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‘वो राहुल गांधी हैं’: जिनकी बंद मुट्ठियों में कांग्रेस की उम्‍मीद बंधी है

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‘वो राहुल गांधी हैं’: जिनकी बंद मुट्ठियों में कांग्रेस की उम्‍मीद बंधी है

 

 

गुजरात की जमीन से आज कांग्रेस बीजेपी को ललकार रही है. कांग्रेसी नेता नई उम्मीद से भर गए हैं क्योंकि उन्हें अपने एक नेता में पार्टी को आगे ले जाने और देश को नेतृत्व देने की क्षमता दिख रही है. वो कोई और नहीं, राहुल गांधी हैं. वो राहुल गांधी, जो राजनीति की ऊबड़-खाबड़ राहों पर चलकर फिलहाल उस मुकाम तक पहुंच गए हैं, जहां से वो बीजेपी की जमीन खिसकाने का दावा कर रहे हैं.

एक बार राहुल गांधी के कान में उनकी मां ने कहा था कि सत्ता ज़हर है और अब इसी ज़हर को पीने के लिए राहुल गांधी अपनी राजनीतिक यात्रा के नवसर्जन में जुटे हैं.

देश की सबसे बड़ी और पुरानी राजनीतिक पार्टी की जिम्मेदारी उनके कंधों पर उस दौर में आई है जब वाकई कांग्रेस कमज़ोर है. गुजरात से दिल्ली पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हीं के घर में हराने के लिए राहुल गांधी नए तेवर में नज़र आए.

उनके इसी तेवर की बंद मुट्ठियों में कांग्रेस की उम्मीद बंधी है, क्योंकि सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे ज़्यादा राज करने वाली पार्टी के पास अब राहुल के सिवा भरोसे के लिए कोई और नहीं है.

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चुनावी रैली में राहुल गांधी

कभी दिन थे कि कांग्रेस देश की सबसे ताकतवर महिला के कंधों पर टिकी थी और उसी महिला की गोद में चढ़े होते थे राहुल गांधी. वो ताक़तवर महिला थीं इंदिरा गांधी.

राहुल का राजनीतिक जीवन तो 2004 में शुरू हुआ लेकिन उनके जीवन में राजनीति जन्म के साथ आ गई थी. देश के सबसे ताकतवर गांधी-नेहरू परिवार के वारिस का बचपन प्रधानमंत्री आवास में ही बीता.
दफ्तर में देश चलाने वाली दादी इंदिरा गांधी के अजीज़ प्रियंका और राहुल गांधी घर में अपनी मनमानी चलाते और दादी का वक्त बच्चों को समझाने-सिखाने में बीतता.

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दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल गांधी

गांधी परिवार के भीतर की बहुत कम झलकियां ही हैं, लेकिन जिन्होंने बचपन के राहुल को देखा है वो बताते हैं कि आज का कांग्रेस नेता शर्मीला सा एक बालक था. देश चलाने वाले परिवार के राहुल का बचपन भी और बच्चों जैसा ही था, शैतानियों पर पिता की फटकार पड़ती तो दादी दीवार बनकर खड़ी हो जाती थीं.

राहुल गांधी कहते हैं कि घर में पापा बहुत अनुशासन रखते थे. कोई गलती होती थी तो डंडा पापा मारते थे और दादी मुझे बचाती थीं. चाहें मैं कुछ भी बदमाशी करता था, दादी का छिपा हुआ हाथ मुझे पापा की डांट से बचा देता था.

दादी के साथ राहुल गांधी का गहरा लगाव था. बचपन की ज़्यादातर तस्वीरों में राहुल गांधी दादी के करीब नज़र आते हैं. इसी गहरे लगाव के चलते राहुल गांधी को गहरा सदमा भी लगा था, जब दादी इंदिरा की हत्या उन्हीं के सुरक्षाकर्मियों ने कर दी थी.

इंदिरा गांधी की चिता पर चटकती लकड़ियों में कांग्रेस का एक युग राख हो रहा था और दूसरा युग उसी चिता के सामने खड़ा था. राहुल गांधी उस वक्त करीब 15 साल के थे, राजनीति में आने की उम्र नहीं थी और उनके पिता राजीव गांधी कांग्रेस की अगली उम्मीद थे.

सहानुभूति के ज्वार पर सवार कांग्रेस राजीव गांधी की अगुआई में एक बार फिर सत्ता में आई. राहुल गांधी अब करीब से राजनीति को देख और समझ रहे थे.

[object Promise]मैं राजीव जी के साथ जाता था उनके घर, जब राहुल बहुत छोटे थे. वे बहुत विनम्र हैं और संस्कार भरा है.


कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा

अब तक इंदिरा के बेटे और राहुल, प्रियंका के पिता रहे राजीव देश के नेता की भूमिका में आ गए थे. बच्चों को पिता का साथ कम मिलता और एक डर हमेशा घेरे रहता था.

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अपनी दादी की गोद में बालक राहुल

गांधी परिवार को दूसरा सदमा सन 1991 में लगा, जब राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हत्या कर दी गई. उस वक्त लगा था कि ये गांधी परिवार की राजनीति का अवसान है, लेकिन देश के शीर्ष परिवार की मां बचपन की उंगली थाम उसे जवानी की दहलीज पर ले आई. सोनिया गांधी ने परिवार की बिखरी विरासत, सियासत को सहेजा. बच्चों का संभाला. राजनीति की ऊबड़ खाबड़ राहों को समतल बनाया और बेटे राहुल को उतार दिया.

सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद तैयारी थी राहुल गांधी को राजनीति में उतारने की. बचपन का राहुल अब पीछे छूट गया था और युवा राहुल सोनिया गांधी के साथ राजनीतिक मंचों पर नज़र आने लगे थे.

2004 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने आधिकारिक तौर पर राजनीति में पांव रख दिया. पिता की सियासत से सींची गई अमेठी ने उन्हें बाहों में उठा लिया.

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मां सोनिया और दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल

ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं कि ‘राजनीति जनसेवा का रास्ता है. राहुल सहनशील हैं, लोगों की कठिनाई सुन कर समाधान निकालने में लगे रहते हैं. राहुल में नया सीखने की उत्सुकता रहती है. राष्ट्र के उत्थान के लिए एक रूपरेखा बनाई है उन्होंने.

2007 से राहुल गांधी ने अगले चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का ऐसा कलंक लगा कि देश का माहौल ही उसके खिलाफ हो गया. अन्ना आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सपना रखने वाले राहुल गांधी आलोचनाओं के कठघरे में खड़े थे और गुजरात से उठी नरेंद्र मोदी नाम की लहर देश पर छाने लगी थी.

2014 के नतीजों से लगा कि कांग्रेस की नैया का खेवैया अब शायद कोई नहीं है, लेकिन अब एक बार फिर राहुल गांधी आक्रामक तेवर में हैं. अमेठी से सियासत में उतरे राहुल का परम लक्ष्य अब दिल्ली है और उनकी युवा टीम को लगने लगा है कि यही तेवर अब कांग्रेस को सत्ता का जेवर पहनाएगा.

सचिन पायलट कहते हैं कि ‘देश भर में राष्ट्रीय स्तर पर अगर बीजेपी को कोई चुन्नौती दे रहा है, तो वो राहुल गांधी ही हैं. जिस आक्रामक अंदाज़ में बीजेपी को उन्होंने बेनक़ाब किया, अब विपक्ष भी रो-पीट कर उनका लोहा मान रहा है. उनके एक रिएक्शन पर कई मंत्रियों को एक साथ आकर रिएक्ट करना पड़ रहा है. उनकी रिएक्शन से खलबली मचती है.

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पिता राजीव गांधी के साथ राहुल

रणदीप सुरजेवाला कहते हैं, ‘राहुल में दूरदृष्टि है, दार्शनिक सोच के मालिक हैं. वो अच्छा व्यंग कर रहे हैं आजकल अपने ट्विटर से, ये उनकी सोच का नतीजा है.’

राहुल गांधी की लड़ाई इस समय राजनीति के ‘बाहुबली’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है. राहुल अब तक सियासी चुटकुलों की सामग्री ज्यादा रहे हैं और नेता कम. उनकी छवि मोदी जैसे मज़बूत राजनेता की नहीं है, लेकिन अब कांग्रेस की सारी उम्मीद उनके कंधों पर टिकी है और कांग्रेसियों को लगता है कि अब वो दिन दूर नहीं, जब राहुल का जादू चलने वाला है.

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