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प्रदूषण रोकने के मामले में यूरोप से 12 साल पीछे हैं हम

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प्रदूषण रोकने के मामले में यूरोप से 12 साल पीछे हैं हम

 

 

बेतहाशा बढ़े प्रदूषण से केंद्र सरकार चिंतित है जबकि दिल्ली सरकार ऑड-इवन लागू कर रही है. साथ ही एमसीडी ने पार्किंग रेट्स चार गुना कर दिए हैं. यानी प्रदूषण के लिए वाहनों को बड़ा जिम्मेदार बताया जा रहा है. इसका जिम्मेदार कौन है, वाहन मालिक, वाहनों के निर्माता या सरकार?

भारत स्टेज (बीएस)-III मानक वाले वाहनों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगने के बाद इस साल 1 अप्रैल से देश भर में सिर्फ बीएस-IV मानक वाले वाहन ही बिक रहे हैं.

भारत में बीएस-V की बजाय सीधे 2020 में बीएस-VI लागू करने की तैयारी है. यानी तब तक हम बीएस-IV मानक वाले वाहनों का ही इस्तेमाल करेंगे, जिसे यूरोप 12 साल पहले इस्तेमाल कर रहा था. यानी पर्यावरण के लिहाज से ईंधन की गुणवत्ता को लेकर हम यूरोपीय देशों से बहुत पीछे हैं.

वाहन प्रदूषण का भारत स्टैंडर्ड यानी बीएस यूरो मानकों के बराबर ही माना जाता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के वैज्ञानिक विवेक चटोपाध्‍याय कहते हैं “यूरोप में यूरो-IV 2005 में आ गया था. हमने इसे 12 साल बाद अब अपनाया है. यूरो-VI 2015 से लागू है और हम बीएस-VI 2020 में लागू करेंगे. बीएस-6 लागू होने के बाद प्रदूषण को लेकर पेट्रोल और डीजल कारों के बीच ज्‍यादा अंतर नहीं रह जाएगा.”

उनका कहना है कि डीजल कारों से 68 फीसदी और पेट्रोल कारों से 25 फीसदी तक नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा. यही नहीं डीजल कारों से (पीएम) का उत्सर्जन 80 फीसदी तक कम हो सकता है.

पेट्रोलियम मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि वह बीएस-6 उत्सर्जन मानकों पर ईंधन की सप्लाई करने को तैयार हैं. इसके लिए देश की दो तिहाई सरकारी रिफायनरियों को अपग्रेड करने की जरूरत होगी जिस पर करीब 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

इंडियन ऑयल से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सरकार ने एक साल पहले ही यह फैसला ले लिया था. ताकि वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की सेहत न खराब हो. रिफायनरियों को अपग्रेड करने का काम जारी है.

बीएस-4 उत्‍सर्जन मानकों वाले वाहनों के ईंधन के लिए 2010 से अब तक कई रिफानरियों ने अब तक करीब 30 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इस साल 29 मार्च को इस केस की सुनवाई के दौरान तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने यह जानकारी दी थी.

परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि “भारत में कार बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां यूरो-6 के अनुरूप इंजन बना रही हैं. उनके पास तकनीक है और 2020 तक का समय भी है.”

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