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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लीडरों से अच्छे संबंध थे। दोनों ही मदद के लिए एक दूसरे के पास जाते थे। आपातकाल के दौरान संघ ने न सिर्फ इंदिरा का साथ दिया, बल्कि 1980 में उन्हें सत्ता में लौटने में मदद भी की। हालांकि खुद इंदिरा संघ से सावधानीपूर्वक दूरी बनाए रखती थीं। आजादी से अगले छह दशकों में भारत के प्रधानमंत्रियों की कार्यशैली को लेकर पत्रकार नीरजा चौधरी की नई किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में यह दावे किए गए हैं

पुस्तक में चौधरी ने लिखा कि संघ के खिलाफ होते हुए भी इंदिरा में आपातकाल में उसका समर्थन हासिल कर लिया था। आपातकाल के दौर में आरएसएस तीसरे प्रमुख बालासाहेब देवरस ने उन्हें कई बार लिखा। कई संघ लीडर कपिल मोहन के जरिए संजय गांधी से संपर्क करते थे। नीरजा के अनुसार इंदिरा को यह अंदेशा था कि मुसलमान कांग्रेस से नाराज हो सकते हैं, इसी वजह से वे अपनी राजनीति का हिंदूकरण करना चाहती थीं। इस काम में आरएसएस से थोड़ा सा समर्थन बल्कि उसका तटस्थ रुख भी उनके लिए बड़ा मददगार साबित होता। साल 1980 में जब अटल बिहारी वाजपेयी अपनी सेकुलर छवि बनाने में जुटे थे, इंदिरा गांधी कांग्रेस का हिंदूकरण कर रहीं थीं।

इंदिरा में हिंदुओं का नेता देखते थे देवरस
पुस्तक में इंदिरा के करीबी रहे अनिल बाली के हवाले से दावा किया गया कि संघ ने उन्हें 1980 में 353 सीटों की विशाल जीत के साथ सत्ता में लौटने में मदद की, वे खुद इतनी सीटें नहीं जीत सकती थीं। जल्द विमोचित होने जा रही पुस्तक में बाली का कथन है कि इंदिरा गांधी मंदिरों में बहुत जाने लगी थीं, जिसने संघ के लीडरों को प्रभावित किया। बालासाहेब देवरस ने तो एक बार टिप्पणी भी की कि ‘इंदिरा बहुत बड़ी हिंदू हैं।’ बाली के अनुसार देवरस और बाकी संघ लीडर इंदिरा में हिंदुओं का नेता देखते थे।

कई नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस, वीपी सिंह जैसा असर कोई न छोड़ सका
चौधरी के अनुसार कांग्रेस छोड़ने वाला कोई भी नेता वीपी सिंह जैसा प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में नहीं डाल सका, चाहे वे चंद्रशेखर हों या शरद पवार, रामकृष्ण हेगड़े, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी। वीपी सिंह ने दक्षिण, वाम, केंद्रीय और क्षेत्रीय ताकतों को साथ लेकर गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई, भले ही एक साल से कम वक्त के लिए। यह पहला असली राष्ट्रीय-गठबंधन था। क्षेत्रीय पार्टियों को पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में भागीदारी मिली। पार्टी छोड़ने वाले बाकी नेता केवल राज्यों तक सीमित रहे, बल्कि कई बार सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के ही समर्थन की जरूरत उन्हें हुई।

पाकिस्तान तोड़ने का श्रेय दिया
इससे पहले 1971 में पाकिस्तान के विखंडन और बांग्लादेश के जन्म ने भी आरएसएस को अभिभूत किया। तत्कालीन संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने उन्हें लिखा, ‘इस उपलब्धि का बड़ा श्रेय आपको जाता है।’ तीन साल बार जब परमाणु परीक्षण किए, तो संघ फिर से इंदिरा गांधी की तारीफ में जुट गया। संघ हमेशा से सैन्य तौर पर एक मजबूत भारत चाहता था।