफ़र

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर संघ के स्वयंसेवकों को बधाई देते हुए, संघ के देश सेवा के प्रति समर्पण की प्रशंसा की है। उन्होंने अपने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक संदेश में कहा कि आरएसएस का माँ भारती के प्रति समर्पण देश की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा प्रदान करेगा और विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में नई ऊर्जा का संचार करेगा। गृह मंत्री अमित शाह ने भी आरएसएस की 100वीं वर्षगांठ पर बधाई दी और संघ द्वारा भारतीय संस्कृति की रक्षा और युवाओं में देशभक्ति के भाव को विकसित करने के उल्लेखनीय कार्य की सराहना की। आरएसएस के शताब्दी वर्ष का महत्व समझने के लिए, हमें इसके इतिहास, योगदान और वर्तमान महत्व पर गौर करना होगा।

आरएसएस: एक संक्षिप्त इतिहास और दर्शन

आरएसएस की स्थापना और प्रारंभिक वर्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन नागपुर में की थी। आरएसएस का उद्देश्य भारत के युवाओं में राष्ट्रीय भावना और चरित्र निर्माण को बढ़ावा देना था। आरएसएस ने स्वयं को एक राष्ट्रव्यापी संगठन के रूप में स्थापित किया, जिसने समाज सेवा, शिक्षा, और राष्ट्रीय एकता को अपने प्रमुख लक्ष्यों के रूप में अपनाया। प्रारंभिक वर्षों में आरएसएस ने समाज के विभिन्न वर्गों के साथ मिलकर काम किया और राष्ट्रीय आंदोलन में अपना योगदान दिया।

आरएसएस का वर्तमान स्वरूप और कार्य

आज आरएसएस भारत का एक विशाल और प्रभावशाली संगठन है। इसके लाखों कार्यकर्ता विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, आपदा राहत और सामाजिक कार्यों में संघ सक्रिय रूप से शामिल है। आरएसएस सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता पर जोर देता है और विभिन्न सामाजिक और धार्मिक समूहों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है।

आरएसएस की भूमिका और विरासत

आरएसएस का राजनीतिक प्रभाव

आरएसएस का भारतीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आरएसएस की प्रमुख सहयोगी रही है, और आरएसएस के कार्यकर्ता भाजपा के संगठनात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। आरएसएस की विचारधारा और दर्शन भाजपा के नीति निर्माण पर प्रभाव डालते रहे हैं।

आरएसएस के सामाजिक कार्य

आरएसएस विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों तक पहुँचने का प्रयास करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में आरएसएस का योगदान उल्लेखनीय रहा है। संघ के स्वयंसेवक आपदा राहत कार्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और समाज सेवा के प्रति उनका समर्पण सराहनीय है।

आरएसएस और राष्ट्रीय एकता

आरएसएस राष्ट्रीय एकता और अखंडता को अपना प्रमुख उद्देश्य मानता है। संघ विभिन्न धर्मों और जातियों के लोगों को एक मंच पर लाने का प्रयास करता है और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए कार्य करता है।

आरएसएस और आलोचनाएँ

आरएसएस के विरुद्ध आरोप

आरएसएस को कई आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। इस पर हिंदुत्ववादी विचारधारा और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने के आरोप लगे हैं। हालाँकि आरएसएस ने इन आरोपों का खंडन करते हुए अपनी विचारधारा को समावेशी और सभी धर्मों के प्रति सम्मानजनक बताया है।

आरएसएस और बहस: आगे का रास्ता

आरएसएस की भूमिका और कार्यों के विषय पर बहस जारी है। इसके कार्यक्रमों और नीतियों पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। हालांकि यह सच है कि आरएसएस का भारत के सामाजिक, राजनैतिक, और सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसलिए, आरएसएस को समझना आवश्यक है और इसके कार्यों के प्रभावों का निष्पक्ष मूल्यांकन करना जरूरी है।

टेक अवे पॉइंट्स:

  • आरएसएस भारत का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक संगठन है जिसका इतिहास समृद्ध है।
  • आरएसएस ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कार्य जैसे कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • आरएसएस की भूमिका और प्रभाव को लेकर कई तरह की राय मौजूद है और यह विषय चर्चा और विश्लेषण का विषय बना हुआ है।
  • आरएसएस का शताब्दी वर्ष इस संगठन के इतिहास और इसके भारत के भविष्य पर प्रभाव को समझने का अवसर है।
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