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‘एक देश, एक चुनाव’ की डिबेट रिपोर्ट भाजपा ने पीएम मोदी को सौपी, जानिये इस रिपोर्ट की खास बातें !

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नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले एक साल से लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए। मोदी ने इसके लिए एकेडमिक, राजनीतिक, सामाजिक स्तर पर विमर्श चलाने की बात भी कही। अब जबकि 2019 में होने वाले अगले आम चुनाव में तकरीबन एक साल का समय बचा है। बीजेपी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने प्रधानमंत्री को ‘एक देश, एक चुनाव’ पर हुई पब्लिक डिबेट की रिपोर्ट सौंपी है।

इस रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को देखें, तो बीजेपी के मंसूबे का अंदाजा मिलता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी समूह ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर एक सेमिनार का आयोजन किया था, जिसकी अध्यक्षता बीजेपी उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने की थी।

इसमें 16 विश्वविद्यालयों और संस्थानों के 29 अकादमी सदस्यों ने ‘एक देश, एक चुनाव’ विषय पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। प्रधानमंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट में बीजेपी ने मध्यावधि और उपचुनाव की प्रक्रिया को खारिज कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों में भी मदद मिलेगी।

बीजेपी की इस रिपोर्ट में कहा गया है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ सिस्टम के तहत सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी लाना जरूरी होगा। ऐसे में समय से पहले सदन भंग होने की स्थिति को टाला जा सकता है। स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि उपचुनाव के केस में दूसरे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित किया जा सकता है, अगर किसी कारणवश सीट खाली होती है।

रिपोर्ट में हर साल होने वाले चुनावों की वजह से पब्लिक लाइफ पर पड़ने वाले असर की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है। रिपोर्ट देश में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराए जाने की सिफारिश करती है। नीति आयोग की ओर से दिए गए विमर्श पत्र के हवाले से रिपोर्ट कहती है कि एक साथ चुनाव कराए जाने के पहले चरण में लोकसभा और कम से कम आधे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ 2019 में कराए जाएं और फिर 2021 में बाकी राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए जाएं।

बता दें कि बीजेपी को छोड़ अन्य राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई ने एक साथ चुनाव कराए जाने पर आपत्ति जताई है। गौर करने वाली बात है कि अक्टूबर 2017 में इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत ने कहा था कि चुनाव आयोग सितंबर 2018 तक संसाधनों के स्तर एक साथ चुनाव कराने में सक्षम हो जाएगा। लेकिन ये सरकार पर है कि वो इस बारे में फैसला लें और अन्य कानूनी सुधारों को लागू करे।

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