उत्तर प्रदेश के बहराइच में 13 अक्टूबर को हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद कथित रूप से शामिल व्यक्तियों के भवनों को गिराने के नोटिस जारी करने के मामले में, राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया है कि अधिकारी कल तक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। यह घटना दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान हुई थी जिसमे राम गोपाल मिश्रा नामक एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार पांच लोगों में से दो पुलिस मुठभेड़ में घायल हो गए, जबकि शेष तीन को हिरासत में लिया गया। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) प्रशांत कुमार ने बताया कि स्थिति अब नियंत्रण में है। 18 अक्टूबर को, लोक निर्माण विभाग (PWD) ने बहराइच हिंसा में आरोपी अब्दुल हमीद के आवास के लिए अवैध निर्माण को लेकर विध्वंस नोटिस जारी किया था। इसके बाद, उत्तर प्रदेश के अधिकारियों द्वारा बहराइच हिंसा में आरोपी कई लोगों को कथित अवैध निर्माण को लेकर जारी किए गए विध्वंस नोटिस के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। तीन याचिकाकर्ताओं ने संयुक्त रूप से अधिवक्ता मृगंक प्रभाकर के माध्यम से याचिका दायर की, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय से विध्वंस नोटिस को रद्द करने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्रस्तावित विध्वंस दंडात्मक है और इसे “अनाधिकृत निर्माण” के बहाने किया जा रहा है ताकि न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम सुरक्षात्मक आदेशों को अवैध रूप से पार किया जा सके।
बहराइच हिंसा और विध्वंस नोटिस
घटना का सारांश
13 अक्टूबर को बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इस घटना के बाद, पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया। हिंसा में शामिल कथित व्यक्तियों के घरों पर प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए अवैध निर्माण के आरोप में विध्वंस नोटिस जारी किए। ये नोटिस मुख्य रूप से अब्दुल हमीद के आवास को निशाना बनाते हैं, जो इस घटना के मुख्य आरोपियों में से एक हैं। पुलिस ने मुठभेड़ में कुछ आरोपियों को भी घायल कर दिया था।
विध्वंस नोटिस पर विवाद
विध्वंस नोटिस जारी करने के बाद, कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को “बुलडोजर जस्टिस” करार देते हुए कड़ी निंदा की है। उनका मानना है कि यह कार्रवाई अत्यधिक दंडात्मक और असंवैधानिक है। वे यह भी दावा करते हैं कि विध्वंस नोटिस हिंसा में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए एक बहाना मात्र है, और वास्तविक मकसद अवैध निर्माण के आधार पर कार्रवाई करना नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
तीन याचिकाकर्ताओं ने मिलकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया है कि विध्वंस नोटिस एक छल है जिसका उद्देश्य हिंसा में कथित संलिप्तता के कारण दंडात्मक कार्रवाई करना है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विध्वंस की कार्रवाई जल्दबाजी में की जा रही है और इसमें द्वेषपूर्ण भावना काम कर रही है। याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह नोटिस को रद्द करे और उत्तर प्रदेश सरकार को इस तरह की कार्रवाई से रोकने का निर्देश दे।
न्यायालय का रुख
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से कल तक किसी भी विध्वंस कार्रवाई पर रोक लगाने का आश्वासन लिया है। यह अदालत द्वारा मामले में प्रारंभिक सुनवाई और विचार के बाद दिया गया निर्णय है। अदालत अब इस मामले पर आगे सुनवाई करेगी और उचित फैसला सुनाएगी।
“बुलडोजर जस्टिस” पर बहस
सरकार का तर्क
सरकार का दावा है कि विध्वंस नोटिस अवैध निर्माण के खिलाफ जारी किए गए हैं और हिंसा के साथ उनका कोई संबंध नहीं है। यह कार्रवाई नियमित शहरी विकास और नियोजन नीति के तहत की गई है।
विपक्ष का विरोध
विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को “बुलडोजर जस्टिस” करार दिया है। उनका कहना है कि सरकार हिंसा में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल कर रही है। उनका यह भी कहना है कि ये कार्रवाई संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है और समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। इस मुद्दे पर बहस तेज होती जा रही है और जनमानस में इस बारे में व्यापक चिंता है।
निष्कर्ष
बहराइच हिंसा के बाद जारी किए गए विध्वंस नोटिसों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका और “बुलडोजर जस्टिस” पर चल रही बहस एक गंभीर मुद्दा है जो न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन को लेकर सवाल उठाता है। यह मुद्दा न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक-राजनीतिक भी है और इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। न्यायालय के आगे इस मामले का क्या निर्णय होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
मुख्य बातें:
- बहराइच में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद कथित रूप से शामिल व्यक्तियों के खिलाफ विध्वंस नोटिस जारी किए गए।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को कल तक किसी भी विध्वंस कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया है।
- विध्वंस नोटिसों को “बुलडोजर जस्टिस” के रूप में देखा जा रहा है।
- यह मुद्दा न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन पर सवाल उठाता है।