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दवा विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम के बीच

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दवा विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम के बीच
दवा विज्ञापन: सच्चाई और भ्रम के बीच

भारतीय दवा नियामक निकाय द्वारा एंटोड फार्मास्युटिकल्स के विरुद्ध की गई कार्रवाई हाल ही में चर्चा का विषय बनी हुई है। मुंबई स्थित इस फार्मास्युटिकल कंपनी को उसके नेत्रबिंदु “प्रेसव्यू” के विज्ञापन में किए गए अतिरंजित दावों के कारण उसके लाइसेंस को निलंबित कर दिया गया था। यह घटना केवल कंपनी की लापरवाही को उजागर नहीं करती, बल्कि भारत में दवा विज्ञापन और नियमों पर भी गंभीर सवाल उठाती है। इस पूरे मामले की गहन पड़ताल से समझ में आता है कि कैसे नियमों के उल्लंघन और भ्रामक विज्ञापन जनता के स्वास्थ्य और भरोसे को खतरे में डाल सकते हैं। आइए इस मामले के विभिन्न पहलुओं पर गौर करें।

एंटोड फार्मास्युटिकल्स का लाइसेंस निलंबन और इसके कारण

एंटोड फार्मास्युटिकल्स के “प्रेसव्यू” नामक नेत्रबिंदु के लाइसेंस को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने सितंबर 2024 में निलंबित कर दिया था। यह कार्रवाई कंपनी द्वारा किए गए अतिरंजित दावों के कारण की गई थी। कंपनी ने अपने ट्वीट्स और विज्ञापनों में दावा किया था कि प्रेसव्यू “पढ़ने के चश्मे की आवश्यकता को समाप्त” कर सकता है। यह दावा प्रेसबायोपिया (उम्र से संबंधित निकट दृष्टि दोष) के इलाज के लिए अनुमोदित दवा के संदर्भ में पूरी तरह से गलत और भ्रामक था। डीसीजीआई ने कंपनी को पहले से ही जारी किए गए परमिट के दायरे से परे जाने और अतिरंजित दावे करने के लिए इसका लाइसेंस निलंबित किया। यह कार्रवाई न केवल कंपनी की गैर-जिम्मेदारी को दिखाती है बल्कि दवा विज्ञापनों पर नियंत्रण और नियमों के पालन की जरूरत को भी दर्शाती है।

डीसीजीआई की कार्रवाई और इसके निहितार्थ

डीसीजीआई द्वारा की गई यह कार्रवाई दवा उद्योग के लिए एक सख्त चेतावनी है। यह साफ संदेश देती है कि भ्रामक और अतिरंजित दावों वाले विज्ञापन बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। इससे दवा कंपनियों को अपने विज्ञापनों और उत्पादों के दावों में पूरी तरह से पारदर्शिता और सच्चाई बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इससे ग्राहकों का विश्वास बनाए रखने और जनस्वास्थ्य की रक्षा करने में भी मदद मिलेगी। डीसीजीआई की यह कार्रवाई नियमों के उल्लंघन के प्रति शून्य सहनशीलता नीति को दर्शाती है।

जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा में भूमिका

डीसीजीआई की कार्रवाई ने न केवल एंटोड फार्मास्युटिकल्स के लाइसेंस को निलंबित किया, बल्कि यह जनता के स्वास्थ्य और भरोसे की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम भी था। भ्रामक दावे उपभोक्ताओं को गलत जानकारी देकर गुमराह कर सकते हैं और उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। डीसीजीआई की सख्त कार्रवाई से यह सुनिश्चित होगा कि भविष्य में दवा कंपनियाँ अपने उत्पादों के बारे में जिम्मेदारी से और सही जानकारी देंगी। इससे जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा और भरोसे को मजबूत किया जा सकेगा। यह कार्रवाई यह साबित करती है कि दवा नियामक निकाय अपनी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से लेता है।

दवा एवं जादूई उपचार (अपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन

एंटोड फार्मास्युटिकल्स के मामले में, केवल लाइसेंस निलंबन तक ही कार्रवाई सीमित नहीं रही। जन स्वास्थ्य कार्यकर्ता और नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. के.वी. बाबू की शिकायत के बाद, डीसीजीआई ने गुजरात के खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन (एफडीसीए) को दवा एवं जादूई उपचार (अपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के अनुसार उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। कंपनी द्वारा किए गए ट्वीट में, प्रेसव्यू के बारे में किए गए अतिरंजित दावे इस अधिनियम के उल्लंघन में आते हैं। यह अधिनियम दवाओं के विज्ञापन में गलत या भ्रामक दावों पर रोक लगाता है।

कानूनी पहलू और आगे की कार्रवाई

डीसीजीआई की एफडीसीए गुजरात को जारी की गई निर्देश से साफ़ पता चलता है कि दवा विज्ञापनों के नियमन में कानूनी पहलू कितना महत्वपूर्ण है। एंटोड फार्मास्युटिकल्स द्वारा किए गए अतिरंजित दावे न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं, बल्कि कानून के उल्लंघन को भी दर्शाते हैं। आगे की कार्रवाई में कंपनी पर जुर्माना या अन्य प्रकार की सज़ा हो सकती है। इस मामले से यह भी साफ़ होता है कि भारत में दवा विज्ञापनों पर सख्त नियम और उनके पालन पर ज़ोर दिया जा रहा है।

उपभोक्ता जागरूकता की महत्ता

यह घटना उपभोक्ता जागरूकता के महत्व को भी उजागर करती है। उपभोक्ताओं को दवाओं के विज्ञापनों के प्रति सावधान रहना चाहिए और किसी भी अतिरंजित दावे पर विश्वास नहीं करना चाहिए। किसी भी दवा के इस्तेमाल से पहले डॉक्टर से सलाह लेना बहुत ज़रूरी है।

प्रेसबायोपिया का इलाज और दवाओं के प्रभावी उपयोग

प्रेसबायोपिया एक आम आँखों की समस्या है जिससे उम्र बढ़ने के साथ निकट दृष्टि कमजोर होती जाती है। इस समस्या का इलाज केवल चश्मा पहनने या कभी-कभी नेत्र शल्यक्रिया द्वारा ही हो सकता है। ऐसे में किसी भी दवा के द्वारा पढ़ने के चश्मे की आवश्यकता को समाप्त करने का दावा पूर्ण रूप से गलत है।

प्रभावी और सुरक्षित दवा उपयोग

ग्राहकों को अपनी आँखों की समस्याओं के लिए हमेशा योग्य नेत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। दवाओं का उपयोग हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए और किसी भी दवा का अति उपयोग नुकसानदेह हो सकता है। प्रेसबायोपिया के इलाज में भी यही सावधानी बरतनी चाहिए। दवा की प्रभावकारिता और सुरक्षा को समझना महत्वपूर्ण है।

स्वास्थ्य से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों से सावधानी

उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए और कभी भी किसी दवा या उपचार के प्रति अंधविश्वास नहीं करना चाहिए। कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

मुख्य बिंदु:

  • एंटोड फार्मास्युटिकल्स का लाइसेंस निलंबन भ्रामक दवा विज्ञापनों की समस्या को उजागर करता है।
  • डीसीजीआई ने कंपनी पर दवा एवं जादूई उपचार (अपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के उल्लंघन का आरोप लगाया है।
  • उपभोक्ताओं को दवाओं के विज्ञापनों में किए गए अतिरंजित दावों से सावधान रहना चाहिए।
  • किसी भी दवा के इस्तेमाल से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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