प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट व प्रदेश की सभी निचली अदालतों को कोरोना वायरस महामारी से बचाव के चलते बंद हुए लगभग एक माह से ऊपर हो रहा है । हाईकोर्ट व प्रदेश की निचली अदालते अधिकारिक रूप से 3 मई तक बंद है। देश व्यापी लॉकडाउन के चलते बंदी का असर कार्यपालिका, विधायिका से भी अधिक न्यायपालिका पर पडा है। केवल कार्यपालिका एवं प्रशासनिक अमला अपना काम करने मे लगा है। विधायिका भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। परन्तु न्यायपालिका में लाक डाउन का सबसे ज्यादा असर दिखायी दे रहा है। इसके नियमित रूप से काम पर लौटने की आस अभी भी कम दिख रही है ।
कहने को तो अतिआवश्यक मुकदमो की सुनवाई की जा रही है। बिना पर्याप्त बहस सुनवाई क्या न्याय प्रक्रिया के मानकों को पूरा कर रही है। यह अहम सवाल है। जनता के लिए सर्व सुलभ रहने वाली न्यायपालिका की बंदी ने जनता को अदालतों में सुनवाई का अवसर देने के उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया है । यही कारण है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकीलों में अब प्रदेश की न्याय व्यवस्था को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है ।
हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संविधानविद एएन त्रिपाठी का कहना है कि चीफ जस्टिस को खुली अदालत में सीमित संख्या में कोर्ट में मुकदमों की सुनवाई की व्यवस्था करनी चाहिए। जांचोपरान्त वकीलों का हाईकोर्ट परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जाय। केवल वही वकील कोर्ट में जाए जिनका केस लगा हो। वकीलों के चेम्बर्स बार एसोसिएशन कैन्टीन आदि सार्वजनिक बैठने के सभी स्थानों को यदि बंद रखा जाएगा तो हाईकोर्ट परिसर में भीड़ एकत्र नहीं होगी और वकील अपने केस की बहस कर सीधे अपने घर वापस आ जाएंगे।
त्रिपाठी ने कहा कि सोसल एवं फिज़िकल डिस्टेन्सिंग का पालन करते हुए अदालतों में कम संख्या में मुकदमे लगाये जाय और खुली अदालत में सुनवाई कर न्याय देने की स्थापित परंपराओं का पालन किया जाय।अनिश्चित काल के लिए न्याय के मंदिर को जनता के लिए बंद नही रखा जाना चाहिए । विशेष कर तब जब लोकतंत्र के अन्य स्तंभ काम कर रहे हो ।
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