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प्रोफेसर साईबाबा: संघर्ष और विरासत का एक अधूरा अध्याय

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प्रोफेसर साईबाबा: संघर्ष और विरासत का एक अधूरा अध्याय
प्रोफेसर साईबाबा: संघर्ष और विरासत का एक अधूरा अध्याय

प्रोफेसर गोकारकोंडा नागा साईबाबा के निधन ने एक अधूरा अध्याय बंद कर दिया है। उनके जीवन ने अकादमिक उत्कृष्टता, सामाजिक सक्रियता और एक लंबी, कठिन कानूनी लड़ाई की कहानी सुनाई, जो अंततः उनके लिए विजय नहीं मिल पाई। 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर, 2024 को हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (NIMS) में उनका निधन हो गया। यह निधन न केवल उनके परिवार और दोस्तों के लिए अपूरणीय क्षति है, बल्कि उन सभी के लिए भी है जो सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए उनकी प्रतिबद्धता से प्रेरित थे। उनके अंतिम दिनों के अनुभव और मुकदमेबाजी की लंबी यात्रा ने भारतीय न्यायिक प्रणाली पर कई सवाल खड़े किए हैं। आइए, उनके जीवन और उनके अंतिम दिनों पर एक विस्तृत दृष्टि डालते हैं।

प्रोफेसर साईबाबा का जीवन और कार्य

प्रोफेसर साईबाबा का जन्म वर्तमान आंध्र प्रदेश के अमलापुरम में हुआ था। पाँच साल की उम्र में पोलियो से पीड़ित होने के बाद भी उन्होंने शिक्षा और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की। 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिलने पर वे दिल्ली चले गए और वहीं उनका जीवन काफी बदल गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत रहते हुए, उन्होंने ऑल इंडिया पीपुल्स रेसिस्टेंस फोरम (AIPRF) के साथ मिलकर केंद्रीय भारत के आदिवासी क्षेत्रों में चलाए जा रहे ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ आवाज उठाई, जो उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

एकेडमिक योगदान और सामाजिक सक्रियता

एक प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्य के शिक्षक होने के साथ ही, प्रोफेसर साईबाबा एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनका यकीन था कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली माध्यम है। AIPRF के साथ उनका जुड़ाव उनके सामाजिक कार्यों को और मज़बूत करता है।

ऑपरेशन ग्रीन हंट विरोध और गिरफ़्तारी

प्रोफेसर साईबाबा का ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ खुला विरोध उन्हें कानूनी पचड़ों में डाल गया। 2014 में उन्हें कथित माओवादी संबंधों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। यह गिरफ्तारी बहुत विवादित रही और उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा। उन पर लगाए गए आरोपों की गंभीरता के कारण उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा।

लंबी कानूनी लड़ाई और मुक्ति

2017 में महाराष्ट्र के एक सत्र न्यायालय ने प्रोफेसर साईबाबा को दोषी ठहराया, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ गईं। हालांकि, 2022 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मुकदमे में प्रक्रियागत त्रुटियों का हवाला देते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। परन्तु उच्च न्यायालय के फैसले के 24 घंटों के भीतर, सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश रद्द कर दिया, और नए सिरे से सुनवाई की बात कही गई। इस आदेश के बाद उनकी कानूनी लड़ाई जारी रही। अंततः, 5 मार्च 2024 को, बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने उन्हें बरी कर दिया और 7 मार्च को वह जेल से रिहा हुए।

जेल जीवन और स्वास्थ्य समस्याएं

जेल में बिताए लगभग 3,592 दिनों में, प्रोफेसर साईबाबा ने नागपुर केंद्रीय कारागार के एकान्त कक्ष (अंडा सेल) में ज्यादातर समय बिताया था। यह अनुभव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ा था। उनके पोलियो के चलते पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याएं और बढ़ गई थीं। जेल से रिहा होने के बाद उन्हें अच्छा स्वास्थ्य लाभ नहीं हो सका, और रिहाई के 219 दिन बाद ही उनका निधन हो गया।

निधन और विरासत

गंभीर बीमारी के कारण प्रोफेसर साईबाबा को 11 अक्टूबर, 2024 को हैदराबाद के निजाम इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (NIMS) में भर्ती कराया गया था। एक हफ़्ते पहले हुई पित्ताशय की सर्जरी के बाद हुई जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनका निधन 12 अक्टूबर, 2024 की शाम को हुआ। उनके निधन से एक विशिष्ट शख्सियत का अन्त हुआ, जिसने अपने जीवन के हर पल का प्रयोग सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए किया।

निष्कर्ष और भावनात्मक प्रभाव

प्रोफेसर साईबाबा के निधन ने भारतीय न्यायिक प्रणाली और मानवाधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े किए हैं। उनके जीवन की कहानी उनके आदर्शों, साहस और अडिग आवाज़ के बारे में बताती है। उनकी विरासत उन सभी के लिए प्रेरणा का काम करेगी, जो सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए हमें उनके आदर्शों को जीवित रखने का संकल्प लेना होगा।

टेकअवे पॉइंट्स:

  • प्रोफेसर गोकारकोंडा नागा साईबाबा एक प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता थे।
  • ऑपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी जो कई सालों तक चली।
  • उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा और स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझना पड़ा।
  • उनका निधन उनके अंतिम दिनों में हुई जटिलताओं के कारण हुआ।
  • प्रोफेसर साईबाबा की विरासत सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक है।
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