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एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एक ख़ामोश महामारी

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एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एक ख़ामोश महामारी
एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एक ख़ामोश महामारी

एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एक ख़तरा जो बढ़ता जा रहा है

दुनियाभर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध (AMR) एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिससे लाखों लोगों की जान खतरे में पड़ रही है। यह एक ऐसी महामारी है जो चुपचाप फैल रही है और जिसके बारे में ज़्यादातर लोगों को जानकारी नहीं है। भारत, इस वैश्विक समस्या का केंद्रबिंदु है, जहाँ दुनिया के एक चौथाई से ज़्यादा एंटीबायोटिक्स का सेवन किया जाता है। प्रतिवर्ष 3 लाख से अधिक मौतें सीधे AMR से जुड़ी हुई हैं, और दस लाख से ज़्यादा अतिरिक्त मौतों में सुपरबग्स की भूमिका होती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिस पर तुरंत ध्यान देने और कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध का बढ़ता प्रभाव

नई चुनौतियाँ और पुरानी समस्याएँ

पिछले कुछ दशकों से नई एंटीबायोटिक्स का विकास रुक सा गया है। परिणामस्वरूप, मामूली संक्रमण भी जटिल उपचार और सर्जरी की आवश्यकता रखने लगे हैं। नवजात शिशु भी ऐसे संक्रमणों का शिकार हो रहे हैं जिनका कोई इलाज नहीं है। यह समस्या सिर्फ़ गंभीर बीमारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि छोटे-मोटे घाव भी जानलेवा बन सकते हैं यदि शरीर एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी बन गया हो। यह एक खतरनाक संकेत है जिससे हमें गंभीर चिंता होनी चाहिए।

स्वास्थ्य सेवा तंत्र पर भार

एंटीबायोटिक प्रतिरोध से स्वास्थ्य सेवा तंत्र पर भी अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है। इलाज के लिए अधिक जटिल और महंगे तरीकों की ज़रूरत पड़ती है, जिससे healthcare की लागत बढ़ती है और सिस्टम पर अतिरिक्त भार आता है। इस समस्या का समय पर समाधान न किया गया तो इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा, जिससे विकास की गति मंद हो सकती है। इसलिए इस चुनौती से निपटना केवल स्वास्थ्य क्षेत्र का ही नहीं बल्कि समूचे राष्ट्र का दायित्व है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध के पीछे के कारण

अनुसंधान और विकास में कमी

फार्मास्युटिकल कंपनियां कैंसर के इलाज से जुड़े अनुसंधान और विकास पर अधिक निवेश कर रही हैं, जबकि एंटीबायोटिक्स पर कम। दुनियाभर में प्राथमिक बैक्टीरिया से निपटने के लिए केवल 27 दवाएँ ही क्लिनिकल विकास के चरण में हैं, जबकि कैंसर के इलाज के लिए 1600 से ज़्यादा हैं। इसके अतिरिक्त, AMR प्रतिरोध पर काम करने वाले वैज्ञानिकों की संख्या भी बहुत कम है – केवल 3000, जबकि कैंसर अनुसंधान में 46000 वैज्ञानिक कार्यरत हैं। इस असंतुलन को दूर करना बेहद ज़रूरी है।

अनुचित एंटीबायोटिक प्रयोग

एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक और अनुचित उपयोग से भी प्रतिरोध बढ़ता है। छोटी-मोटी बीमारियों में भी लोग बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, या आस-पास के डॉक्टरों से आसानी से प्रिस्क्रिप्शन प्राप्त कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान, दस में से सात लोगों को बिना किसी वजह के एज़िथ्रोमाइसिन दिया गया था, भले ही उनमें बैक्टीरिया संक्रमण न हो। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को कठोर क़ानून बनाने होंगे और जन जागरूकता अभियान चलाने होंगे।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध से लड़ने के उपाय

सरकारी हस्तक्षेप और प्रोत्साहन

सरकार को एंटीबायोटिक्स के अनुसंधान और विकास में अधिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। इसमें कंपनियों को आर्थिक सहायता प्रदान करना, नई दवाओं के लिए तेज स्वीकृति प्रक्रिया अपनाना और जनता को जागरूक करना शामिल है। एंटीबायोटिक्स की कीमतों को उचित बनाए रखना भी ज़रूरी है ताकि वह गरीब लोगों की पहुँच में भी हो सकें।

जन जागरूकता और व्यवहार में बदलाव

लोगों को एंटीबायोटिक्स के सही और ज़रूरत के अनुसार इस्तेमाल के बारे में जागरूक करना बेहद ज़रूरी है। बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक्स का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, हाथों की स्वच्छता और संक्रमण से बचाव के तरीकों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें सरकार, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आम जनता सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है।

मुख्य बातें:

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक वैश्विक महामारी है जो तेज़ी से बढ़ रही है।
  • भारत इस समस्या का केंद्रबिंदु है।
  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।
  • एंटीबायोटिक्स के अनुचित और अत्यधिक प्रयोग से यह समस्या बढ़ रही है।
  • एंटीबायोटिक्स के अनुसंधान और विकास में बढ़ावा देना और जन जागरूकता फैलाना ज़रूरी है।
  • सरकार, स्वास्थ्यकर्मी और जनता सबकी भूमिका इस चुनौती से निपटने में अहम है।
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