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कट्टरपंथियों ने भिवंडी के ‘पडघा’ गांव को बना डाला ग्रेटर ‘सीरिया’, लागू किया ‘शरिया’

गाँव भारत में..लेकिन कट्टरपंथियों ने बना दिया था उसे ‘अल-शाम’ यानी सीरिया

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मुम्बई से 50 किमी दूर भिवंडी के पास एक गांव है। नाम पदघा। यहां 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। एक दिन इन्होंने गांव का नाम बदल कर अल शाम अर्थात ग्रेटर सीरिया। खुद को आजाद घोषित कर शरिया लागू कर दिया।

पिछले हफ्ते एनआईए और 400 पुलिस कर्मियों ने गांव पर धावा बोला और घर घर की तलाशी ली। तलाशी में मुंबई के खास खास जगहों के नक्शे, जाकिर नाइक के वीडियो, बंदूकें, तलवारें, 68 लाख कैश, 38 मोबाइल, 51 हमास के झंडे, 3 हार्ड डिस्क जिसमे मुंबई के यहूदी कम्युनिटी सेंटर, चाबड़ हाउस समेत 400 से ज्यादा जगहों पर ड्रोन से एरियल ब्लास्ट करने की योजना थी।

दिल्ली से पकड़े गए 3 आतंकी युनुस, शाहनवाज और इमरान जिसपर 5 लाख का इनाम घोषित था, से पूछताछ में पुणे में काम करने वाले आईटी इंजीनियर जुल्फीकार का पता चला। जुल्फिकार इनका सरगना और फाइनेंसर निकला। पुणे से ही लड़को की भर्ती और ट्रेनिंग के लिए भेजने वाला डा अदनान को हिरासत में लिया गया। अदनान से पूछताछ में इनके आतंकी साकिब नचान को धर दबोचा। जिसने पदघा को अल शाम बनाया था।

आईईडी एक्सपर्ट साकिब नाचन को 1991 में उम्र कैद की सजा मिली थी। मेहरबान एससी ने उसकी सजा घटा कर 10 साल कर दी और वह 2001 में छूट गया। और वह हर पल भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गिरफ्तार किया गया 63 वर्षीय साकिब नाचन एनआईए की नजर में मुख्य साजिशकर्ता है। वह मूल रूप से मुंबई के ठाणे जिले के बोरीवली का रहने वाला है। साकिब प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सचिव भी रह चुका है। साकिब बम बनाने में माहिर माना जाता है।

साकिब का कनेक्शन भगोड़े आतंकी जाकिर नाइक से भी है। वह युवाओं को जिहाद के लिए उकसाता था और खलीफा का राज लाने के लिए ‘बैयत’ (कसम) दिलाता था। साकिब युवाओं को आईएसआईएस के तौर-तरीके सिखाता था, जिससे देश में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जा सके। साकिब पर जाँच एजेंसियों की नजर साल 1990 से थी।

साकिब नाचन को मुंबई में साल 2002-03 के दौरान हुए 3 बम धमाकों में पुलिस ने मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर आरोपित बनाया था। एक दर्जन लोगों की जान लेने वाले ये धमाके मुंबई सेंट्रल, विलेपार्ले और मूलुंड में हुए थे। धमाकों में 100 से अधिक लोग घायल भी हुए थे। इस मामले में भी साल 2016 में साकिब को अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई। पहली और दूसरी सजाएँ एक साथ चलने की वजह से साकिब 2017 में जेल से रिहा हो गया।

हमारी सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं, ये पकड़े भी जा रहे हैं। सबूत जुटाने में एजेंसियों को नाको चने चबाने पड़ते हैं लेकिन अदालतें छोटी सी बात पर भी संदेह का लाभ देकर आतंकियों को आसानी से छोड़ देते हैं। या सुधरने के नाम पर सजा माफ कर देते हैं। कई बार वोट के लिए इन्हे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विपक्षी दलों का भी समर्थन हासिल हो जाता है।

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