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चुनावी बांड के जरिए राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग पारदर्शिता के खिलाफ है :चुनाव आयोग

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नई दिल्ली। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा उगाही और राजनीतिक दलों की फंडिंग की पारदर्शिता को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केंद्र सरकार के रुख का विरोध करते हुए, चुनाव आयोग (EC) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करेगी।

EC ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ बयान दिया है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इससे राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ेगा। चुनाव आयोग ने इसे प्रतिगामी कदम करार दिया। सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड की संवैधानिक मान्यता पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने यह बात कही।

चुनाव आयोग ने कहा कि इसके जरिए राजनीतिक दल सरकारी कंपनियों और विदेशी स्रोत से फंड प्राप्त कर सकेंगी, जो कानून का उल्लंघन होगा। आयोग ने कहा कि उन्होंने 2017 में इसे लेकर चिंता जाहिर की थी और केंद्र सरकार से इप पुनर्विचार की मांग की थी।

हलफनामे में कहा गया है, कानून एवं न्याय मंत्रालय को सूचित किया गया है कि ऐसी स्थिति में इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त धन को रिपोर्ट नहीं किया जा सकता है, ऐसे में यह जानकारी प्राप्त करना मुश्किल होगा कि क्या रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट की धारा 29बी के तहत कानून उल्लंघन हुआ है या नहीं। इस धारा के तहत सरकार कंपनी या विदेशी स्रोत से राजनीतिक पार्टियां धन प्राप्त नहीं कर सकती हैं।

आयोग ने हलफनामे में उस पत्र का भी जिक्र किया है, जो उसने साल 2017 में केंद्र को लिखा था,  पार्टियों को फंडिंग की पारदर्शिता का सवाल है, यह कदम प्रतिगामी है। इस प्रावधान को हटाए जाने की जरूरत है।

2017 के बजट में एनडीए सरकार ने यह स्कीम लॉन्च की थी, इसके पीछे दलील दी गई थी कि इससे पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता आएगी। कई विपक्षी पार्टियों और चुनाव आयोग ने इसका विरोध किया था।

योजना के प्रावधान के अनुसार, बॉन्ड्स  1000,  10,000,  1 लाख,  1 करोड़ में उपलब्ध होंगे और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ शाखाओं पर उपलब्ध रहेंगे। दान करने वाला व्यक्ति इन शाखाओं से बॉन्ड लेकर अपनी पंसद की पार्टी को दे सकता है, जिसे पार्टी 15 दिन के भीतर पार्टी के बैंक खाते में कैश करा सकती है।

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