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एक मां ने अपने कोशिशों से बदल दी 28 अनाथ बच्चों की जिन्दगी

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उपेन्द्र कुशवाहा

पडरौना, कुशीनगर । बस नाम ले लीजिए। दोनों पैरों व दोनों हाथों से दिव्यांग मासूम डेविड इस कदर घिसटकर दौड़ता चला आएगा कि यकीन नहीं होगा। सामने थाली में भोजन रख दीजिए, क्या मजाल चावल का एक दाना नीचे गिर जाय। यह मासूम डेविड पडरौना से सटे परसौनी कला स्थित अनाथालय की आंखों का तारा है। डेविड जैसे 28 अनाथ बच्चे यहां पल रहे हैं और इन बच्चों को मिल रहा है अनाथालय की संचालिका बुजुर्ग महिला वसुमता सीरिन की ममता। वर्ष 2011 में सीरिन को एक अनाथ बच्ची मिली।

नाम रखा महिमा और खोल दिया महिमा बाल आश्रम। धीरे-धीरे परिवार बढ़ता गया। पुलिस भी लावारिस मिलने वाले बच्चों को यहां पहुंचाती रही और बिना किसी सरकारी अनुदान के लोगों के सहयोग से इस जीवट महिला ने आज अपने परिवार की संख्या 28 कर ली है। लगभग सभी बच्चों को इस आश्रम में ही नाम मिला है। महिमा जहां हाईस्कूल की छात्रा है। वहीं पलक, लिली, डेविड, परी, मिट्ठी, डैरिन, विनोद, गुड्डी व डैनी छोटे होने के कारण स्कूल नहीं जाते। सुबह से रात कब होती है वसुमता सीरिन को पता ही नहीं चलता। आपस में जुड़े तीन कमरों में बिस्तर लगता है और सब साथ सोते हैं।

पूर्व डीएम ने की थी मदद कुशीनगर के पूर्व डीएम रहे रिग्जियान सैंफिल ने सीरिन वसुमता के प्रयासों को खूब सराहा था। अनाथ बच्चों के लिए डीएम ने मदद करानी शुरू की थी। शहर के कुछ समाजसेवियों के हाथ भी मदद को बढ़ते रहते हैं। 10 से 12 बच्चों को इंग्लिश मीडियम और सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का जिम्मा भी कुछ लोगों ने लिया है। रेलवे स्टेशन के पास मिला था डेविड इस अनाथ आश्रम की आंखों का तारा डेविड डेढ़ साल पहले पड़रौना रेलवे स्टेशन के पास पुलिस को मिला था। दोनों हाथ और दोनों पैर नहीं थे। आज डेविड कमर के बल दौड़ता है, ऊंचाई पर रख दिए थाल से खाना भी खाता है। दूसरे बच्चों से किसी मामले में कम नहीं है डेविड।

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