Home health स्टडी: अल्जाइमर का खतरा सही डायट से होता है दूर

स्टडी: अल्जाइमर का खतरा सही डायट से होता है दूर

55
0

[object Promise]

पेट के बैक्टीरिया पर आहार का प्रभाव अल्जाइमर के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। एक निश्चित प्रकार की डायट लेने से आंत में मौजूद माइक्रोब्स प्रभावित होते हैं। हमारी बॉडी में दो तरह के माइक्रोब्स और बैक्टीरिया होते हैं ,अच्छे और बुरे। जो हमारी आंत और पाचनतंत्र में रहते है। पिछले दिनों हुए एक रिसर्च में सामने आया है कि ये अल्जाइमर रोग के जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

वेक फॉरेस्ट स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में पाया कि अगर एक खास प्रकार की सही डायट का पालन किया जाए तो अल्जाइमर के रोग से बचा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने आंत में रहनेवाले ऐसे कई माइक्रोबायोम की पहचान की जो अल्जाइमर से बचाने में मददगार हैं। बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित रसायन उचित डायट लेने पर शरीर में अल्जाइमर के रोग की रोकथाम करते हैं।

रिसर्च में सामने आया कि सही डायट के बाद ये बैक्टीरिया और माइक्रोबायोम जिस तरह के रसायन हमारे शरीर में बनाते हैं, वे हमारे दिमाग को दुरुस्त रखने में मददगार होते हैं। इस शोध में शामिल जिन लोगों को सही डायट दी गई उनके दिमाग में ऐसे रसायन पाए गए, जो अल्जाइमर से बचाने में मददगार हैं। जबकि जिन लोगों को बेतरतीब डाइट दी गई उनके मस्तिष्क में इन रसायनों का अभाव देखा गया। खास कीटोजेनिक डायट ने आंत के माइक्रोबायोम और इसके चयापचयों में परिवर्तन किया, जो दोनों अध्ययन समूहों में शामिल सदस्यों में अल्जाइमर के मार्करों के कम स्तर से संबंधित थे।

यह स्टडी द लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक पत्रिका ईबियोमेडिसिन के ताजा अंक में प्रकाशित की गई है। अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, पेट के माइक्रोबायोम और आहार के संबंध में न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों पर पिछले दिनों काफी ध्यान दिया गया है और यह अध्ययन बताता है कि अल्जाइमर रोग आंत के जीवाणुओं में विशिष्ट परिवर्तन से जुड़ा है और एक खास प्रकार की कीटोजेनिक डायट माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकती है। यह डायट ओड डिमेंशिया को प्रभावित कर सकती है।

जिन लोगों पर यह शोध किया गया उनमें से कुछ को बेतरतीब ढंग से या तो कम कार्बोहाइड्रेट संशोधित कीटोजेनिक डायट या कम फैट वाली और उच्च कार्बोहाइड्रेट से भरपूर डायट छह सप्ताह तक दी गई। छह सप्ताह की “वॉशआउट” टाइमिंग के बाद दूसरे आहार दिए गए। पेट के माइक्रोबायोम, फेकल शॉर्ट-चेन फैटी एसिड और अल्जाइमर के मार्कर, जिनमें सेरीब्रोस्पाइनल तरल पदार्थ में अमाइलॉइड और ताऊ प्रोटीन शामिल हैं, को हर तरह की डाइट के बाद मापा गया और शरीर के अंगों पर इनका प्रभाव देखा गया।

Text Example

Disclaimer : इस न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करें और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य में कोई कमी हो अथवा कोई कॉपीराइट आपत्ति हो तो वह [email protected] पर सूचित करें। साथ ही साथ पूरी जानकारी तथ्य के साथ दें। जिससे आलेख को सही किया जा सके या हटाया जा सके ।