नोटबन्दी से अमर हो गयी सोनम गुप्ता?
यह सोनम गुप्ता की बेवफाई का असर ही था कि न तो लोग इसे निगल पा रहे थे और न उगल पा रहे थे. लोगों ने सोनम की बेवफाई की आड़ लेकर नोटबंदी करने वाली सरकार तक को बेवफा बता डाला. एटीएम और बैंकों को भी बेवफा कह डाला. जिसने उन कठिन दिनों में पैसे उधार नहीं दिए, उसे बेवफा बना डाला. नोटबंदी में क्या-क्या न बिका. बेवफाई भी बाजार में बिकी.
पहले तिजोरियां और ताले टूटते थे, लेकिन नोटबंदी में बच्चों के गुल्लक टूटे, औरतों का बचत बैंक टूटा, नोट बदलने के नियम टूटे. घर की लक्ष्मियों की वो झूठी कसमें भी टूटीं जो वो अपने पतियों की शर्ट की जेब टटोलते वक्त अक्सर खाती थीं कि मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है. ताने मारतीं कि मेरे बैंकों में खाते नहीं चल रहे. मैं एक-एक पैसे के लिए मोहताज हूं. नोटबंदी की बड़ी उपलब्धियों में पत्नियों के झूठ का पर्दाफाश भी शामिल है.
हजार रुपये का नोट, जो अपने आपको सबसे बड़ा बताकर इतराता था, उस पर हमने नमक रखकर मूंगफली खाई. नोटों में जो सबसे छोटे थे वह रातोंरात बड़े हो गए थे. 10, 50 और 100 के नोट इठला रहे थे. जिनके पास थे, उसके भाव बढ़ा रहे थे. जिन सिक्कों को हम हिकारत की नजर से देखते थे, उनका ‘सिक्का’ चलने लगा.
हमने कैशलेस लेन-देने के तौर-तरीके सीखे. लेन-देन में अपनो-परायों की पहचान सीखी. जनता ने अर्थशास्त्र सीखा. बैंकरों ने स्वार्थ सीखा. सब्जी वालों तक ने पेटीएम करना सीखा. नोटबंदी ने हमें न जाने क्या-क्या सिखाया. इसने कम पैसे में जीना सिखाया. हजार, पांच सौ के पुराने नोटों की दुर्गति ने सिखाया कि हर किसी का वक्त एक जैसा नहीं रहता.
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