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क्या शहीद BSF कमांडर दीपक मंडल हुए साजिश का शिकार !

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क्या शहीद BSF कमांडर दीपक मंडल हुए साजिश का शिकार !

 

 

यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर न्यूज़ 18 इंडिया के टीम की रिपोर्ट का ताना बाना बुना गया है…न्यूज़ 18  इंडिया यह अपने आप नहीं कह रहा है, बल्कि शहीद दीपक मंडल के घरवालों के आरोप और सबसे जरूरी त्रिपुरा पुलिस की इस मामले में खुफिया जांच रिपोर्ट के आधार पर कह रहा है.

क्या है यह पूरा मामला ये हम आपको आगे बताएंगे लेकिन सबसे पहले हम त्रिपुरा पुलिस कि वह खुफिया जांच रिपोर्ट के बारे में आपको बताते हैं, जो शहीद दीपक मंडल की हत्या के मामले में ये शक जाहिर करती है. त्रिपुरा पुलिस की रिपोर्ट यह कहती है की हत्या की नियत से तस्कर आए थे उन्होंने भारत बंग्लादेश सीमा पर त्रिपुरा में ड्यूटी के दौरान दीपक मंडल पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश की. पहली कोशिश में वह सफल नहीं हुए और दूसरी कोशिश में वो अपनी इस हत्या की कोशिश में कामयाब हुए.

यानी भारत बांग्लादेश सीमा पर मौजूद तस्करों ने एक सोची समझी साजिश के तहत एक जांबाज अधिकारी को अपना निशाना बनाया था.

क्या था पूरा मामलादरअसल, भारत-बांग्लादेश सीमा पर त्रिपुरा में बीएसएफ की 145 वीं बटालियन में तैनात दीपक मंडल पिछले 5 सालों से उस इलाकों में लगातार तस्करों से लोहा ले रहे थे. 16 अक्टूबर को रात में ड्यूटी के दौरान उन्होंने एक बार फिर तस्करों से लोहा लिया लेकिन इस बार उनकी कोशिश अंतिम कोशिश साबित हुई, तस्करों को रोकने की कोशिश में दीपक मंडल बुरी तरीके से जख्मी हो गए और 4 दिन बाद यानी 20 अक्टूबर को जिंदगी और मौत से जंग लड़ने के बाद वह शहीद हो गए.

बीएसएफ यूनिट कमांडर की शहादत से ये सवाल उठता है कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्कर क्या इतने मजबूत हो गए हैं कि वो लगातार वहां पर तैनात बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल जवानों पर हमला करते रहते हैं. और कई वजहों से चाह कर भी हमारे देश के जवान उनके हमलों उचित जवाब नहीं दे पाते. नतीजा यह होता है कि बीएसएफ को भारी नुकसान पहुंचता है और उनके जवान या तो घायल हो जाते हैं, या फिर शहीद होते हैं. रही सही कसर बीएसएफ यानी जिस फोर्स में वह तैनात हैं वो पूरा कर देती है क्योंकि तस्करों के खिलाफ ऑपरेशन को वो नियमित मुठभेड़ मानती है जबकि शहीद के परिजन और ऐसी रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करते हैं कि तस्कर साजिशन फोर्स के जवानों और अधिकारियों को अपना निशाना बनाते हैं.

बीएसएफ का कहना है दीपक की शहादत तस्करों के साथ मुठभेड़ की वजह से हुई, इस बाबत बीएसएफ ने ट्वीट भी किया था 20 अक्टूबर को जब दीपक मंडल शहीद हो गए थे. बीएसएफ के रुख से और सरसरी तौर पर इस घटना को देखकर दीपक मंडल की शहादत एक मुठभेड़ ही लग रही थी लेकिन न्यूज 18 इंडिया दीपक की शहादत के बाद बंगाल के नादिया जिले के उस गांव में गया जहां उनके परिजन हैं.

यहां भी कहानी ने कुछ दूसरा रुख लिया. उनके परिजनों का कहना है कि दीपक की शहादत महज एक मुठभेड़ नहीं है. बल्कि उन्हें तस्करों मे सोची समझी साजिश के तहत निशाना बनाया, दीपक के भाई दिलीप मंडल कहते हैं कि जैसे निशान दीपक के शरीर पर निशाना थे उससे तो उनके मौत की वजह की दलील पर यकीन कर पाना मुश्किल है फिलहाल. बात करते-करते शहीद के परिजनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं, और वजहें भी हैं इसके पीछे.

अब नजर डालते हैं शहीद दीपक मंडल के इस सर्विस रिकॉर्ड पर. पिछले 6 साल से इस दुर्दांत इलाके में दीपक मंडल तैनात थे और कई बार तस्करों से उन्होने लोहा लिया, तस्करों को धूल चटाई और काफी हद तक इस इलाके में उन पर काबू पाया. मंडल के परिजन यह आशंका जता रहे हैं क्यों मंडल की ही मौत हुई जबकि उनके साथ उनकी टीम के बाकी के सदस्य थे. अगर उनकी मौत में कुछ गड़बड़ है तो कसूरवारों को सजा मिले. शहीद दीपक की पत्नी सुदेशना यह कहती है कि जो भी कसूरवार है उसे जल्द पकड़ा जाए और सजा मिले.

क्या है परिवारवालों को शक
उनके घरवाले कहते हैं कि दीपक के शरीर पर चार निशान थे दाहिनी आंख के ऊपर, चिन के नीचे, कोहनी पर और हाथ पर इसके अलावा उनके पैर पर भी चोट के निशान थे. घर वालों का यह सवाल है कि अगर बीएसएफ का जवान जूता पहनता है तो उसके पैर में कैसे चोट आती है जब वह गाड़ी से कुचला जाता है क्योंकि गाड़ी के कुचले जाने से इतनी हल्की चोटें नहीं आती. परिजनों ने ये बातें स्थानीय सांसद को भी इस चिट्ठी के जरिए बताई हैं जो कि बीएसएफ पर तो सवाल उठा ही रहे हैं साथ ही आनेवाले दिनों में इसे प्रदेश की मुख्यमंत्री, गृह मंत्रालय और संसद में इसे उठाएंगे. तपश मोंडल जो कि नादिया से सांसद हैं, वो कहते हैं कि बीएसएफ की कहीं न कहीं गलती है. मुझे लग रहा है कि कुछ छुपाया जा रहा है.

बीएसएफ खामोश है
बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल जिसका ये अधिकारी था हमने उस फोर्स के अधिकारियों से इन आरोपों और इस पूरे प्रकरण के बारे में पूछा तो उनकी ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिला, इस बारे में हमने बीएसएफ को ईमेल किया लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला. अब सवाल ये उठता है कि दीपक मंडल की शहादत क्या तस्करों के एक बड़े सिंडिकेट का तो हिस्सा नहीं है. क्यों खामोश है बीएसएफ, क्यों लगातार उसी इलाके में अधिकारियों की जान जाती रहती है. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सबको चाहिए आनेवाले दिनों में. हम आपको ये भी बता दें कि शहीद दीपक मंडल की शहादत का ये अकेला मामला नहीं है हम आगे आपको बताएंगे कि इसी इलाके में तैनात रहे और शहीद हो चुके कुछ और जांबाजों की दास्तान.

और भी शहीद बीएसएफ जांबाजों के परिजनों का यही है आरोप
अगर शहीद दीपक मंडल इस जगह कुछ दिनों पहले तैनात थे तो करीब 4 साल पहले यानी 2014 में इसी जगह भारत बंग्लादेश सीमा पर त्रिपुरा में से कुछ ही दूरी पर तैनात थे बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट फूलचंद. उनके परिजनों के मुताबिक 25 अक्टूबर 2014 को ड्यूटी के दौरान उनकी तस्करों से मुठभेड़ हुई, जिसके बाद वो बुरी तरीके से घायल हो गए. एक महीने तक अस्पताल में जिन्दगी और मौत से जंग लड़ने के बाद उन्होने दम तोड़ दिया. उनके परिजनों का आरोप है कि भारत बंग्लादेश सीमा पर मौजूद तस्करों ने उनकी हत्या की है. इस बाबत उन्होने बीएसएफ और गृह मंत्रालय में शिकायत भी की है लेकिन अभी तक उनकी मांगों को नहीं सुना गया.

BSF के जांबाजों के लिए नासूर बन चुके भारत-बांग्लादेश सीमा पर मौजूद तस्कर बेहद खतरनाक है, कम से कम आंकड़े तो इस बात का गवाह है किस तैयारी से वह आते हैं कैसे वह अपने काम को अंजाम देते हैं और क्यों सरकारी नीतियों की वजह से हमारे जवान उन पर उन्हीं के अंदाज में कार्यवाही नहीं कर पाते हैं या यूं कहें कि पुख्ता कार्यवाही नहीं कर पाते.

क्या कहते हैं आंकड़े
इस साल 66 बार तस्करों ने BSF की फोर्स पर भारत-बांग्लादेश सीमा में हमला किया है, जिसमें 88 जवान घायल हुए हैं जबकि दो जवानों की मौत हुई है. यह केवल इस साल का आंकड़ा नहीं है पिछले 4 सालों के अगर बात करें तो यही कहानी नजर आती है. 2013 में जहां 112 जवान घायल हुए थे तस्करों के हमलों में और 3 जवानों की मौत हुई थी, तो 2014 में 88 जवान घायल हुए थे जबकि एक की मौत हुई थी, वहीं 2015 में 102 जवान घायल हुए थे जबकि दो जवानों की मौत हुई थी.

हालांकि 2016 में एक भी जवान की मौत नहीं हुई थी लेकिन इस साल भी तस्करों के हमले जारी रहे और 109 जवान घायल हुए, इस फोर्स से जुड़े पूर्व अधिकारी भी मानते हैं कि बहुत कुछ हो वहां पर ऐसे हालात होते हैं कि चाह कर भी हमारे देश के जवान तस्करों पर उन्हीं के अंदाज में उनको जवाब नहीं दे पाते.

जे पी सिन्हा, पूर्व बीएसएफ आईजी यह मांगते हैं कि उन जगहों पर देश के जवान उन्हीं तस्करों के अंदाज में जवाब नहीं दे पाते. तस्कर तस्करी का सामान अवैध तरीके से भारत की सीमा से बंगलादेश में ले जाते हैं और बांग्लादेश की सीमा में भारत से लाते हैं. पूरी तैयारी इनकी होती है, ये अपने साथ डंडे, ईंट पत्थर और घातक हथियार लेकर आते हैं. सरकारी नीतियों की वजह से फोर्स के जवान इन पर कड़ा प्रहार नहीं कर पाते हैं जबकि यह मौका पाते ही कड़े से कड़ा प्रहार करने से नहीं चूकते. इन जांबाजों की शहादत से ये उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात में कुछ सुधार हो.

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