भोजपुरी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने की मांग बिहार में तेज हो गई है, खासकर विपक्षी महागठबंधन के इस मुद्दे का समर्थन करने के बाद। यह मांग लंबे समय से चली आ रही है, और हाल ही में पांच और भाषाओं – मराठी, बंगाली, पाली, प्राकृत और असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद इसने नई गति पकड़ ली है। यह निर्णय भोजपुरी भाषा के समर्थकों के लिए प्रेरणादायक है और उन्होंने आधिकारिक मान्यता की अपनी मांग को और ज़ोरदार ढंग से उठाया है। इस लेख में हम इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें भाषा के सांस्कृतिक महत्व, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और आधिकारिक मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया शामिल है।
भोजपुरी भाषा का सांस्कृतिक महत्व और व्यापक उपयोग
भोजपुरी भाषा बिहार के कई जिलों जैसे भोजपुर, रोहतास, कैमूर, बक्सर, सारण, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, गोपालगंज, सीवान और जहानाबाद के साथ-साथ झारखंड के कई हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है। यह एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाली भाषा है, जिसका साहित्य, संगीत और लोक कला में गहरा योगदान है। इसका व्यापक उपयोग और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि यह भाषा बिहार के लोगों के जीवन में कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए है। यह केवल एक बोली नहीं, अपितु एक पूरी पहचान है जो लाखों लोगों को जोड़ती है।
भोजपुरी भाषा और संस्कृति का गहरा नाता
भोजपुरी भाषा का गहरा संबंध बिहार की संस्कृति और इतिहास से है। यह भाषा लोकगीतों, कहानियों, और नाटकों के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती आई है। भोजपुरी फिल्मों और संगीत ने भी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन माध्यमों से भाषा न सिर्फ़ जीवित रही है बल्कि और भी अधिक लोकप्रिय भी हुई है।
राजनीतिक पहलू और महागठबंधन का समर्थन
महागठबंधन के घटक दलों – राजद, कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने भोजपुरी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग जोरदार ढंग से उठाई है। उन्होंने संसद में इस मुद्दे को उठाने की बात कही है। यह राजनीतिक समर्थन भाषा को आधिकारिक मान्यता दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विपक्षी दलों का यह रुख यह दर्शाता है कि भोजपुरी भाषा का मामला अब सिर्फ़ सांस्कृतिक नहीं रहा, बल्कि एक राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है।
भाजपा सरकार का रुख और विपक्ष की आलोचना
बिहार में एनडीए सरकार और केंद्र सरकार पर भोजपुरी भाषी लोगों के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप विपक्षी दलों द्वारा लगाये जा रहे है। विपक्ष का कहना है की भोजपुरी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा न मिलना बिहार के लोगों के साथ अन्याय है और इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
संवैधानिक प्रक्रिया और चुनौतियाँ
भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं। सरकार द्वारा भाषायी आधार पर आधिकारिक मान्यता देने के लिए पर्याप्त तथ्यों और प्रमाणों की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में भाषा के उपयोग, भाषिक विस्तार और आर्थिक क्षमता को महत्वपूर्ण पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाता है। हालाँकि, राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनसमर्थन से इन चुनौतियों को पार किया जा सकता है।
आठवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रक्रिया
संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं को शामिल करने की प्रक्रिया लंबी और जटिल है। इसमें सरकार को विभिन्न भाषा वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करने की आवश्यकता होती है। साथ ही, इस प्रक्रिया में सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं पर भी विचार किया जाता है। इसके लिए जनता का व्यापक समर्थन और सरकार का सहयोग भी आवश्यक है।
निष्कर्ष और आगे का रास्ता
भोजपुरी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना बिहार के लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इस मुद्दे को राजनीतिक दलों के समर्थन और जनसमर्थन के माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए एक रणनीतिक योजना और लगातार प्रयासों की आवश्यकता है। सरकार को भी भोजपुरी भाषा के महत्व को समझते हुए इस मामले में सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए और इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
टेक अवे पॉइंट्स:
- भोजपुरी भाषा बिहार और झारखंड के कई हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है और इसका समृद्ध सांस्कृतिक महत्व है।
- महागठबंधन ने भोजपुरी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग का समर्थन किया है और इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कही है।
- भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनसमर्थन से इसे पार किया जा सकता है।
- भोजपुरी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना बिहार के लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ा है और सरकार को इस मामले में सकारात्मक कदम उठाने चाहिए।
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