क्यों बेहाल हो रहा है चाचा नेहरू का ‘बाल भवन’?
दिल्ली के कोटला रोड स्थित राष्ट्रीय बाल भवन का निर्माण बच्चों के सबसे प्रिय प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने 1956 में कराया था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय तक बाल भवन में तकनीक, शिक्षा, सृजन और कलात्मक गतिविधियों में बेहतर प्रयास किए गए.
राष्ट्रीय बाल भवन स्टाफ बताता है कि 5-16 साल के बच्चों के बीच तेजी से लोकप्रिय होता एनबीबी आज सुस्त पड़ रहा है. एनबीबी को मिलने वाली सरकारी आर्थिक मदद (मानव संसाधन विकास मंत्रालय से) में कटौती कर दी गई है. लंबे समय से प्रशिक्षकों की भर्तियां नहीं हुई. यहां कोई मंत्री अब दौरा नहीं करता. बच्चों के लिए बेहतर तकनीक और नई योजनाओं का अभाव है.
राष्ट्रीय बाल भवन में विभिन्न राज्यों से बच्चे आकर कलात्मक गतिविधियां सीखते हैं. जिनमें फोटोग्राफी, संगीत, नृत्य आदि है.
नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि ‘बिना किताब के सीखना’ जैसे कॉन्सेप्ट को सबसे पहले लाने वाले बाल भवन का हाल आज किसी राज्य के पिछड़े सरकारी स्कूल या डिस्पेंसरी जैसा हो गया है. यहां पुराने ढर्रे पर ही बच्चों को गतिविधियां सिखाई जा रही हैं.
लगातार घट रहे बाल केंद्र, नहीं आ रहे बच्चे
दिल्ली में बनाए गए राष्ट्रीय बाल भवन देशभर के बच्चों की पहुंच से दूर होने के कारण सभी राज्यों में दो-दो कमरों के बाल केंद्र खोले गए. लेकिन खस्ता हाल के कारण एनबीबी के बाल केंद्र 54 से घटकर 41 तक हो गए हैं. बताया जा रहा है कि बाल केंद्रों से ज्यादा लेटेस्ट सुविधाएं अन्य जगहों पर मिलने के कारण बच्चे भी इन केंद्रों में नहीं आ रहे हैं. वहीं आर्थिक मदद कम होने के कारण एनजीओ भी कम दिलचस्पी ले रहे हैं.
विदेशों से बंद हुआ एक्सचेंज प्रोग्राम
बाहरी देशों की व्यवस्था, तौर-तरीके और संस्कृति जानने के लिए किया जाने वाला एक्सचेंज प्रोग्राम भी कई सालों से बंद है. इसके चलते न बाहर से बच्चे भारत आ रहे हैं और न ही यहां से बच्चे बाहर जा रहे हैं. जबकि एक समय में यह बाल भवन का सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम था.
राष्ट्रीय बाल भवन का निर्माण 1956 में किया गया था, लेकिन आज सरकार की अनदेखी के कारण इस संस्था का विकास नहीं हो पा रहा है और यह पुराने ढर्रे पर ही बच्चों को प्रशिक्षित कर रहा है.
आज प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली, कभी बाल-भवन ने शुरू की थी बचाने की मुहिम
आज दिल्ली का प्रदूषण और धुंध से दम घुट रहा है. लेकिन पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए नन्हे हाथों ने काफी पहले ही जिम्मेदारी ले ली थी. राष्ट्रीय बाल भवन में 1986 में हरित वाहिनी बनी. हर बच्चा हरित वाहिनी का सदस्य बना. पर्यावरण को बचाने के लिए सभी आगे आए. बताया जाता है कि बाल-भवन के बच्चे जगह-जगह जाकर पेड़-पौधे लगाते थे.
आज बाल भवन से निकले दर्जनों बच्चों पर्यावरण बचाने की मुहिम में लगे हुए हैं. कई बच्चों ने पर्यावरण संबंधी एनजीओ बना लिए हैं.
चाचा नेहरू ने बनवाया था बाल भवन
आज से करीब 61 साल पहले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यूएसएसआर के एक्यिर प्लेस के दौरे पर गए. वे एक ऐसी जगह पहुंचे जहां अलग-जगहों से आए बच्चे खेल रहे थे, नाच रहे थे, हंस रहे थे, ड्रामा कर रहे थे, चित्रकारी कर रहे थे. यह देखकर चाचा नेहरू को भारत और यहां के बच्चों की याद आई.
बस यहीं से बच्चों के चहेते चाचा नेहरू ने एक अलग संस्था की नींव डाल दी. नाम रखा गया राष्ट्रीय बाल भवन. चाचा नेहरू जब तक जिंदा रहे, बाल भवन को फलते-फूलते देखते रहे. इसमें 5-16 साल तक के बच्चों के लिए पेंटिंग, फोटोग्राफी, थिएटर, नृत्य, लोक संगीत, पुस्तकालय, संग्रहालय की सुविधाएं विकसित की गई.
चाचा नेहरू के कई साल बाद इसकी कमान उनकी बेटी और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने हाथों में ली. इंदिरा गांधी दो बार इसकी अध्यक्ष रहीं और बाल भवन को बाल केंद्र, राज्य बाल भवन के माध्यम से बढ़ाती रहीं
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