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बेरोजगारी के जख्मों पर कोड़े – बेचो पकौड़े!

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2014 के आम चुनाव में जिस नरेंद्र मोदी ने हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार और नौकरी देने का वादा किया था, वही मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अब देश के युवकों को ‘पकौड़े बेचने’की सलाह दे रहे हैं। इससे देश में चल रही है ‘पकौड़ा पॉलिटिक्स’।

कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष (और सत्ता की साथी शिवसेना भी) पीएम मोदी के बयान की जहां निंदा आलोचना करने में जुटा है, वहीं भाजपाध्यक्ष अमित शाह सहित सारे भगवाधारी ‘पकौड़ा बयान’का पुरजोर बचाव करने लगे हैं।

अगर देश के युवाओं को पकौड़े ही बेचना है, तो हर मां-बाप उन्हें उच्च शिक्षा दिलाए ही क्यों?  नई दिल्ली। किसी ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि इस देश में कभी कोई ‘चाय वाला’ इतना फेमस हो जाएगा।

लगता है ‘चाय वाला’ के बाद अब ‘पकौड़े वाला’ भी प्रसिद्धदी के मार्ग पर है। क्योंकि हमारे देश के प्रधानमंत्री ही इसे चर्चित और प्रख्यात विख्यात करने पर तुले हैं। वैसे हम बता दें कि पकौड़ों का व्यवसाय करना न गलत है, न जुर्म है, न शर्म की बात है।

हर धंधा गर्व से करना चाहिए। हर धंधे का अपना गौरव है। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसलिए अपने ‘पकौड़ा वाले बयान’ पर घिर गए हैं, क्योंकि उन्होने सुशिक्षित बेरोजगारी को रोजगार प्राप्ति के साधन के रूप में पकौड़ा बेचने की सलाह दे डाली है।

कांग्रेस, राकांपा, सपा, बसपा, तृणमूल, आप और राजद आदि विपक्ष के सभी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी की खिंचाई की है। ‘पकौड़े वाले’ उक्त बयान की सीधी आलोचना करने में मोदी सरकार की सहयोगी शिवसेना भी पीछे नहीं रही।

उसने साफ कह दिया कि मोदी सरकार से देश के सुशिक्षित बेरोजगारों को नौकरी देकर नहीं हो रहा है, इसलिए वह इन्हें पकौड़े बेचने की बेतुकी सलाह दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि 2014 के आम चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने देश के सुशिक्षित युवाओं को सत्ता में आने के बाद हर साल दो करोड़ लोगों को सरकार नौकरियां देने का आश्वासन दिया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने सरकारी नौकरियां बढ़ाने और रोजगार के नए-नए अवसर खोलने का वादा देश की जनता और करोड़ों बेरोजगारों से किया था।

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मगर अब जबकि उनके कार्यकाल को चार साल पूरे हो रहे हैं और अब तक बमुश्किल 50 लाख युवाओं को ही सरकारी नौकरी दे पाए हैं, ऐसे में उनका हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को नौकर देने के वादे की हवा निकल चुकी हैं।

संभवत: उसी की भरपायी के लिए मोदी देश के सुशिक्षित युवाआे और बेरोजगारों का ध्यान सरकारी नौकरी से भटकाने के लिए पकौड़ा तलने और बेचने की सलाह स्वरूप दे रहे हैं।

लेकिन जरा सोचिए कि कोई भी मां-बाप अपने बच्चे को 10-10 या 20-20 लाख रुपए खर्च कर क्या इसलिए उच्च (इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रशासनिक) दिलाता है कि वह उच्च डिग्री लेने के बाद भी ’पकौड़ा’ तले और बेचे!

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अगर भविष्य में इन युवकों को पकौड़े ही बेचने हों, तो हर मां-बाप उन्हें उच्च विभूषित करे ही क्यों? क्या मोदी का बयान बेरोजगारी की पीठ पर बने जख्मों पर नमक डाल कर कोड़े मारने जैसा नहीं है।

जिनके जवान बच्चे आज लाखों-करोड़ों रुपए खर्च ने के बावजूद बेरोजगार घूम रहे हैं, क्या वे प्रधानमंत्री मोदी के बयान से दुखी नहीं हुए? क्या ऐसे आदर्श और प्रेरणा देने के काम के ही बचे हैं हमारे प्रधानमंत्री?

दो वर्ष पहले इसी प्रधानमंत्री मोदी ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू कर हर गली-हर गांव कस्बे में यहां तक कि हर घर-घर में शौचालय बनाने का आह्वान किया था। प्रधानमंत्री के बयान को ‘ब्रह्म वाक्य’ मान समझ कर गांव-देहातों के लोगों ने भी जगह-जगह शौचालय बना लिए।

मगर अब उन्हें उक्त शौचालय में डालने और उसे साफ सुथरा रखने के लिए आवश्यक पानी नहीं मिल रहा है। फरवरी माह में ह हालात ये हो गए हैं कि देश प्रदेश में कुल आवश्यकता की तुलना में मात्र 30-40 प्रतिशत ही पानी बचा है।

विदर्भ के जलायशों में तो ये स्थिति 30 फीसदी से भी कम है। तो ऐसे में सोचा जा सकता है कि जैसे आपने शौचालय तो बना लिए, मगर उनके लिए पानी कहां से लाओगे?

उसी तरह आपके आह्वान के बाद देश का हर बेरोजगार पकौडे तलने और बेचने लगेगा, तो उसे खाएगा कौन? क्योंकि सड़कों पर घूमने वाली पीढ़ी ही जब दुकानदार बन जाएगी, तो खाने वाले लोग कहां से आएंगे?

हालांकि पकौड़ा बनाने और बेचने का धंधा बुरा नहीं है। इसमें आवक भी अच्छी है। कमाई निश्चित है, मगर मेहनत भी उतनी है। क्या बीई, एमबीए, बीसीसी, एमबीबीएस, बीए, बीकॉम, एमए, एमकॉम करने वाली पीढ़ी फुटपाथ पर या कोई गुमठी या छोटी मोटी होटल खोलकर पकौड़ा बेचने तैयार है?

कुल मिला कर यह सारा प्रकरण देश की जनता को मूर्ख बनाने का एक प्रयास भर है। मोदी के हाथों देश ठगा जाने लगा है। लेकिन कब तक ठगा जाएगा देश! क्या 2019 तक…?

या फिर किसी मुद्दे की लहर पर सवार होकर मोदी एंड कंपनी भारी न पड़ जाए। अगर देश में सक्षम विकल्प न बने, तो फिर ये ‘चाय वाले, गाय वाले, पकौड़े वाले, मंदिर वाले, शौचालय वाले आ जाएंगे देश की छाती पर मूंग दलने के लिए चार साल में कई कई देशों में घूमने के बावजूद भारत में विदेशी निवेश और वहां की कंपनियां भी नहीं ला सके हैं ये, तो बचे हुए एक साल में क्या खाक रोजगार के अवसर पैदा करवा लेंगे? क्या इसलिए पकौड़ा बेचने की सलाह दे रहे हैं ये? अब कौन सुनेगा इनकी ? (साभार : vidarbhachandika.com)

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