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क्षय रोग से मुक्ति: एक नया रास्ता

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क्षय रोग से मुक्ति: एक नया रास्ता
क्षय रोग से मुक्ति: एक नया रास्ता

भारत में क्षय रोग (टीबी) एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती है, जो देश के आर्थिक विकास और जनसंख्या के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। दुनिया भर में टीबी के बोझ का एक चौथाई से ज़्यादा भार भारत पर है। हालांकि, सरकार के प्रयासों और स्वास्थ्य कार्यक्रमों से टीबी के खिलाफ लड़ाई में काफी प्रगति हुई है, फिर भी चुनौतियाँ बरकरार हैं। इस लेख में हम टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा करेंगे, जिसमें नई उपचार पद्धतियों को अपनाना और निदान प्रक्रियाओं को बेहतर बनाना शामिल हैं।

नई, कम अवधि की दवा पद्धतियाँ: एक क्रांतिकारी कदम

भारत में ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (दवा प्रतिरोधी क्षय रोग) के इलाज के लिए वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली दवा पद्धतियाँ लंबी, कठिन और दुष्प्रभावों से भरी हुई हैं। ये उपचार ९ से ११ महीने या १८ से २४ महीने तक चल सकते हैं, जिससे रोगियों को प्रतिदिन १३ से १४ या ४ से ५ गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। इनके गंभीर दुष्प्रभाव जैसे सुनने की क्षमता में कमी और मनोविकृति भी हो सकते हैं। इतने लंबे समय तक उपचार चलने के कारण रोज़गार छूटने और आर्थिक तंगी का खतरा भी रहता है।

बीपीएएल/एम पद्धति: एक उम्मीद की किरण

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए बीपीएएल/एम नामक एक नई, छोटी, सुरक्षित और अधिक प्रभावी पद्धति की सिफारिश की है। इस पद्धति में प्रतिदिन केवल तीन से चार गोलियाँ लेनी होती हैं और उपचार छह महीनों में पूरा हो जाता है। इसके दुष्प्रभाव भी कम हैं और इसकी सफलता दर भी ज़्यादा है (लगभग ८९%), जो वर्तमान उपचार पद्धतियों से काफी बेहतर है। कई देश पहले ही इस पद्धति को अपना चुके हैं, और भारत को भी इसे शीघ्रता से लागू करना चाहिए। यह न केवल रोगियों के लिए बेहतर है, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली पर भी आर्थिक भार कम करता है। अनुमान है कि इस पद्धति को लागू करने से 40% से 90% तक लागत बचत हो सकती है।

टीबी का शीघ्र निदान: प्रौद्योगिकी का सहारा

टीबी के उन्मूलन के लिए समय पर निदान बेहद ज़रूरी है। वर्तमान में टीबी के कई मामले छूट जाते हैं क्योंकि लक्षणों की पहचान देर से होती है या रोगी में लक्षण ही नज़र नहीं आते। इस समस्या के समाधान के लिए हमें निदान प्रक्रियाओं को अधिक प्रभावी और कुशल बनाना होगा।

लक्षित स्क्रीनिंग और उन्नत तकनीक

हमें ऐसे जोखिम वाले समूहों की पहचान करने के लिए स्वास्थ्य डेटा और जीआईएस मैपिंग का उपयोग करना चाहिए जिनमें टीबी का खतरा ज़्यादा हो जैसे कि सहवर्ती रोग (कुपोषण, मधुमेह, एचआईवी) वाले लोग, कोविड-१९ के पूर्व रोगी, झुग्गियों, जेलों या बेघर लोगों के समुदाय। लक्षित बहु-रोग केंद्रित स्क्रीनिंग अभियानों से टीबी के मामलों का जल्दी पता चल सकता है, भले ही उनमें सामान्य लक्षण न हों। छाती का एक्स-रे, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संचालित पोर्टेबल एक्स-रे मशीन, विशेष रूप से दूरस्थ और संसाधन-सीमित क्षेत्रों में निदान में देरी को कम करने में मदद कर सकते हैं।

तेज़ आणविक परीक्षण

तेज़ आणविक परीक्षणों का उपयोग कम संवेदनशील सूक्ष्मदर्शी विधियों के स्थान पर करना ज़रूरी है। यह परिवर्तन टीबी के मामलों की शीघ्र पहचान और उपयुक्त उपचार विकल्पों का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है। इससे समय पर सही इलाज शुरु किया जा सकता है जिससे टीबी से होने वाली जटिलताओं और मृत्यु को रोका जा सकेगा।

संसाधन और सहयोग: सफलता की कुंजी

टीबी उन्मूलन एक चुनौतीपूर्ण लेकिन प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है। इसे प्राप्त करने के लिए व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सरकारी संस्थानों, स्वास्थ्य पेशेवरों, शोधकर्ताओं और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग शामिल है।

जागरूकता और शिक्षा

जनता में जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है ताकि लोग टीबी के लक्षणों को पहचान सकें और समय पर जाँच करा सकें। शिक्षा अभियानों से लोग उपचार के बारे में जान सकते हैं और इसकी आवश्यकता को समझ सकते हैं। इससे टीबी के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाई जा सकती है।

पर्याप्त निधि और प्रशिक्षण

टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना, स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करना और नवीनतम तकनीकों से लैस करना ज़रूरी है। इससे टीबी नियंत्रण के प्रयासों में दक्षता बढ़ सकती है। इसके अतिरिक्त, शोध और नवाचार को बढ़ावा देकर नए उपचार और निदान विधियों को विकसित करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष: एक स्वस्थ भविष्य की ओर

भारत में टीबी उन्मूलन का लक्ष्य महत्वाकांक्षी लेकिन प्राप्त करने योग्य है। नई, कम अवधि की दवा पद्धतियों को अपनाना, उन्नत निदान तकनीकों का उपयोग करना, लक्षित स्क्रीनिंग, जन जागरूकता और पर्याप्त संसाधनों के साथ हम टीबी के बोझ को कम करने और एक स्वस्थ भविष्य बनाने में सफल हो सकते हैं।

मुख्य बातें:

  • ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी के लिए बीपीएएल/एम जैसी नई, छोटी और प्रभावी दवा पद्धतियों को अपनाना ज़रूरी है।
  • टीबी के शीघ्र निदान के लिए उन्नत तकनीकों (जैसे पोर्टेबल एक्स-रे मशीन और तेज़ आणविक परीक्षण) का उपयोग करना चाहिए।
  • जोखिम वाले समूहों में लक्षित स्क्रीनिंग अभियान चलाना आवश्यक है।
  • टीबी उन्मूलन के लिए सरकार, स्वास्थ्य पेशेवरों और समुदायों के बीच सहयोग अनिवार्य है।
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