img

समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि भाजपा, जो सपा पर हमेशा “परिवारवादी” होने का आरोप लगाती रही है, अब खुद “रिश्‍तेदारवादी” बन गई है। यह बयान अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में करहल विधानसभा सीट के उपचुनाव को लेकर दिया है, जहाँ भाजपा ने अंजुवेश यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। अंजुवेश यादव और सपा के उम्मीदवार तेज प्रताप यादव के बीच रिश्तेदारी का नाता है, दोनों साले-भाई हैं। इस घमासान ने राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छेड़ दी है। यह घटनाक्रम उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लाता है और पार्टियों के आरोप-प्रत्यारोप का नया अध्याय जोड़ता है।

भाजपा का “रिश्‍तेदारवादी” रवैया: सपा का आरोप

अखिलेश यादव का तंज

अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा ने हमेशा सपा पर परिवारवाद का आरोप लगाया है, लेकिन अब खुद उससे भी आगे निकल गई है। करहल के दीवाली कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपनी उम्मीदवारी की सूची जारी कर खुद को “रिश्‍तेदारवादी” साबित कर दिया है। यह टिप्पणी भाजपा द्वारा अंजुवेश यादव को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद आई है, जो तेज प्रताप यादव के साले हैं। अखिलेश यादव ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि यह पार्टी अपने दावों के विपरीत काम कर रही है और खुद परिवारवाद को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने भाजपा के इस कदम को राजनीतिक चालाकी बताया है।

भाजपा का पलटवार

भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के सामाजिक कल्याण राज्य मंत्री आसिफ अरुण ने सपा प्रमुख के आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि यह कोई पारिवारिक मुकाबला नहीं है, बल्कि नीतियों की लड़ाई, सत्य और असत्य की लड़ाई और अपराधियों और कानून का पालन करने वालों के बीच लड़ाई है। उन्होंने सपा के “पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक” परिवार पर केन्द्रित होने के दावे पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा समाज के सभी वर्गों के लिए काम कर रही है। उन्होंने अंजुवेश यादव के पक्ष में जनसभाओं को सम्बोधित किया और सपा सरकार के दौरान हुए कथित कुशासन और अपराध पर सवाल उठाए।

करहल उपचुनाव: एक “फूफा बनाम भतीजा” मुकाबला

पारिवारिक रिश्तों की राजनीति

करहल उपचुनाव में सपा के तेज प्रताप यादव और भाजपा के अंजुवेश यादव के बीच मुकाबला “फूफा बनाम भतीजा” के रूप में देख जा रहा है। यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि करहल सीट 1993 से सपा का गढ़ रही है और मुलायम सिंह यादव से जुड़े भावनात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बहुत मायने रखता है। सपा इस चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल मान रही है और भाजपा इसका भरपूर इस्तेमाल करने की कोशिश में लगी हुई है। इस उपचुनाव में पारिवारिक रिश्तों की राजनीति स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है।

राजनीतिक महत्व

करहल विधानसभा सीट का यह उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत महत्व रखता है। यह सीट मुलायम सिंह यादव का गढ़ रही है, और इस चुनाव के परिणाम का प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है। दोनों दल इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं और अपने-अपने हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस सीट पर होने वाले चुनाव के परिणाम भविष्य में होने वाले चुनावों की दिशा तय कर सकते हैं।

आरोप-प्रत्यारोप और चुनावी रणनीतियाँ

भ्रष्टाचार के आरोप और विकास का मुद्दा

सपा ने भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं और कहा है कि यह सरकार उत्तर प्रदेश को खोखला कर रही है। वहीं भाजपा ने सपा सरकार के कार्यकाल में हुए कुशासन और अपराध को मुद्दा बनाया है। यह उपचुनाव भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों को लेकर दोनों दलों के बीच तीखी बहस का अखाड़ा बन गया है। इसमें दोनों पार्टियां अपने-अपने पक्ष में जनमत जुटाने की कोशिश कर रही हैं।

जनता का रुझान

इस उपचुनाव में जनता का रुझान किस ओर रहेगा, यह अभी कहा नहीं जा सकता। दोनों दल पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं और अपने-अपने मुद्दों पर जनता को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिरकार जनता का फैसला किसके पक्ष में जाएगा। यह उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक संकेत भी दे सकता है।

टेकअवे पॉइंट्स:

  • करहल उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच तीखा मुकाबला है।
  • यह उपचुनाव “फूफा बनाम भतीजा” के रूप में भी देखा जा रहा है।
  • दोनों दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
  • यह उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।
  • इस चुनाव का परिणाम आगामी विधानसभा चुनावों पर प्रभाव डाल सकता है।