कृषि क्षेत्र में महिलाओं को मिलने वाले कम वेतन की समस्या एक गंभीर चुनौती है, जो न केवल आर्थिक असमानता को दर्शाती है बल्कि सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों का भी उल्लंघन करती है। यह समस्या तमिलनाडु राज्य में व्यापक रूप से देखी जा सकती है, जहाँ महिला कृषि श्रमिकों को पुरुषों की तुलना में काफी कम वेतन मिलता है, भले ही वे समान या अधिक कठिन कार्य करें। यह लेख तमिलनाडु में महिलाओं के साथ हो रहे इस भेदभाव और इसके पीछे के कारणों पर विस्तार से चर्चा करेगा।
तमिलनाडु में महिला कृषि श्रमिकों का वेतन असमानता
तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों से मिली रिपोर्टों से पता चलता है कि महिला कृषि श्रमिकों को पुरुषों के मुकाबले बहुत कम वेतन दिया जाता है। चाहे वह केले के खेतों में निराई हो, धान की रोपाई हो, या कपास की कटाई हो, महिलाएं समान काम के लिए पुरुषों से काफी कम वेतन पाती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ जगहों पर पुरुषों को प्रतिदिन 700 रुपये मिलते हैं, जबकि महिलाओं को केवल 250 से 400 रुपये मिलते हैं। यह अंतर कई कारकों से प्रभावित है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
शारीरिक श्रम का गलत आकलन
बहुत से नियोक्ता महिलाओं के कार्य को “हल्का” या “कुशलताहीन” मानते हैं, भले ही वे सटीकता और कौशल की मांग करने वाले कामों में पुरुषों से भी अधिक कुशल हो सकती हैं। धान की रोपाई, निराई, और कपास की तुड़ाई जैसे कार्य सटीकता और शारीरिक परिश्रम की मांग करते हैं, लेकिन महिलाओं के कार्य की महत्ता को कम करके आंका जाता है। इस गलत धारणा के कारण महिलाओं को कम वेतन दिया जाता है।
लिंग आधारित श्रम विभाजन
पारंपरिक रूप से, कृषि क्षेत्र में लिंग आधारित श्रम विभाजन प्रचलित रहा है, जिसके कारण पुरुषों और महिलाओं के कार्यों को अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। पुरुषों को आमतौर पर भारी उपकरणों के उपयोग और भारी शारीरिक श्रम से जुड़े काम सौंपे जाते हैं, जबकि महिलाओं को अधिक सटीकता और कुशलता वाले काम करने पड़ते हैं। इस विभाजन के कारण, पुरुषों के कार्यों को महिलाओं के कार्यों से अधिक मूल्यवान माना जाता है, जिससे वेतन में असमानता पैदा होती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड
सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड भी वेतन असमानता को बढ़ावा देते हैं। कई समाजों में पुरुषों को परिवार का मुख्य रोजगारकर्ता माना जाता है, जिसके कारण उन्हें महिलाओं की तुलना में अधिक वेतन दिया जाता है। इसके अलावा, महिलाओं के काम को अक्सर “गृहस्थी के काम” के रूप में माना जाता है, जिसे उतना महत्व नहीं दिया जाता जितना बाजार में किए जाने वाले काम को दिया जाता है।
अन्य क्षेत्रों में भी व्याप्त वेतन असमानता
कृषि क्षेत्र के अलावा, तमिलनाडु में अन्य असंगठित क्षेत्रों में भी महिलाओं के साथ वेतन में भेदभाव किया जाता है। निर्माण कार्य, बुनाई और छोटे कारोबारों जैसे क्षेत्रों में, महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कम वेतन पाती हैं, भले ही वे समान या अधिक कठिन काम करती हों। निर्माण कार्य में महिलाएँ भारी सामान उठाने और मिश्रण करने के काम करती हैं, फिर भी उन्हें पुरुषों से कम वेतन दिया जाता है। वस्त्र उद्योग में भी यह समस्या समान रूप से व्याप्त है, जहाँ महिलाएँ पुरुषों के मुकाबले कम वेतन प्राप्त करती हैं।
असंगठित क्षेत्र और शोषण
महिलाओं के काम का अक्सर सही मूल्यांकन नहीं किया जाता है। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं अक्सर शोषण का शिकार होती हैं, उन्हें न्यायिक प्रक्रियाओं तक पहुँच नहीं मिल पाती है। कई महिलाएं ऋण के बोझ तले दबी रहती हैं और उन्हें उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने के लिए मजबूर किया जाता है।
सरकारी नीतियों की अनदेखी
सरकार द्वारा जारी न्यूनतम वेतन संबंधी आदेशों को अक्सर लागू नहीं किया जाता है। कई नियोक्ता इन आदेशों की अनदेखी करते हैं, जिससे महिलाओं को न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिलता है। सरकारी नीतियों और उनके क्रियान्वयन में अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
वेतन असमानता से निपटने के उपाय
तमिलनाडु में महिलाओं के साथ हो रहे वेतन भेदभाव को रोकने के लिए कई उपायों की आवश्यकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
जागरूकता अभियान
जनजागरूकता अभियान के माध्यम से महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सकता है। महिलाओं को संगठित करके उन्हें अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।
कानूनों का सख्ती से क्रियान्वयन
मौजूदा कानूनों को सख्ती से क्रियान्वित करना अत्यंत जरुरी है। न्यूनतम वेतन और समान वेतन के कानूनों को सख्ती से लागू करके महिलाओं के शोषण को रोका जा सकता है।
कौशल विकास कार्यक्रम
महिलाओं के कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना भी जरुरी है। इससे महिलाओं को बेहतर नौकरियां मिलने में मदद मिलेगी और वे उच्च वेतन प्राप्त कर पाएंगी।
निष्कर्ष (Takeaway points)
- तमिलनाडु में कृषि और अन्य असंगठित क्षेत्रों में महिलाएँ पुरुषों के मुकाबले कम वेतन प्राप्त करती हैं।
- यह वेतन असमानता लिंग भेदभाव, सामाजिक मानदंडों और कानूनों के अपूर्ण क्रियान्वयन से प्रभावित है।
- इस समस्या को हल करने के लिए जागरूकता अभियान, कानूनों का सख्त क्रियान्वयन और कौशल विकास कार्यक्रम जैसे उपायों की आवश्यकता है।
- समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने के लिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा।
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