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भारत में पहली बार मुस्लिम महिलाएं निभाएंगी क़ाज़ी का फ़र्ज़

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भारत में पहली बार मुस्लिम महिलाएं निभाएंगी क़ाज़ी का फ़र्ज़

 

 

तीन तलाक जैसी गंभीर समस्याओं को खत्म करने के लिए मुस्लिम समुदाय की 15 महिलाओं ने क़ाज़ी की ट्रेनिंग लेकर इतिहास रचा है. हालांकि इन महिला क़ाज़ियों को पुरुष क़ाज़ी जैसा मज़हबी और सामाजिक स्थान नहीं मिल पाया है.

मुस्लिम महिलाएं तीन और ऐसी ही कई समस्यायों से जूझ रही हैं. कई पीड़ित महिलाएं  इंसाफ के लिए कोर्ट और सरकार के दरवाजे तक जा पहुंची. कोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला सुना कर इंस्टेंट तलाक पर पाबंदी लगा दी. जहां एक तरफ देश का कानून महिलाओं की मदद करने के लिए आगे आया है तो दूसरी ओर भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) इस समस्या को खत्म करने के लिए प्रयास करते देखा गया है.

ताकि रुकें गलत फैसले

BMMA संस्था 15 मुस्लिम महिलाओं को क़ाज़ी की ट्रेनिंग देकर तैयार कर चुकी है. उनका उद्देश्य है कि ट्रिपल तलाक और हलाला जैसे मुद्दों पर लिए गए गलत फैसले रुक सकें. इस ट्रेनिंग के बाद यह महिलाएं ना सिर्फ क़ाज़ी के तौर पर निकाह पढ़ा सकती हैं, बल्कि क़ाज़ी की सारी ज़िम्मेदारियां भी निभा सकती हैं.

एक तरफ यह ट्रेनिंग मुक्कमल कर महिलाओं ने क़ाज़ी की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए कमर कस ली हैं वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय में इस पहल पर अंगुलियां उठायी जा रही हैं. हालांकि बहुत से मुस्लिम मानते हैं कि ये एक सही कदम है.

30 महिलाओं ने हिस्सा लिया

इस ट्रेनिंग में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिसा, वेस्ट बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से कुल 30 महिलाओं ने भाग लिया था, पर किसी कारण कुछ महिलाएं ड्राप-आउट हो गयी. BMMA ने इस ट्रेनिंग को शुरू करने से पहले काफी रिसर्च किया.

रिसर्च में सामने आया कि क़ाज़ी बनने के लिए कोई फॉर्मेट नहीं बनाया गया है. तो कई जगह से इनपुट लेकर इस कोर्स का सिलेबस तय किया गया. दारुल उलूमें निस्वा नामक संस्था को रजिस्टर करवाया. ताकि इस ट्रेनिंग के बाद महिलाओं को सर्टिफिकेट दे सकें.

अब ये देखने वाली बात होगी कि समुदाय की नाराज़गी के बावजूद महिलाएं क़ाज़ी के रूप में किस तरह अपनी जगह बना पाती हैं.

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