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Love Story : चंद्रशेखर के लिए दोस्त से कहीं अधिक थीं शैलजा

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Love Story : चंद्रशेखर के लिए दोस्त से कहीं अधिक थीं शैलजा

 

 

नौ जुलाई 2007 को यमुना के किनारे गमगीन माहौल था. वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पंचतत्व में विलीन हो रहे थे. 21 बंदूकों की सलामी दी गई. नेपाल से तीन सदस्यीय दल खासतौर पर उन्हें श्रृद्धासुमन अर्पित करने के लिए मौजूद था. दल में मौजूद शैलजा आचार्य के आंसू संभल नहीं रहे थे. वह सुबक उठतीं. चंद्रशेखर के साथ उनकी सुखद यादें जुड़ी थीं.

नेपाल में लोगों ने हमेशा माना कि चंद्रशेखर और शैलजा के बीच एक खास रिश्ता रहा. जो परिपक्वता, समझबूझ के आधार पर तैयार हुआ था, जिसमें अपनत्व और अनुराग की भी भावनाएं थीं. चंद्रशेखर और शैलजा दो ऐसी राजनीतिक शख्सियत थीं, जो दो अलग देशों की बेशक थीं लेकिन समाजवाद और लोकतंत्र में खांटी निष्ठा रखने वाली. दोनों अलग ही मिट्टी के थे. चंद्रशेखर से जुड़े लोगों का कहना है कि उनका और शैलजा का रिश्ता दोस्ती से कहीं अधिक था.

60 के दशक के युवातुर्क चेहरे
चंद्रशेखर बड़े कद के नेता थे. 60 के दशक में वह ऐसे युवातुर्क समाजवादी नेता की तरह उभरे, जिनमें गतिशीलता और राजनीति को मोड़ने की इच्छाशक्ति लगती थी. छात्र राजनीति से ही वह तेजतर्रार और जुझारू थे. व्यक्तित्व में देसी मिट्टी का खांटीपन और ईमानदार लहजा. उनका ये स्वाभाव लोगों को उनसे जोड़ता था. उनका मुरीद भी बनाता था. समय कैसा भी रहा हो लेकिन चंद्रशेखर की लोकप्रियता में कभी कोई नहीं आई.तब बस फीके पड़े थे चंद्रशेखर
हां, बस जब वर्ष 1984-85 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में सभी पार्टियों का सफाया कर दिया था. तो हारने वालों में चंद्रशेखर भी थे. तब लोगों को लगा कि जिस तरह की राजनीति वह करते हैं, उसके दिन लद गए, क्योंकि राजीव गांधी तब भविष्य के उन्नत और तकनीक संपन्न भारत का सपना दिखा रहे थे तो भाजपा हिन्दुत्व की धार को पैना करने में लगी थी. लेकिन वह चूके नहीं थे, ये उन्होंने बाद में साबित भी किया.

पहले इंदिरा के सहयोगी फिर प्रबल आलोचक
1969 में जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस तोड़ी और 1971 में जबरदस्त जीत हासिल की तो चंद्रशेखर उनके मुख्य सहयोगियों में थे. उस समय बहुत से समाजवादी इंदिरा के समर्थन में आ गए थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इंदिरा जो काम कर रही हैं, उसका रास्ता समाजवाद की ओर ही जाता है. लेकिन जल्दी ही चंद्रशेखर जैसे नेताओं का इंदिरा से मोहभंग ही नहीं हुआ बल्कि उनके प्रखर आलोचक भी बन गए. उन्हें आपातकाल में जेल में डाल दिया गया. फिर वह जनता पार्टी के अध्यक्ष बने. वर्ष 1990 में थोड़े समय के लिए प्रधानमंत्री. हालांकि हर कोई मानता है कि वह इस पद पर लंबा रहते तो देश के लिए बढ़िया होता.

शैलजा से कैसे हुई मैत्री
ज्योंही सात जुलाई को चंद्रशेखर के निधन की खबर नेपाल पहुंची तो ये नेपाल कांग्रेस के लोगों के लिए बड़ा झटका था. आखिर चंद्रशेखर ने 60 और 70 के दशक में नेपाल में लोकतंत्र के आंदोलन में नेपाली कांग्रेस का साथ ही नहीं दिया था बल्कि उन दिनों भारत आए बीपी कोइराला समेत कई नेताओं की हरसंभव मदद भी की. शैलजा भी तभी अपने मामा बीपी कोइराला के साथ यहां आईं थी. बाद में वह नेपाल की पहली महिला उप प्रधानमंत्री भी बनीं. तभी उनमें और चंद्रशेखर में एक खास तरह की मैत्री पनपी, जो लंबे समय तक जारी रही. चंद्रशेखर के अंतिम संस्कार में आने के लिए तुरत फुरत नेपाली कांग्रेस ने तीन सदस्यीय जो प्रतिनिधिमंडल बनाया, उसमें शैलजा आचार्य के साथ चंद्र प्रसाद वंसटोला और डॉ. शेखर कोइराला शामिल थे.

झटका बर्दाश्त नहीं कर पाईं
वंसटोला ने बाद में नेपाल में पत्रकारों से बताया कि चंद्रशेखर का निधन शैलजा के लिए बहुत बड़ा धक्का था. वह लंबे समय से उनसे जुड़ी थीं. रास्ते में आने के दौरान भी वह काफी विचलित दिखीं. वंसटोला ने कुछ दिनों बाद कहा, चंद्रशेखर के निधन के कुछ ही दिनों बाद शैलजा गंभीर तौर पर बीमार पड़ीं, फिर कभी नहीं उबर पाईं. दो साल के इलाज के बाद 65 साल की उम्र में प्रखर महिला नेता का निधन हो गया, जो नेपाल की राजनीति में फायरब्रांड नेता बन चुकी थीं.

भोंडसी में मेहमान
राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और जैविक खेती के पैरोकार क्रांति प्रकाश कहते हैं, उन्हें अक्सर चंद्रशेखर जी के भोंडसी आश्रम में देखा जाता था. वह याद करते हैं कि 1987 में जब वीपी सिंह भोंडसी में चंद्रशेखर से मिलने पहुंचे, तो शैलजा वहां थी. चंद्रशेखर ने उनसे अधिकारपूर्वक चूड़ा और मटर लाने को कहा. आपातकाल के दिनों पर जब उन्होंने अपनी जो जेल डायरी लिखी, जिसका प्रकाशन मेरी जेल डायरी के रूप में हुआ. उसमें भी शैलजा का जिक्र हुआ. चंद्रशेखर के करीब रहने वाले एक और पत्रकार पुष्टि करते हैं कि शैलजा भोंडसी में अक्सर आती थीं.

ताजिंदगी अविवाहित
शैलजा नेपाल में कोइराला परिवार से ताल्लुक रखती थीं. जब वह पढ़ रही थीं तो उन्होंने राजा वीरेंद्र को काला झंडा दिखाने का साहस किया था, जिसके लिए उन्हें साढ़े तीन सालों के लिए जेल में डाल दिया गया. बाद में 1990 में वह नेपाल में पहली महिला कृषि मंत्री बनीं. फिर कुछ बरसों तक भारत में नेपाल की राजदूत भी बनीं. 1998 में उन्हें कुछ समय के लिए उप प्रधानमंत्री बनाया गया. जब उन्होंने नेपाल की संसद में सत्ताधारी पार्टी में ही भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा दिया तो अपने कई सहयोगियों से ठन गई. वह ताजिंदगी अविवाहित रहीं. हालांकि उनके सहयोगी ये भी बताते हैं कि वह गलत बात बर्दाश्त करने वालों में नहीं थी, तब उनका गुस्सा देखते बनता था. वह बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला की आंटी भी थीं.

चंद्रशेखर की यात्रा और महिलाओं की होड़
क्रांति प्रकाश याद करते हैं जब चंद्रशेखर ने 1983 में भारत यात्रा शुरू की, तो उसे मीडिया में जबरदस्त कवरेज मिली. इस यात्रा ने चंद्रशेखर की लोकप्रियता को आसमान पर पहुंचा दिया. हालत ये हो गई थी कि महिलाओं ने भी इसमें जोरशोर से हिस्सा लिया. बल्कि हालत ये होती थी कि यात्रा के दौरान उनके करीब चलने के लिए महिला नेताओं में होड़ लगती थी. एक पुराने पत्रकार याद करते हैं कि चंद्रशेखर की इसी यात्रा में कोलकाता में तीन महिला नेताओं के बीच इसी बात को लेकर बड़ा झगड़ा हो गया, जो मीडिया में भी आया. बाद में भारतीय जनता पार्टी की एक शीर्ष महिला नेता ने पूर्व प्रधानमंत्री पर महिलाओं को लेकर कुछ आरोप भी लगाए लेकिन उसे शायद ही किसी ने तवज्जो दी.

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