Home health ‘इंसुलिन टैबलेट्स’ कांड: होम्योपैथिक दवाओं के नियमन पर उठे सवाल

‘इंसुलिन टैबलेट्स’ कांड: होम्योपैथिक दवाओं के नियमन पर उठे सवाल

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'इंसुलिन टैबलेट्स' कांड: होम्योपैथिक दवाओं के नियमन पर उठे सवाल
'इंसुलिन टैबलेट्स' कांड: होम्योपैथिक दवाओं के नियमन पर उठे सवाल

होम्योपैथिक दवा “इंसुलिन टैबलेट्स” के लाइसेंस को रद्द करने की खबर ने स्वास्थ्य क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। राजस्थान की एक कंपनी द्वारा निर्मित इस दवा के लाइसेंस को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा रद्द कर दिया गया है, जिसके बाद से होम्योपैथिक दवाओं के नियमन और नामकरण पर सवाल उठ रहे हैं। यह मामला दवाओं और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और उसके नियमों, 1945 के उल्लंघन को उजागर करता है, खासकर धारा 106 A(C) के संदर्भ में। इस लेख में हम इस मामले की गहराई से जाँच करेंगे और इसके निहितार्थों पर विचार करेंगे।

होम्योपैथिक दवा “इंसुलिन टैबलेट्स” का लाइसेंस रद्द

पीएमओ की कार्रवाई और शिकायतकर्ता की भूमिका

प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक शिकायत के आधार पर राजस्थान स्थित भार्गव फाइटोलाब्स द्वारा निर्मित होम्योपैथिक दवा “इंसुलिन टैबलेट्स” के लाइसेंस को रद्द कर दिया है। यह शिकायत केरल के एक नेत्र रोग विशेषज्ञ और आरटीआई कार्यकर्ता के.वी. बाबू द्वारा सितंबर 2023 में दायर की गई थी। डॉ. बाबू ने अपनी शिकायत में दवा के लेबलिंग में नियमों का उल्लंघन होने का दावा किया था। उन्होंने तर्क दिया कि दवा का नाम “इंसुलिन टैबलेट्स” रखने से मधुमेह के मरीजों में भ्रम हो सकता है, जिससे वे इंसुलिन इंजेक्शन के बजाय इन टैबलेट्स का इस्तेमाल करने लग सकते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है। पीएमओ द्वारा राज्य के दवा नियंत्रक के हवाले से यह स्पष्ट किया गया कि कंपनी ने अपने लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए कोई आवेदन नहीं दिया था, जिसके कारण लाइसेंस स्वतः रद्द हो गया।

दवा और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की धारा 106 A(C) का उल्लंघन

डॉ. बाबू की शिकायत दवा और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की धारा 106 A(C) के उल्लंघन पर आधारित थी। यह धारा कहती है कि एक ही घटक वाली किसी भी होम्योपैथिक दवा को अपने लेबल पर मालिकाना नाम नहीं रखना चाहिए। दवा के विवरण को स्थायी स्याही से अंकित किया जाना चाहिए और यह सबसे भीतरी कंटेनर और उसके बाहरी आवरणों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए। “इंसुलिन टैबलेट्स” के मामले में, “इंसुलिन 6x” एक ही घटक वाली दवा है, और इसे “इंसुलिन टैबलेट्स” नाम से मालिकाना नाम के रूप में लेबल करना नियमों का उल्लंघन था।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और आयुष मंत्रालय की भूमिका

सीडीएससीओ और आयुष मंत्रालय का निर्णय

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने जून में लाइसेंस की समीक्षा की मांग की थी, और केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने पाया कि दवा का लेबलिंग गलत था। मंत्रालय ने यह भी नोट किया कि निर्माता को उत्पाद को स्पष्ट रूप से “इंसुलिन होम्योपैथिक त्रिट्यूरेशन टैबलेट्स” के रूप में लेबल करना चाहिए, ताकि भ्रम से बचा जा सके और जनहित में गलत जानकारी से बचा जा सके। उत्पाद के नाम के साथ “इंसुलिन” शब्द के उपयोग से जनता में भ्रम पैदा होने और अनावश्यक जोखिम के बारे में मंत्रालय चिंतित था।

निर्माता का पक्ष

निर्माता ने अधिकारियों को अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि दवा को राजस्थान राज्य औषधि लाइसेंस प्राधिकरण द्वारा “लाइसेंस” दिया गया था। हालांकि, आयुष मंत्रालय ने पाया कि निर्माता उत्पाद को ब्रांड नाम के रूप में लेबल कर रहा था और इसकी संरचना को “प्रत्येक 400 मिलीग्राम की टैबलेट में इंसुलिन 6x होता है” कहकर दर्शा रहा था।

इस मामले के निहितार्थ और भविष्य के प्रभाव

होम्योपैथिक दवाओं का विनियमन

यह मामला होम्योपैथिक दवाओं के विनियमन पर सवाल उठाता है। यह जरूरी है कि होम्योपैथिक दवाओं के लेबलिंग में स्पष्टता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए कठोर नियमों का पालन किया जाए। भ्रामक नामकरण से मरीजों में भ्रम पैदा हो सकता है और गलत दवा का इस्तेमाल गंभीर परिणामों का कारण बन सकता है।

उपभोक्ता सुरक्षा

इस मामले में, उपभोक्ता सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। गलत या भ्रामक लेबलिंग उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकती है और उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है। इसलिए, दवाओं के लेबलिंग पर स्पष्ट नियम और उनका कठोर पालन आवश्यक है।

भविष्य के लिए सुझाव

इस मामले से सीखते हुए, होम्योपैथिक दवाओं के निर्माण और विपणन में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। स्पष्ट दिशानिर्देश और नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है ताकि मरीजों को सुरक्षित रखा जा सके और भ्रम से बचा जा सके।

टेक अवे पॉइंट्स:

  • होम्योपैथिक दवाओं के लिए स्पष्ट और सटीक लेबलिंग अनिवार्य है।
  • भ्रामक नामकरण से बचना चाहिए और उपभोक्ता सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • दवा विनियमन प्राधिकरणों को नियमों के कठोर और निष्पक्ष पालन सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी है।
  • इस मामले से होम्योपैथिक दवा उद्योग को अपनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने और उपभोक्ता भरोसे को मजबूत करने का अवसर मिलता है।
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