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आयुष दवाओं के विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम की लड़ाई

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आयुष दवाओं के विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम की लड़ाई
आयुष दवाओं के विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम की लड़ाई

आयुष मंत्रालय ने हाल ही में एक सार्वजनिक सूचना जारी करते हुए आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाने की बात कही है। मंत्रालय का कहना है कि इन दवाओं के विज्ञापनों में “चमत्कारिक या अलौकिक प्रभावों” का दावा करना अवैध है और यह जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह सूचना देशभर में आयुष चिकित्सा पद्धतियों के संदर्भ में विज्ञापनों की व्यापकता और ग़लत दावों को रोकने के लिए एक अहम क़दम है। यह लेख इसी मुद्दे पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

आयुष दवाओं के विज्ञापन नियमन की आवश्यकता

आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी (आयुष) चिकित्सा पद्धतियाँ सदियों से भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का एक अभिन्न अंग रही हैं। हालाँकि, हाल के वर्षों में इन पद्धतियों से जुड़ी दवाओं के विज्ञापनों में अत्यधिक अतिशयोक्ति और भ्रामक दावों का प्रयोग बढ़ा है। कई विज्ञापन चमत्कारिक उपचारों और अलौकिक प्रभावों का दावा करते हैं, जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं होते हैं। यह न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह करता है, बल्कि उनके स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा करता है। इस प्रकार के विज्ञापनों से लोगों में भ्रम फैलता है और वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सही चिकित्सा परामर्श लेने के बजाय, इन भ्रामक विज्ञापनों में दिखाए गए उत्पादों पर निर्भर हो जाते हैं, जो गंभीर स्वास्थ्य परिणामों का कारण बन सकता है। इसलिए, आयुष दवाओं के विज्ञापनों पर कड़ा नियमन अत्यंत आवश्यक है।

विज्ञापनों में भ्रामक दावों का खतरा

आयुष दवाओं के विज्ञापनों में अक्सर रोगों के “तत्काल” और “पूर्ण” इलाज के दावे किए जाते हैं, जिससे लोग गंभीर बीमारियों के लिए उचित चिकित्सा उपचार लेने में देरी कर सकते हैं। कई विज्ञापन ऐसे असाध्य रोगों के इलाज का दावा करते हैं जिनके लिए अभी तक कोई सटीक इलाज नहीं मिला है। यह भ्रमपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना है और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी दवा का प्रभाव व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न होता है, और किसी भी दवा के प्रभाव को वैज्ञानिक शोध और परीक्षण से सत्यापित होना चाहिए। भ्रामक विज्ञापनों से लोग ग़लत दवाओं का इस्तेमाल करके अपने स्वास्थ्य को गंभीर जोखिम में डाल सकते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पारदर्शिता की आवश्यकता

आयुष दवाओं के विज्ञापन में पारदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अत्यंत आवश्यक है। विज्ञापनों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा स्पष्ट और सरल होनी चाहिए, ताकि आम जनता इसे आसानी से समझ सके। किसी भी दवा के लाभ और नुकसान के बारे में पूर्ण जानकारी प्रदान करना आवश्यक है। किसी दवा के प्रभावशीलता को सिद्ध करने वाले वैज्ञानिक प्रमाणों का उल्लेख विज्ञापन में जरूर होना चाहिए। अतिशयोक्ति और भ्रामक दावों से बचना चाहिए और चिकित्सीय परामर्श की सलाह देना चाहिए। ये सभी पहलू विज्ञापनों के नियमन को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं।

आयुष मंत्रालय द्वारा जारी सार्वजनिक सूचना

आयुष मंत्रालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक सूचना जारी की है, जिसमें आयुष दवाओं के विज्ञापनों में “चमत्कारिक या अलौकिक प्रभावों” के दावों को अवैध घोषित किया गया है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी आयुष कंपनी या उसकी दवा का प्रमाणपत्र या अनुमोदन नहीं देता है और न ही किसी आयुष निर्माता या कंपनी को निर्माण के लिए लाइसेंस प्रदान करता है। यह सूचना आयुष दवाओं के विज्ञापन पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि दवाएँ और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत, कुछ रोगों और स्थितियों के इलाज के लिए दवाओं और जादुई उपचारों के विज्ञापन पर सख्त प्रतिबंध है। इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर, अपराधी के खिलाफ कानून के अनुसार दंडनीय कार्रवाई की जाएगी।

दवाओं के लेबलिंग और चिकित्सीय निगरानी पर ज़ोर

सार्वजनिक सूचना में आयुष दवाओं की लेबलिंग पर विशेष ज़ोर दिया गया है। अनुसूची E की दवाओं वाली आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं का सेवन संबंधित आयुष चिकित्सा पद्धति के पंजीकृत चिकित्सक की देखरेख और मार्गदर्शन में ही करना ज़रूरी है। ऐसी दवाओं के कंटेनर पर “चिकित्सीय देखरेख में लें” के निर्देश हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे होने चाहिए। जनता को सलाह दी गई है कि वे संबंधित आयुष पद्धति के पंजीकृत चिकित्सकों / डॉक्टरों से परामर्श के बाद ही ऐसी दवाओं का उपयोग करें। आत्म-निदान या आयुष दवाओं से आत्म-उपचार से बचने की सलाह दी गई है। इस तरह, मंत्रालय जनता के स्वास्थ्य की रक्षा और सुरक्षा पर ज़ोर दे रहा है।

शिकायत प्रक्रिया

सूचना में जनता को आयुष दवाओं के किसी भी आपत्तिजनक विज्ञापन, झूठे दावों, नकली दवाओं आदि की शिकायत संबंधित राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण या आयुष मंत्रालय को करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। यह शिकायत प्रणाली पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में सहायक होगी और जनता को ग़लत विज्ञापनों से होने वाले नुकसान से बचाएगी।

आगे की राह: बेहतर नियमन और जागरूकता

आयुष दवाओं के विज्ञापन पर नियमन को अधिक सख्त बनाए जाने की जरुरत है। यह केवल कानूनी उपायों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि जागरूकता अभियान के द्वारा भी जनता को भ्रामक विज्ञापनों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति ज़िम्मेदार रवैया अपना सकें। साथ ही, वैज्ञानिक शोध और विकास को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि आयुष चिकित्सा पद्धतियों की प्रभावशीलता और सुरक्षा को और बेहतर तरीके से समझा जा सके।

निष्कर्ष में

आयुष दवाओं के विज्ञापनों में चमत्कारिक या अलौकिक दावाओं से सावधान रहने की ज़रुरत है। ये विज्ञापन भ्रामक और हानिकारक हो सकते हैं। सदैव चिकित्सकीय परामर्श लेना ज़रूरी है। यदि आपको कोई आपत्तिजनक विज्ञापन दिखाई देता है, तो इसकी शिकायत संबंधित प्राधिकरण से करें।

मुख्य बातें:

  • आयुष दवाओं के विज्ञापनों में चमत्कारिक दावे अवैध हैं।
  • भ्रामक विज्ञापनों से बचने और चिकित्सीय परामर्श लेने की आवश्यकता है।
  • आयुष मंत्रालय ने इस संबंध में सार्वजनिक सूचना जारी की है।
  • जनता को आपत्तिजनक विज्ञापनों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पारदर्शिता से विज्ञापन अधिक प्रभावी बन सकते हैं।
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