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GOD: इस स्वभाव के लोगों पर कभी नहीं बरसती ईश्वर की कृपा

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आध्यात्मिक: हिन्दू धर्म की रीढ़ आध्यात्मिक ज्ञान है। जो व्यक्ति आध्यात्म के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ता है उसका जीवन सांसारिक दुखों से मुक्त रहता है। आध्यात्म व्यक्ति को जीवन जीने का तरीका, व्यवस्थित रहता और लोगों के प्रति दया भाव रखना सिखाता है। यदि कोई व्यक्ति स्वयं के चरित्र को आध्यात्मिक ज्ञान से सुशोभित करता है तो स्वयं उसे ईश्वर का वरदान प्राप्त होता है। लेकिन कई बार हमने देखा है कि कुछ लोग हमारे आस-पास ऐसे होते हैं जो नित्य पूजा -पाठ करते हैं, भगवान के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा होती है लेकिन इस सबके बाद भी उनका जीवन अपार दुखों से भरा रहता है। आखिर इसके पीछे का कारण क्या होता है। तो आइये जानते हैं कि अपार श्रद्धा-भाव और पूजा-पाठ के बाद भी लोगों के जीवन में दुःख का कारण क्या है ?

जानें क्यों लोग रहते हैं दुखी 

स्वयं की तुलना करना –

कई लोग हमारे आस-पास ऐसे होते हैं जो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, सूर्य नमस्कार करते हैं, भगवान के ध्यान के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं लेकिन इतना सब करने के बाद भी उन्हें अपने जीवन में दुःख झेलना पड़ता है। ऐसे लोगों के दुःख का एकमात्र कारण उनके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति से अपनी तुलना करना होता है। जब व्यक्ति स्वयं की तुलना किसी अन्य व्यक्ति से करता है तो वह अपने साथ खड़े व्यक्ति को स्वयं से हर चीज में बेहतर मानता है और उसे देखकर दुखी होता रहता है। व्यक्ति के इस स्वाभाव को स्वयं परमपिता परमेश्वर भी स्वीकार नहीं करते व उसका जीवन दूसरे व्यक्ति से ईर्ष्या के बोझ तले दबता रहता है। 

संतुष्ट न रहता- 

कई लोगो को अधिक की अभिलाषा होती है। उन्हें उनके पास जो है उसमें संतुष्ट रहना नहीं आता है। गीता में कृष्ण कहते हैं आप कर्म कीजिए फल की इच्छा मत करो। लेकिन यह लोग ईश्वर का ध्यान भी स्वयं की इच्छाओं की संतुष्टि के लिए करते हैं। ऐसे लोग लालची स्वभाव के होते हैं, उन्हें जो प्राप्त होता है वह उनके लिए पर्याप्त नहीं होता है। यह लोग ईश्वर के सम्मुख माथा भी अपने हित हेतु टेकते हैं। ऐसे लोगों को ईश्वर अस्वीकार्य करता है और इनकी इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं होती है। 

कुछ न होने का ढोंग करना –

संसार में भांति -भांति के प्राणी रहते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो इसमें खुश हैं कि ईश्वर ने उनको जो दिया है वह सर्वश्रेष्ठ है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सबकुछ होने के बाद भी यही कहते दिखाई देते हैं कि उनके पास कुछ नहीं है। यदि उनसे धर्म और कर्म के लिए कुछ योगदान देने को कहा जाता है तो वह रोने लगते हैं। ऐसे लोग स्वयं से ही नहीं ईश्वर से भी झूठ बोलते हैं, ईश्वर को छलने  प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों को ईश्वर की कृपा कभी प्राप्त नहीं होती, यह लोग सदैव दुखी रहते हैं और इनके जीवन में कष्ट बना रहता है। 

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