कवि कुंवर नारायण का निधन
राजनैतिक विवाद से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले कुंवर को 41वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. साल 1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और साल 2009 में उन्हें पद्म भूषण अवार्ड मिला था. वह दिल्ली में सीआर पार्क इलाके में पत्नी और बेटे के साथ रहते थे.
लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर से पोस्ट ग्रेजुएट कुंवर नारायण कविता, महाकाव्य, निबंध, कहानियां, आलोचना, सिनेमा और कला पर लिखते रहे हैं. हालांकि, पढ़ाई के तुरंत बाद उन्होंने पुश्तैनी ऑटोमोबाइल बिजनेस में काम करना शुरू कर दिया था. बाद में आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और सत्यजीत रे से प्रभावित होकर साहित्य में उनकी गहरी रुचि हो गई.
वह उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के उपाध्यक्ष और भारतेंदु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. उन्हें 1971 में हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार, 1973 में प्रेमचंद पुरस्कार, 1982 में मध्य प्रदेश के तुलसी पुरस्कार, 1982 में ही केरल के कुमारन पुरस्कार और 1988 में हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा सम्मानित हो चुके हैं.
उनकी प्रमुख कृतियां 1956 में चक्रव्यूह, 1959 में तीसरा सप्तक, 1961 में परिवेश: हम-तुम, 1965 में आत्मजयी/प्रबंध काव्य, 1979 में अपने सामने, 1971 में आकारों के आसपास उनकी चर्चित कहानी संग्रह है. उन्होंने कॉन्सटैंटीन कवाफी और खोर्खे-लुई बोर्खेस की कविताओं का भी साल 1986-87 में अनुवाद किया.
Disclaimer : इस न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करें और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य में कोई कमी हो अथवा कोई कॉपीराइट आपत्ति हो तो वह jansandeshonline@gmail.com पर सूचित करें। साथ ही साथ पूरी जानकारी तथ्य के साथ दें। जिससे आलेख को सही किया जा सके या हटाया जा सके ।