जब स्वामी ने गांधी हत्या पर नए विवाद को हवा दी, हिंदू महासभा हुई नाराज
मानव-इतिहास में ऐसे लोग अनगिनत हैं जिन्हें याद करते रहना हमारी आपकी मजबूरी बन जाती है. ये नाम, अच्छे-बुरे, सही-गलत, तर्क-अतर्क की सरहदों से बाहर आकर एक ऐसा मुकाम हासिल कर लेते हैं कि अगर उन्हें भुला दिया जाए तो इतिहास आगे बढ़ने से इनकार कर देता है.
आज ये विचार शिद्दत से इसलिए आ रहा है क्योंकि आज ही के दिन यानी 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को अंबाला जेल में फांसी पर लटकाया गया था. यही वो दिन है जिस दिन नाथूराम गोडसे इतिहास की उस फेहरिस्त में दर्ज हो गया जिसके बिना इतिहास आगे बढ़ने से इनकार कर देता है. यह कुछ ऐसा ही है जैसे कोई अंतरिक्ष-यान प्रक्षेपास्त्र के बाद अपनी कक्षा में स्थापित हो जाए.
जो है वो वैसा क्यों है?लेकिन ‘जो है- वो वैसा ही क्यों है’ की मानसिकता के साथ हर विषय को कुरेदने वाले हमेशा एक नयी थ्योरी गढ़ लाते हैं. शिव की तीसरी आंख की तर्ज़ पर ‘तिरछी-नजर’ रखने वाले हमारे सुब्रमण्यम स्वामी ने 8 सितंबर, 2015 को एक ट्वीट करके ‘नया-विवाद’ की दस्तक दी.
उन्होंने ट्वीट किया कि ‘मैं गांधी-हत्या केस को दुबारा खोलने की अपील कर सकता हूं क्योंकि कुछ तस्वीरों में पाया गया है कि गांधी जी के शरीर पर चार जख्म हैं जबकि केस तीन गोलियों पर चला था, ऐसा क्यों?’
सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट ट्रोल होना शुरू हुआ तो फिर तो उन्होंने सवालों की झड़ी ही लगा दी. इतिहास में ऐसी भी बहुत सी मिसालें हैं जिनमें बंद मान लिए गए केस फिर से खुले और नए तथ्यों ने फैसलों को प्रभावित भी किया. और फिर जो सवाल स्वामी उठा रहे हैं, उन्हें नए सिरे से समझने में आखिर हर्ज ही क्या है?
लेकिन ये बात ‘हिन्दू-महासभा’ के गले से किसी भी तरह नहीं उतर पाई. उसने स्वामी के साथ-साथ बीजेपी और आरएसएस को भी इस मसले से दूर रहने की हिदायत दी. हिंदू महासभा का कहना है कि बीजेपी और आरएसएस जानबूझकर चौथी गोली की थ्योरी पैदा कर इस मामले को उलझाना चाहती हैं.
नाथुराम गोडसे
किसकी विरासत है ये?
हिंदू-महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक शर्मा ने कहा, ‘यह हर किसी को पता है कि महासभा के नाथूराम गोडसे ने ही बापू की हत्या की थी. यह हमारी विरासत है. बीजेपी और आरएसएस इसे हमसे नहीं छीन सकती. बापू की हत्या में चौथी गोली की बात करके दोनों सगठन संशय पैदा कर रहे हैं.’
‘ऐसे में उनके चेहरे पर से मुखौटे हटाने का वक्त आ गया है. नाथूराम गोडसे का हिंदू-महासभा से अभिन्न रिश्ता था. अब बीजेपी और आरएसएस गोडसे को किनारे कर महात्मा गांधी से संबंधित सारा क्रेडिट खुद लेना चाहते हैं. उन्हें पता है कि गोडसे को हटाकर महासभा अधिकारहीन हो जाएगी. हम ऐसा नहीं होने देंगे.’
गौरतलब है कि सात-दशक पहले राष्ट्रपिता की हत्या ने दुनिया को हिलाकर रख दिया था. लेकिन क्या वो हत्या गोडसे ने ही की थी? स्वामी की ही तरह यह सवाल ‘अभिनव-भारत’ के डॉ पंकज फडनीस भी उठाकर, रक्त-रंजित इस इतिहास में फिर से झांकने की कोशिश कर रहे हैं. उनका सुझाव है कि गांधी के हत्यारों में से एक, नारायण आप्टे, ब्रिटिश-गुप्त-संगठन का एजेंट था, जिसे फोर्स-136 नाम दिया गया था. फडनीस का यह भी यही तर्क है कि गांधी पर चार गोलियां चलीं और यह चौथी गोली नाथूराम गोडसे की 9 मिमी बेरेटा से नहीं, किसी अन्य पिस्तौल से चली थी.
70 साल बाद क्यों खोला ये मामला?
ये सारे तर्क सुप्रीम कोर्ट के उस सवाल के जवाब में दिए जा रहे थे, जिसमें उसने पूछा था कि 70 साल बाद इस मामले को फिर क्यों खोला जाए? दरअसल हर मर्डर एक स्पेस देता है. क्रिमिनोलॉजी के विशेषज्ञ कहते हैं कोई चाहे जितनी निपुणता से कोई योजना बना ले, फिर भी हत्या अक्षरशः योजना के मुताबिक नहीं होती.
1944 में शिमोगा में ली गई हिंदू महासभा की फोटो. (विकीपीडिया)
आइए लौटते हैं गोडसे और हिन्दू-महासभा की मानसिकता की ओर. दरअसल गांधी की हत्या एक विचार है जिसे अंजाम देने वाले का नाम है नाथूराम गोडसे. हालांकि अब तो वह विचार भी सामने आकर और छाती पीट-पीटकर कह रहा है कि गोडसे हमारी विरासत का हिस्सा है, उसे हमसे छीना नहीं जा सकता. इसी विचार को लगभग एक दशक पहले, एक कहानीकार ने अपनी कल्पना का सहारा लेकर दिलचस्प तरीके से खोलने की कोशिश की थी.
दिलचस्प है ये कहानी
इस कहानीकार का नाम है ‘असगर वजाहत’. उन्होंने एक नाटक लिखा ‘गोडसे@गांधी.कॉम.’ असगर ने अपनी बात कहने के लिए 30 जनवरी की उस दर्दनाक घटना से ही शुरुआत की, गांधी को गोली लगी और फिर लोग उन्हें लेकर आनन-फानन में अस्पताल की तरफ भागे. यहां से शुरू होती है असगर की कल्पना, जिसके मुताबिक, गांधी मरे नहीं, डॉक्टरों ने उन्हें बचा लिया. असगर वजाहत के नाटक का पहला सीन कुछ इस तरह शुरू होता है –
सीन- एक
(मंच पर अंधेरा है. उद्घोषणा समाचार के रूप में शुरू होती है.) ‘ये ऑल इंडिया रेडियो है. अब आप देवकी नंदन पांडेय से खबरें सुनिए. समाचार मिला है कि ऑपरेशन के बाद महात्मा गांधी की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है. उन पर गोली चलानेवाले नाथूराम गोडसे को अदालत ने 15 दिन की पुलिस हिरासत में दे दिया है. देश के कोने-कोने से हजारों लोग महात्मा गांधी के दर्शन करने दिल्ली पहुंच रहे हैं.’
(आवाज फेड आउट हो जाती है और मंच पर रोशनी हो जाती है. गांधी के सीने में पट्टियां बंधी हैं. वे अस्पताल के कमरे में बिस्तर पर लेटे हैं. उनके हाथ में अखबार है.)
अद्भुत शैली में लिखे गए नाटक के जरिए, असगर वजाहत, अपने पहले ही सीन से अपना इरादा साफ कर देते हैं. अस्पताल में गांधी के साथ साए की तरह रहने वाले प्यारे लाल, नेहरु, पटेल और मौलाना मौजूद हैं. इस सबके साथ गांधी की बातचीत के सहारे नाटक आगे बढ़ता है. पटेल गांधी को बताते हैं-
पटेल : बापू.. नाथूराम गोडसे ने सब कुबूल कर लिया है.
गांधी : कौन है ये? क्या करता था?
पटेल : पूना का है.. वहां से एक मराठी अखबार निकालता था… सावरकर उसके गुरू हैं हिंदू महासभा से भी उसका संबंध है… ये वही हैं जिन्होंने प्रार्थना सभा में बम विस्फोट किया था… बहुत खतरनाक लोग हैं….
गांधी : (कुछ सोचकर) मैं गोडसे.. से मिलना चाहता हूं….
सब : (हैरत से) …जी?
गांधी : हां…. मैं गोडसे से मिलना चाहता हूं… परसों ही मिलूंगा, डिस्चार्ज होते ही.
कुल-मिलाकर नाटक के पहले ही सीन से असगर वजाहत दर्शकों को बांध लेते हैं. ये तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि अगर वाकई गांधी बच जाते तो शायद अपनी पहली इच्छा यही रखते. असगर का यह नाटक अत्यंत महत्वपूर्ण है, अपने आप में एक दस्तावेज है, एक धरोहर है.
बहरहाल नाटक गांधी के स्वभाव के अड़ियलपन के साथ कोई छेड़छाड़ किए बगैर नाटक के दूसरे ही सीन में गोडसे और गांधी को आमने-सामने ला खड़ा करता है. पाठकों की रुचि के लिए हम यहां सीधे-सीधे असगर वजाहत की स्क्रिप्ट को ही रख देते हैं. ज़रा देखिए किस तरह के संवाद बन पड़े हैं इसमें-
सीन- दो
(धीरे-धीरे गांधी जी नाथूराम के सामने खड़े हो जाते हैं. नाथूराम उनकी तरफ नफरत से देखता है और मुंह फेर लेता है. गांधी भी उधर मुड़ जाते हैं, जिधर गोडसे ने मुंह मोड़ा है. अंतत: दोनों आमने-सामने आते हैं. गांधी हाथ जोड़कर गोडसे को नमस्कार करते हैं. गोडसे कोई जवाब नहीं देता.)
गांधी : नाथूराम..परमात्मा ने तुम्हें साहस दिया.. और तुमने अपना अपराध कुबूल कर लिया.. सच्चाई और हिम्मत के लिए तुम्हें बधाई देता हूं.
नाथूराम : मैंने तुम्हारी बधाई पाने के लिए कुछ नहीं किया था.
गांधी : फिर तुमने अपना जुर्म कुबूल क्यों किया है?
नाथूराम : (उत्तेजित होकर) जुर्म.. मैंने कोई अपराध नहीं किया है. मैंने यही बयान दिया है कि मैंने तुम पर गोली चलाई थी. मेरा उद्देश्य तुम्हारा वध करना था…
गांधी : तो तुम मेरी हत्या को अपराध नहीं मानोगे?
नाथूराम : नहीं…
गांधी : क्यों?
नाथूराम : क्योंकि मेरा उद्देश्य महान था..
गांधी : क्या?
नाथूराम : तुम हिंदुओं के शत्रु हो.. सबसे बड़े शत्रु.. इस देश को और हिंदुओं को तुमसे बड़ी हानि हुई है… हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान अर्थात हिंदुत्व को बचाने के लिए एक क्या मैं सैकड़ों की हत्या कर सकता हूं.
गांधी : ये तुम्हारे विचार हैं.. मैं विचारों को गोली से नहीं, विचारों से समाप्त करने पर विश्वास करता हूं…
नाथूराम : मैं अहिंसा को अस्वीकार करता हूं.
गांधी : तुम्हारी मर्जी… मैं तो यहां केवल यह कहने आया हूं कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया.
नाथूराम : (घबराकर) … नहीं-नहीं.. ये कैसे हो सकता है?
गोडसे और हिन्दू-महासभा की घबराहट एक है. लेकिन यह घबराहट क्यों? यह दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां का संविधान गांधी और गोडसे, दोनों को ही समाहित कर लेने की योग्यता रखता है. परेशान मत हो गोडसे, यहां तुमसे तुम्हारी पिस्तौल कोई नहीं छीनेगा.
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