कोमा में गए बांग्लादेशी बच्चे का दिल्ली में लीवर ट्रांसप्लांट सफल
अपोलो अस्पताल की एक विज्ञप्ति के मुताबिक ढाका निवासी अमन को अगस्त महीने में पीलिया हो गया था, जो धीरे धीरे खराब स्तर पर चला गया. परेशानियां बढ़ने के बाद बच्चे को ढाका के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. पता चला कि हेपेटाइटिस ए के कारण उसके यकृत ने काम करना बंद कर दिया था. वह कोमा में भी चला गया.
विज्ञप्ति के मुताबिक बच्चे के परिवार को यकृत प्रतिरोपण की आवश्यकता बताई गयी और उन्होंने अपोलो अस्पताल से संपर्क किया. भारतीय उच्चायोग ने इस लिहाज से वीजा जारी कर दिया और हवाई मार्ग से उसे यहां अपोलो अस्पताल लाया गया.
अपोलो के चिकित्सकों ने आपात स्थिति में यकृत बदलने का फैसला किया और बच्चे की मां का लिवर इस लिहाज से उपयुक्त पाया गया. अस्पताल ने बताया कि दिल्ली पहुंचने के 36 घंटे के भीतर बच्चे में यकृत प्रतिरोपण कर दिया गया और तीन सप्ताह बाद उसे छुट्टी दे दी गयी.इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और वरिष्ठ पीडियैट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. अनुपम सिबल ने कहा, ”यह बहुत मुश्किल मामला था क्योंकि बच्चा पहले से ही स्टेज 3 हेपैटिक एनसेफैलोपैथी में था.
इसका मतलब हुआ कि उसका लिवर शरीर की खराब चीजों को निकाल नहीं कर रहा था और इससे उसके मस्तिष्क का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा था. उसकी स्थिति तेजी से खराब हो रही थी. बच्चे की जान बचाने के लिए आपात स्थिति में यकृत प्रतिरोपण ही एकमात्र रास्ता था. सर्जरी के बाद अमन की हालत में उल्लेखनीय सुधार हुआ और उसे तीन सप्ताह में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.”
अस्पताल के वरिष्ठ यकृत प्रतिरोपण सर्जन डॉ. नीरव गोयल ने कहा कि बच्चे में ऐक्यूट लिवर फेल्योर की स्थिति में यकृत प्रतिरोपण सामान्य लिवर ट्रांसप्लांट के मुकाबले ज्यादा मुश्किल होता है.
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