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पोषण लेबलिंग: स्वस्थ जीवन का रास्ता

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पोषण लेबलिंग: स्वस्थ जीवन का रास्ता
पोषण लेबलिंग: स्वस्थ जीवन का रास्ता

पैक्ड खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों पर पोषण संबंधी जानकारी को आसानी से पढ़ा जा सके, इस दिशा में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी किए गए मसौदा दिशानिर्देशों में सुझाव दिया गया है। यह पहला ऐसा मसौदा है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को स्वस्थ विकल्प चुनने में मदद करना है, हालांकि इसमें सख्त चेतावनी लेबलिंग की सिफारिश नहीं की गई है। वर्तमान में दुनियाभर में बढ़ते हुए प्रोसेस्ड फ़ूड के सेवन से मोटापे जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं, जिससे लाखों लोगों की जान जा रही है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, विश्व में एक अरब से ज़्यादा लोग मोटापे से जूझ रहे हैं और इससे जुड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह और हृदय रोग के कारण हर साल लगभग आठ मिलियन लोगों की समय से पहले मृत्यु हो रही है। सरकारों के द्वारा इस महामारी को रोकने के लिए नीतियां लाने में अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, केवल 43 सदस्य देशों में ही फ्रंट-ऑफ-पैकेज लेबलिंग (पैकेज के आगे पोषण संबंधी जानकारी) अनिवार्य या स्वैच्छिक रूप से लागू की गई है, जबकि शोध बताते हैं कि ऐसे लेबल खरीदारी के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं।

डब्ल्यूएचओ के मसौदा दिशानिर्देश: एक व्यापक समीक्षा

पोषण संबंधी जानकारी को सरल बनाना

डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2019 में इन मसौदा दिशानिर्देशों पर काम शुरू किया था, जिसका लक्ष्य उपभोक्ताओं को स्वस्थ खाद्य संबंधी निर्णय लेने में सहायता करना है। इन दिशानिर्देशों में सरकारों को “व्याख्यात्मक” लेबल लागू करने की सिफारिश की गई है, जिसमें पोषण संबंधी जानकारी और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या शामिल हो। न्यूट्रीस्कोर, जो फ्रांस में विकसित किया गया और कई यूरोपीय देशों में प्रयोग किया जाता है, इसका एक उदाहरण है। यह खाद्य पदार्थों को A (हरे रंग, आवश्यक पोषक तत्वों युक्त) से E (लाल रंग, उच्च मात्रा में नमक, शक्कर, वसा या कैलोरी युक्त) तक श्रेणीबद्ध करता है। चिली और लैटिन अमेरिका के कई अन्य देशों में एक कठोर प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जिसमें पैकेज के सामने एक काले अष्टभुज में “उच्च शक्कर”, नमक या वसा जैसी चेतावनी दी जाती है।

विभिन्न देशों में लेबलिंग के तरीके और उनके परिणाम

अमेरिका जैसे देशों में न्यूट्रीशन की जानकारी तो दी जाती है, लेकिन उसकी व्याख्या नहीं की जाती। दूसरी तरफ चिली में अपनाई गई कड़ी चेतावनी लेबलिंग प्रणाली के सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। एक शोध के मुताबिक, चिली में चेतावनी लेबलिंग और बच्चों के लिए मार्केटिंग प्रतिबंधों जैसी अन्य नीतियों के कारण, चिलीवासियों ने कानून लागू होने से पहले की तुलना में 37% कम चीनी, 22% कम सोडियम, 16% कम संतृप्त वसा और 23% कम कुल कैलोरी का सेवन किया।

उद्योग का रुख और डब्ल्यूएचओ की चुनौतियां

खाद्य उद्योग चेतावनी लेबलिंग का विरोध करता रहा है और “गैर-व्याख्यात्मक” लेबलों का समर्थन करता है। इंटरनेशनल फ़ूड एंड बेवरेज एलायंस (IFBA) जैसे संगठन मानते हैं कि उनकी कंपनियां पहले से ही न्यूट्रिशन संबंधी जानकारी प्रदान कर रही हैं। हालांकि, यह पर्याप्त नहीं है, खासकर विकासशील देशों में जहाँ स्थानीय उत्पादकों का बोलबाला है। IFBA, डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों और पोषक तत्व आधारित लेबलों का समर्थन करता है, लेकिन उन लेबलों का विरोध करता है जो विशिष्ट उत्पादों को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं।

भविष्य की दिशा और निष्कर्ष

डब्ल्यूएचओ ने सबसे बेहतर लेबलिंग प्रणाली निर्धारित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं होने की बात कही है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि प्रोसेस्ड फ़ूड के सेवन को कम करने के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। चेतावनी लेबलिंग, विपणन प्रतिबंधों और अन्य उपायों का संयोजन स्वस्थ खाद्य विकल्पों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। डब्ल्यूएचओ के मसौदा दिशानिर्देश एक महत्वपूर्ण पहला कदम हैं, लेकिन उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए और भी अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी।

मुख्य बातें:

  • डब्ल्यूएचओ ने पैक्ड खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों पर पोषण संबंधी जानकारी को आसानी से पढ़ा जा सके, इसके लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं।
  • दिशानिर्देशों में “व्याख्यात्मक” लेबल लगाने का सुझाव दिया गया है जो पोषण संबंधी जानकारी के साथ-साथ उसकी व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं।
  • कई देशों में अपनाई जा रही विभिन्न लेबलिंग प्रणालियों और उनके परिणामों का विश्लेषण किया गया है।
  • खाद्य उद्योग और डब्ल्यूएचओ के बीच मतभेदों पर भी प्रकाश डाला गया है।
  • स्वस्थ खाद्य विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
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