खबर कुशाग्र उपाध्याय: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिस्र की अपनी पहली यात्रा में मिस्र और भारत द्विपक्षीय रिश्ते के नए आलेख को लिखने की शुरुआत कर दी है। 26 सालों में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली मिस्र यात्रा है। पीएम के दो दिवसीय दौरे में दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) पर मुहर लगा दी है, साथ ही साथ दोनों देशों ने रणनीतिक भागिदारी बढ़ाने पर भी सहमति जताई है। सब तय योजना के मुताबिक हुआ तो मिस्र भारतीय मुद्रा में जरूरी चीजों का आयात कर सकेगा। दरहसल, भारत और मिस्र दोनों ही देशों को कहीं न कहीं एक दूसरे की जरुरत है। जहां एक तरफ मिस्र अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए भारत का सहयोग लेना चाहता है वह भारत से तेजस लड़ाकू विमान, आकाश मिसाइल सिस्टम और हेलिकॉप्टरों के साथ-साथ तमाम सैन्य उपकरण खरीद कर सैन्य शक्ति बनने की इच्छा रखता है। तो वहीं दूसरी ओर भारत को भी कुछ मामलों में मिस्र की मदद लेना चाहता है।
भारत की योजना है कि चीन पर अपने आयात की निर्भरता को कम कर मिस्र से खाद और गैसोलीन की आपूर्ती को बढ़ाया जाए। मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह का मानना है कि दोनों देशों का व्यापार सालाना 12 अरब डॉलर तक का होना चाहिए। इसके अलावा भारत का नजरिया मिस्र को लेकर एक तटस्थ इस्लामिक देश का है जो पश्चिम एशिया की एक बड़ी शक्ति भी है। भारत का इरादा मिस्र के जरिए बाकी के इस्लामिक देशों को साधकर उनमें अपनी पैठ बनाने का है। गौरतलब है कि इसी साल कश्मीर में हुए जी-20 की बैठक से मिस्र ने दूरी बना ली थी। मिस्र के अलावा चीन, साऊदी अरब और तुर्की ने भी इस बैठक का हिस्सा बनने से साफ इंकार कर दिया था।
मिस्र का यह रवैया हैरान करने वाला था, ऐसे में जब इसी साल गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रुप में मिस्र के राष्ट्रपति को आमंत्रित किया गया था। इतना ही नहीं मिस्र की सेना के 144 सैनिक भी भारत में परेड का हिस्सा बने थे। माना जा रहा है कि मिस्र के इसी रुख के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा दोनों देशों के बीच इसी पटकथा को लिखने की ही एक शुरुआत थी। सरकार के सूत्रों का यह भी कहना है कि मिस्र BRICS देशों का सदस्य बनने का भी इच्छुक है, जिसमें भारत उसकी मदद करने को तैयार है। दुनिया के कई देशों की नजरें भी भारत के इस कदम पर टिकी हैं। जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू शामिल हैं। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को ही भारत के इस कदम से काफी मिर्ची लगती दिख रही है। माना जा रहा है कि भारत के इस कदम से इस्लामाबाद खफा है, इसके पहले भी गणतंत्र दिवस के मौके पर मिस्र के राष्ट्रपति को भारत द्वारा आमंत्रित किए जाने पर भी पाकिस्तान ने कड़ी आपत्ती जताई थी। अब देखना यह है कि मिस्र के साथ तमाम समझौतों की ये कड़ी जोड़ने में भारत कितना सफल रहता है।